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भगवान कैसे बनें?

अगर हमें यह पता हो कि भगवान कैसे होते हैं, तब हम यह जान पाएंगें कि हम भगवान जैसे कैसे बन सकते हैं।

तो आइए हम प्रयास करते हैं और भगवान को समझते हैं:

  1. ईश्वर वह है जो स्वयं को जानता है। आत्मा कुछ और नहीं बल्कि शुद्ध आत्मा है। भगवान को 'मैं शुद्ध आत्मा हूं' का पूर्ण अनुभव में है। इसलिए, उनकी मान्यता में कभी गलती नहीं रहती है कि 'मैं शरीर या यह नाम है।'
  2. भगवान के पास निर्दोष दृष्टि है, यानी वह स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि इस दुनिया में किसी का दोष नहीं है। हम जो भी दुःख अनुभव करते हैं वह हमारी अपनी गलती के कारण ही होता है।
  3. भगवान ने अपनी सभी गलतियों को खत्म कर लिया है, और इसी तरह से वह परमात्मा बन गए हैं।

इसलिए, एक जीवित भगवान पद की प्राप्ति के लिए:

१. पहला कदम है आत्मज्ञान प्राप्त करना।

कैसे?

आत्मज्ञान ज्ञानी पुरुष से मिलने पर ही प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञानी पुरुष हमारे सांसारिक जीवन में हमसे कोई फेरफार नहीं करवाते हैं और ना ही उसमें बाधा डालते हैं। वह केवल उस मूल कारण जिस पर हमारा सांसारिक जीवन आधारित है वह अज्ञानता दूर करते है; और वे हमें 'मैं कौन हूँ?' प्रश्न का उत्तर देकर, आत्माज्ञान की अनुभूति करवा कर हमें जाग्रत करते हैं जिसके बाद नए कर्म बंधने बंध हो जाते है।

अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान के माध्यम से यह आज भी संभव है, आत्म-साक्षात्कार के लिए बिना कर्म का मार्ग। प्रत्यक्ष आत्मज्ञानी से मिलके कोई भी व्यकित आत्मज्ञान को प्राप्त कर सकते है और उनके द्वारा आत्म ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।

जब आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है तब निर्दोष दृष्टि उत्प्पन होती है और, यह नई बदली हुई दृष्टि से सामनेवाला निर्दोष दिखता है।

२. दूसरा कदम यह है कि जब हम अपनी खुद की भूलें देखेगे और उन्हें मिटाएँ, तब हमें भगवान पद की प्राप्ति होगी।

परम पूज्य दादाश्री ने हमेशा कहा है, "अपनी गलतियों को कौन देख सकता है? यह वही देख सकता है जिसके पास निर्दोष आचरण की पूर्ण दृष्टि है, भले ही उसका आचरण अभी तक निर्दोष नहीं है। वह व्यक्ति पूरी तरह से मुक्त होता है।"

इसलिए, भगवान पद की प्राप्ति के लिए हमारे अपने अगले कदम में, जब भी हम अपने विचारों, वाणी या कार्यों से दूसरों को दुःख पहुँचाएंगें, तो हम समझेंगे कि यह हमारी गलती है और हमको तुरंत ही प्रतिक्रमण करके इसके लिए क्षमा मांगेंगे

'प्रतिक्रमण' का अर्थ है अपनी गलती पर पश्चाताप करना और जिस व्यक्ति को हमने दुःख पहुँचाया है, उसके भीतर बैठे हुए भगवान (शुद्ध आत्मा) से उस गलती के लिए क्षमा मांगेगे। प्रतिक्रमण शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए सबसे बड़े हथियारों में से एक है।

प्रतिक्रमण कैसे करें

सच्चे दिल से पश्चाताप के साथ, सामने वाले व्यक्ति के अंदर बैठे हुए भगवान (शुद्ध आत्मा) को याद करेंके मन में कहें:

  1. "हे भगवान! मैं आपसे माफी मांगता हूं कि मैंने आपको दु:ख पहुंचाया।
  2. उसके लिए मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ।
  3. और मैं निश्चय करता हूं कि फिर से ऐसी गलती कभी भी नहीं करूँगा।"

प्रतिक्रमण करने से हमारी भूल की एक परत उतर जाती है। प्रतिक्रमण करने पर भी वही गलती फिर दोबारा होगी, क्योंकि हर गलती की कई परतें होती हैं। एक बार जब किसी विशेष गलती की सभी परतें उतर जाती हैं, तो गलती पूरी तरह से नष्ट हो जाती है।

निष्कर्ष

  1. आत्माज्ञान से, हमारे नए कर्म बंधने बंध हो जाते है, और
  2. अपनी भूलों के प्रतिक्रमण करने से, हम निर्दोष आचरण का विकास करने लगते है।

इस प्रकार, हम दिन प्रतिदिन भगवान पद की प्राप्ति करते है।

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