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मोक्ष :- अंतिम आध्यात्मिक ध्येय

प्रत्येक जीव सुख की खोज में है। एक बच्चा आनंद पाने के लिए खिलौनों से खेलता है। जब वह बड़ा होता है, तब वह भविष्य में सुखी जीवन जीने के लिए कठिन अभ्यास करता है। शिक्षा के आधार से, वह संतोष पाने के लिए नौकरी ढूंढता है। फिर वह “सुखी मनुष्य” बनने की उम्मीद के साथ शादी करता है। इन सभी अवस्थाओं में, वह कुछ समय के लिए सुख का अनुभव करता है, लेकिन यह लंबे समय तक टिकता नहीं है। जिससे, हमेशा सुखी होने के प्रयत्न जारी रखता है। पैसा, मान या कीर्ति - सफलता उसे संतोष नहीं दे सकता है। जब उसे अनुभव में आता है कि यह सभी बंधन है या क्षणिक सुख का साधन है, तब शाश्वत सुख की खोज शुरू होती है। यह शाश्वत सुख को ही मोक्ष कहा जाता है, मुक्ति या तमाम बन्धनों से छुटकारा भी कह सकते है।

इन सभी बंधनो के कारण ही व्यक्ति दुःख का अनुभव करता है।

आत्मा की अज्ञानता के कारण बंधन है। जबकि मोक्ष खुद के स्वरुप को पहचाने का फल है। जब व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त करता है और जानता है कि "में कौन हूँ?“ तब से मोक्षमार्ग की शुरुआत होती है। जिस क्षण स्वयं की अज्ञानता दूर हो, तभी से मोक्ष या मुक्ति आपके हाथ में है। मुक्ति यह आध्यात्मिक मार्ग का अंत है।

आपको मोक्ष प्राप्त करने से कौन रोकता है?

जब लौकी पूरी तरह कीचड़ से ढक जाती है, तो उसे ऊपर कौन नहीं आने देता? कीचड़। उसी प्रकार सम्पूर्ण रूप से आत्मा भारी परमाणु से ढका हुआ है जो आत्मा को अधोगति में खींच ले जाता है। आत्मा के आगे इन परमाणुओं का आवरण रहता है, जो मोक्ष की प्राप्ति नहीं करने देता।

आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद, आत्मा इन लौकिक अणु और परमाणुओं से मुक्त होता है। वह इन सभी आवरणों से मुक्त होता है और सिद्धक्षेत्र में (जहाँ सभी मुक्त आत्माएँ रहते हैं) स्थान प्राप्त करता है। यह शाश्वत मुक्ति है, यह मात्र ज्ञानी पुरुष की कृपा से ही संभव है।

ज्ञानी पुरुष एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने शाश्वत सुख की अवस्था प्राप्त कर ली है। यदि हम एयरपोर्ट का रास्ता जानते हो ऐसे व्यक्ति के साथ हों तो एयरपोर्ट तक पहुंचना आसान नहीं हो जाता? उसी प्रकार, जब हमें ज्ञानी पुरुष मिलते है तब अपना मोक्ष का मार्ग सरल हो जाता है।

मोक्ष से संबंधित अनेक प्रश्नों पर स्पष्ट समझ पाने के लिए आगे पढ़ें।

मोक्ष

मोक्ष दो चरणों में होता है| पहले चरण में, रोज के नियमित जीवन के सभी परेशानियों से मुक्ति का अनुभव कर सकते है| दूसरे चरण में मोक्ष प्राप्त होता है|

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Top Questions & Answers

  1. Q. मोक्ष / मुक्ति / स्वतंत्रता का अर्थ क्या है? व्यक्ति मोक्ष की तलाश में क्यों रहता है?

    A. अलग-अलग लोगों के लिए मोक्ष / मुक्ति / स्वतंत्रता का अर्थ अलग है। हालाँकि आध्यात्मिक मार्ग में इसका... Read More

  2. Q. क्या आत्मा की मुक्ति वास्तव में है? किसको मोक्ष प्राप्त होता है?

    A. ज़्यादातर लोगों का मानना है कि मोक्ष का अर्थ यानि आत्मा की मुक्ति या सभी बंधनों से आत्मा की मुक्ति।... Read More

  3. Q. मोक्ष प्राप्ति के लिए मानव जीवन का क्या महत्व है?

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  4. Q. क्या मोक्ष की परिभाषा वास्तविक है? या मोक्ष मात्र एक कल्पना है?

    A. आध्यात्मिक दृष्टि से, मोक्ष की परिभाषा मुक्ति और निर्वाण की व्याख्या की तरह ही है। कई लोगों के लिए,... Read More

  5. Q. कलियुग (वर्तमान काल चक्र) में मोक्ष कैसे प्राप्त करें?

    A. यदि हमें एयरपोर्ट जाना हो तो, बिना रास्ता जाने हमे पहुँचने में कठिनाई होगी। हालांकि, जब हमें किसी... Read More

  6. Q. मोक्ष/मुक्ति के मार्ग में धार्मिक क्रियाओं की क्या भूमिका है? क्या मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए त्याग जरूरी है?

