आप भगवान की खोज में है। आप भगवान को जानना चाहते हैं। आप भगवान के कार्य को जानना चाहते हैं। आप भगवान का पता जानना चाहते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण, आप भगवान के साथ होना चाहते हैं।
लेकिन, भगवान क्या है?
क्या भगवान इस ब्रह्मांड का निर्माता है? या वह दुनिया का शासक है?
क्या वह परमात्मा है? या वह किसी प्रकार का नैतिक अधिकार है?
क्या भगवान जीवन है? या भगवान आशा है?
क्या भगवान प्रेम है? या भगवान सत्य है?
'भगवान क्या है?' लोगों के प्रश्नों के उत्तर ढूंढने में मदद के लिए अनगिनत किताबें लिखी गई है। हालांकि, तथ्यों की पूरी स्पष्टता नहीं मिलने से, एक स्पष्ट तस्वीर कभी चित्रित नहीं होती है।
आज, आपकी 'भगवान को जानने' की खोज आपको यहाँ ले आई। तो आइए, 'भगवान क्या है?', उस पर हमें कुछ स्पष्टता मिलती है।
हममें से अधिकांश के लिए, भगवान की छवि हमारे मन में स्वाभाविक रूप से विकसित हुई होती है जब से हम युवा होते हैं और आमतौर पर हमारे परिवार जिस धर्म का पालन करते हैं तब से। परिणाम स्वरूप हम 'भगवान' के रूप में विश्वास करते हैं, स्वीकार करते हैं और सम्मान करते हैं।
उदाहरण के लिए, हम 'भगवान कृष्ण' की पूजा करने वाले व्यक्ति का उदाहरण लेते हैं:
अन्य भगवानों के भक्तों के लिए भी यही विचार प्रक्रिया सत्य है।
वे सभी जिनका नाम हम भगवान, भगवान महावीर, भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान शिव, आदि के रूप में लेते हैं - वह सामान्य मनुष्य थे, जिन्हें उनके जीवन में बाद में भगवान के रूप में स्वीकारा गया और पूजा जाता है। इसका मतलब है कि भगवान एक नाम नहीं है बल्कि एक आम विशेषण है। जो उन लोगों का वर्णन करने के लिए दिया जाता है जिन्होंने अपने सभी कर्मों को समाप्त कर दिया है। उन्होंने ऐसा आदर्श और अनुकरणीय जीवन जिया है कि हजारों वर्षों के बाद भी लोग आज भी उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं।
जब वे जीवित थे, तब इन महापुरुषों ने विभिन्न धर्मों संप्रदायों या अनुष्ठानों को पालन करने के लिए नहीं बनाया, और ना ही उन्होंने खुद को भगवान के रूप में संदर्भित किया। उन्होंने महसूस किया कि भगवान क्या है और उन्होंने इसे दुनिया को समझाया। उन्होंने भगवान को महसूस किया और लोगों को भगवान का एहसास कराया।
उन्होंने दुनिया को सिखाया कि: भगवान हमारे सच्चे स्वरूप के अलावा कुछ नहीं है।
भगवान ना तो निर्माता है और ना ही दुनिया का शासक। भगवान शुद्ध आत्मा के रूप में, अविभाज्य रूप में हम में से हर एक के भीतर है। जब तक आपके पास 'मैं कौन हूँ' की अज्ञानता है और उस अज्ञानता से आप यह मानते हैं कि 'मैं यह शरीर हूँ ', आप एक साधारण जीव है; और जब आप महसूस करते हैं कि 'मैं शरीर या शरीर को दिया गया नाम नहीं हूँ; मैं केवल एक शुद्ध आत्मा हूँ ' फिर आप स्वयं भगवान है।
यह हमारी पांच इंद्रियों में से किसी से भी देखा, महसूस,या समझा नहीं जा सकता है, इसे केवल अनुभव किया जा सकता है। इसके अंतर्निहित गुणों के कारण इसे अनुभव किया जा सकता है। आत्मा में अनंत गुण हैं और भगवान क्या है, इसकी यही परिभाषा है। इसलिए,
प्रत्येक जीवित व्यक्ति की आत्मा हर तरह से परिपूर्ण है जीवित व्यक्ति जिसके भीतर वह रहता है उसके आंतरिक विचारों या बाहरी कार्यों से पूरी तरह से वह स्वतंत्र है। जिस तरह तेल और पानी कभी नहीं मिलते हैं, उसी तरह आत्मा और शरीर (जिसमें आत्मा रहेता है), वे कभी नहीं मिलते हैं। हम इसके अस्तित्व से अनजान हैं और इसके गौरवशाली गुणों का अनुभव नहीं कर सकते, क्योंकि यह अज्ञानता के अनंत आवरण से ढका हुआ है।
अज्ञान के यह अनंत आवरण आत्म साक्षात्कार के बाद ही टूट सकते हैं। यह वह क्षण होता है जब आप अपने कर्मों को बांधना बंद कर देते हैं और अपने सभी पुराने कर्मों को पूरा करना शुरू कर देते हैं। जब यह सभी कर्म समाप्त हो जाते हैं तो शुद्ध आत्मा पूरी तरह से जागृत हो जाता है और जो बचता है वह पूर्ण परमेश्वर है।
भगवान की पदवी और प्रतिष्ठा ऐसे ज्ञानी को दिया जाता है जिनमें आत्मा के निहित गुण पूरी तरह से प्रकट हो गए हैं। इस प्रकार, भगवान एक नाम नहीं है, बल्कि एक विशेषण है जो इन प्रकार के ज्ञानी का वर्णन करता है।
हम इन ज्ञानीपुरुष को प्रगट परमात्मा के रूप मे पूजते हैं, क्योंकि हम भी एक दिन उनकी तरह बनना चाहते हैं।
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