माँ सरस्वती ज्ञान कि देवी है!
माँ सरस्वती की पूजा की परिभाषा क्या है?
इसका अर्थ है, कि हमे किसी भी प्रकार से, वाणी का दुरुपयोग नहीं करना या स्वार्थ पूर्ण भाषा का प्रयोग नहीं करना।
यदि आप, वाणी के नियमो का पालन करते है, तो माँ सरस्वती आप पर प्रसन्न होती है। माता आपकी वाणी को, ऐसी शक्ति प्रदान करती है, जिससे कि आपके द्वारा बोले गए शब्द वांछित उत्पन करते है और जिनके लिए बोला जा रहा है, उनके लिए भी लाभदायक सिद्ध होता है!
ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों ने वाणी के नियमों का पालन नहीं करते है। इसके बजाय, वे वाणी के नियमो का उल्लंघन करते है:-
वचनबल उत्पन्न होना या उसकी शक्ति बढ़ना, तब होता है जब आप:
जिस वाणी में किसी को भी ठेस न पहुचाने कि भावना है, वह सभी को स्वीकार होती है। इसीलिए ऐसे शब्द बोले, जिसमे किसी के लिए दुर्भावना ना हो, प्रिय शब्द बोले, जो दुसरे को आनंदित करे और उन्हें स्वीकार्य हो, कोमल, बोधिक और सत्यानिष्ट वचन बोले, जिनके प्रयोग से, दुसरो तो ठेस ना पहुचें।
सदेव सत्य बोलने का, दृढ़ और पवित्र निश्चय रखे, और कुछ नहीं, केवल सत्य। यदि आपसे झूठ बोला गया, तो दिल से पश्चाताप करे और भगवान से क्षमा मांगें।
अब तक आपने मंदिरों में मूर्तियों के रूप में, किताबों में चित्रों के रूप में और शास्त्रों में पाठ के रूप में देवी के दर्शन किए हैं। लेकिन क्या होगा अगर आपको मां सरस्वती को जीवित रूप में देखने का मौका मिले? जब आप उन्हें प्रत्यक्ष रूप में देखेंगे, तो वाणी के नियमों का पालन कम से कम दृढ़ता और सबसे अधिक उत्साह के साथ होगा।
यदि आप साक्षात् माँ सरस्वती के दर्शन करना चाहते है, तो आप ज्ञानी पुरुष, आत्मज्ञानी कि वाणी सुनकर कर सकते है।
सरस्वती देवी जो आप, चित्रों, पुस्तकों और शास्त्रों में देखते हो, वह अप्रत्यक्ष है (परोक्ष)। जबकि, ज्ञानी की वाणी में प्रत्यक्ष सरस्वती हैं; जीवंत सरस्वती। ज्ञानी द्वारा बोले गए शब्दों में ही देवी सरस्वती का वास है।
ज्ञानी कि वाणी, ज्ञान से परिपूर्ण और सुनने के योग्य होती है। उनकी वाणी को सभी स्वीकार करते हैं, क्योंकि इससे किंचितमात्र भी ना तो किसी को ठेस पहुँचती है और न ही किसी के व्यू पोइन्ट को हानि पहुँचती है। उनकी वाणी की शक्ति ऐसी है कि वह अज्ञान के परदे को तोड़ देती है और वास्तविकता का पूर्ण पहचान करा देती है, कि हम वास्तव में कौन हैं। यही अद्भूत शक्ति ज्ञानी के शब्दों में रहती है! इन्ही शब्दों को साक्षात सरस्वती कहा जाता है, क्योंकि इसमें आत्मा का सार होता है! और इसलिए लोग ज्ञानी के एक-एक शब्द पर धन्य- धन्य हो जाते हैं!
नीचे सरस्वती के वास्तविक अर्थ से संबंधित ज्ञानीपुरुष दादा भगवान के महात्मा के साथ हुई बातचीत के कुछ अंश हैं।
प्रश्नकर्ता : प्रत्यक्ष सरस्वती यानी माय स्पीच नहीं, अर्थात् कैसी वाणी कहलाती है वह?
दादाश्री : बिना मालिकीवाली वाणी सरस्वती कहलाती है। और दुनिया के ये सभी लोग जो बोलते हैं, उसे माय स्पीच (मेरी वाणी) कहते हैं अर्थात् पॉइज़नवाली। जहाँ पर माय (मेरा) है, वहाँ पर पॉइज़न (ज़हर) कहलाता है। विपरीत बुद्धि पूरे वर्ल्ड में फैल चूकी है।
ज्ञानीपुरुष तो खुद की रिकॉर्ड धोते हुए ही आए हैं। तो ऐसी सुंदर रिकॉर्ड लेकर आए हैं, जो जगत् का कल्याण कर दे। सुनते ही प्योरिटी आ जाए। जिस वाणी में राग-द्वेष नहीं है, जो वाणी लोगों के लिए हितकारी है। जिस वाणी में अंश मात्र भी इगोइज़म (अहंकार) नहीं रहता।
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