    A. जब हम ईश्वर, अध्यात्म और मोक्ष की बात करते हैं, तो हमारे मन में अनेक प्रश्न उठते हैं, जैसे, “कब तक... Read More

  7. Q. मोक्ष को प्राप्त करने के बाद क्या होता है?

    A. मोक्ष के बाद क्या होता है? मोक्ष के बाद आत्मा का क्या होता है? जब आप मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं, तब... Read More

  8. Q. मोक्षमार्ग में बाधक कारण क्या हैं?

    A. जो कोई भी मोक्षमार्ग में आगे बढ़ने और उस मार्ग पर लगातार प्रगति करना चाहते हैं, उनके लिए इस मार्ग... Read More

  9. Q. मोक्ष और निर्वाण: दोनों के बीच में क्या अंतर है?

    A. जब कोई अंतिम मुक्ति को प्राप्त करता है, तब निर्वाण होता है! यही मोक्ष और निर्वाण के बीच का... Read More

Spiritual Quotes

  1. मुक्ति किसे कहते हैं कि परवशता महसूस न हो। देह होने पर भी परवशता महसूस न हो।
  2. संसार के दुःख में भी दुःख लगे नहीं, उपाधि में भी समाधि रहे, वह पहला मोक्ष। और फिर यह देह छूटने पर आत्यंतिक मोक्ष है। पर पहला मोक्ष यहाँ होना चाहिए।
  3. मनुष्यदेह जो सार्थक करना आया तो मोक्ष की प्राप्ति हो सके।
  4. मोक्ष अर्थात् संपूर्ण रूप से मुक्त भाव। जहाँ भाव का अभाव है, वहाँ मोक्ष है।
  5. मोक्ष यानी कि अंतिम स्वाभाविक दशा।
  6. मोक्ष अर्थात् कभी भी कर्म का चिपकना पन नहीं रहना।
  7. किसी को दुत्कारकर मोक्ष में नहीं जा सकते, इसलिए सावधान रहना।
  8. मोक्ष मार्ग शुरू हुआ, ऐसा कब कहलाएगा? जो मोक्षस्वरूप हो चुके हैं ऐसे ‘ज्ञानी पुरुष’ के पीछे चलने लगें, अर्थात् मोक्ष मार्ग शुरू हो गया। अब कभी न कभी इनके पीछे-पीछे ही चलना है ऐसा तय किया तो समझो मोक्ष मार्ग शुरू हो गया। उसकी मुक्ति अवश्य होगी!
  9. भयंकर उपाधि (बाहर से आने वाला दु:ख) में भी समाधि रहना अर्थात् जीते जी मोक्ष।
  10. मोक्ष अर्थात् सनातन सुख। सर्व दु:खों से आत्यंतिक मुक्ति!
  11. यदि मोक्ष में जाना हो तो ‘एवरीव्हेर एडजस्ट’ होना ही पड़ेगा।
  12. जहाँ भगवान ऊपरी हैं वहाँ मोक्ष नहीं है। जहाँ मोक्ष है वहाँ भगवान ऊपरी नहीं हैं।
  13. ये सब जो ‘रिलेटिव धर्म’ हैं, ये मोक्ष देने वाले नहीं हैं लेकिन मोक्ष की ओर धक्का मारने वाले हैं।
  14. ‘कभी भी किसी के साथ टकराव में नहीं पड़ना’ - यह मोक्ष जाने की सब से बड़ी चाबी है।
  15. ‘मैं खुद ही परमात्मा हूँ’, ऐसा भान हो जाए तो मोक्ष में जा पाएँगे। वर्ना मोक्ष का साक्षात्कार हो ही नहीं सकता, संक्षेप में उसे ‘दर्शन’ कह सकते हैं।
  16. कषाय सहित व्यवहार अर्थात् संसार। कषाय रहित होना ही मोक्ष है।
  17. ‘ज्ञानी पुरुष’ मिल जाएँ तो मोक्ष हो जाता है, वर्ना करोड़ों उपायों से भी मोक्ष नहीं हो सकता। उपाय से मोक्ष नहीं होता, उपेय से मोक्ष होता है।
  18. अज्ञान से मुक्ति, यह भाव मोक्ष है और बाद में द्रव्य मोक्ष होता है।
  19. परम विनय से ही मोक्ष है। क्रियाएँ नहीं करनी हैं, परम विनय में आ जाना है।
  20. मोक्ष मार्ग मुश्किल नहीं है। संसार मार्ग मुश्किल है। सब से आसान है मोक्ष मार्ग। खिचड़ी बनाना भी उससे ज़्यादा मुश्किल है!
  21. मोक्ष अर्थात् क्या? दृष्टि भेद हो जाना चाहिए। ‘ज्ञानी पुरुष’ दृष्टि भेद करवा देते हैं।
  22. मोक्ष अर्थात् सिर्फ दृष्टि ही बदलनी है।
  23. जो ‘सही बात जानने’ का कामी है उसे इस काल में मोक्ष मार्ग मिल जाएगा, उसके लिए आज ‘मैं’ ‘भगवान’ की तरफ से ‘गारन्टी’ देता हूँ।
  24. जिसे मोक्ष में जाने की पक्की इच्छा है, उसे कहीं से भी मार्ग मिल जाएगा।

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