ईश्वर वह आत्मा है जो आपके भीतर, हमारे भीतर, हर जीव के भीतर रहते है।
देह बाहरी पैकिंग है और जो भीतर रहता है वह ईश्वर है, जो हमारा वास्तविक स्वरूप है!
हालाँकि, यह आत्मा निराकार और अदृश्य है। इसे भौतिक आंखों से नहीं देखा जा सकता है, लेकिन आत्मा के आंतरिक गुणों का अनुभव करके ही आत्मा का अनुभव किया जा सकता है। इसलिए, भगवान को पहचानने और उन्हें अनुभव करने के लिए, यह जानना महत्वपूर्ण है कि उनके गुण क्या हैं।
तो आइए, हम भगवान के कुछ मुख्य गुणों को समझें ...
आत्मा एक शाश्वत तत्व है। प्रत्येक आत्मा प्रकृति में स्थायी है। इसकी न तो कोई शुरुआत है और न ही कोई अंत है। यह था, यह है और हमेशा रहेगा। यह न तो कभी मरता है और न ही कभी पैदा होता है; यह अमर है।
भगवान के पास अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत शक्ति और अनंत सुख है!
ये विशेषताएँ ईश्वर के लिए अद्वितीय हैं अर्थात् ये आत्मा के सिवाय अन्य किसी भी शाश्वत तत्व में नहीं पाई जाते हैं। ये आत्मा के सभी गुणों में सबसे शक्तिशाली या सबसे बड़े गुण हैं, क्योंकि आत्मा को इन विशेष गुण के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है।
भगवान यह सब जानते है! आत्मा के पास ‘देखने या जानने’ की अनंत शक्ति है '।
हमारी भौतिक आँखें या पाँच इंद्रियों में से कोई भी एक उस मामले के लिए बाहरी माध्यम है। जिसके द्वारा चीजें देखी या जानी जाती हैं। देखने और जानने का मुख्य तत्व आत्मा का है और इस दुनिया में बाकी सब कुछ केवल देखने और जानने के लिए एक वस्तुमात्र है।
आत्मा न केवल बाहरी सांसारिक वस्तुओं को देख और जान सकता है , बल्कि आंतरिक शरीर परिसर अर्थात मन, बुद्धि, अहंकार, बिलिफ, अभिप्राय, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, आदि जो हर किसी के भीतर हैं।
आत्मा अपने अनंत दर्शन गुण के माध्यम से वस्तुओं को देखने में सक्षम है; और अनंत ज्ञान की अपने गुण के कारण इसमें सभी अनंत तत्वों की प्रत्येक अवस्था को जानने का तथा खुद को जानने का भी ज्ञान होता है ।
आत्मा कुछ और नही बल्कि ठोस, सघन, अखंड, निरंतर ज्ञान है। इस प्रकार भगवान को सर्वज्ञ या सर्वव्यापी के रूप में परिभाषित किया गया है !!!
अनंत शक्ति आत्मा की एक और आंतरिक गुण है जिसके कारण दुनिया की अनंत ज्ञेयो को देखने और जानने के बावजूद, यह कभी भी उनमें से किसी के साथ लिप्त नहीं होता है।
विभिन्न प्रकार के परमाणु हैं जो आत्मा पर आवरण लाते हैं और अनादिकाल से ही मोक्ष के मार्ग पर आत्मा के लिए असंख्य अंतराय उत्पन्न कर रहे हैं। हालाँकि,आत्मा अपनी अनंत शक्ति (जिसका वह मालिक है) की गुण के कारण, अपनी सम्पूर्ण शुद्धता को बनाए रखते हुए इन प्रत्येक परमाणु से जुदा रहने मे सक्षम है।
इसी अनंत शक्ति के कारण आत्मा किसी भी बाहरी चीज वस्तु मे घुलता-मिलता नही है और हमेशा अपने स्वभाव मे रहते है, सर्वशक्तिमान की शक्ति का प्रतिक है,अर्थात सर्व-शक्तिशाली, सर्वशक्तिमान ईश्वर !!!
सांसारिक सुख, सुख और दुःख दोनो का मिश्रण है; यह सुख स्वभाव से अस्थायी होता है इसलिए यह आता है और चला जाता है। हालाँकि, आत्मा कभी भी किसी भी सांसारिक सुख या यहाँ तक की मोहनीय कर्म जो भ्रांतिमय सुख की ओर आकर्षण उत्पन्न करने वाले कर्मो के प्रति आसक्त या आकर्षित नहीं होता है। वहीं दूसरी तरफ़, बाहरी परिस्थिति चाहे कितनी भी कष्टदायी क्यों न हो, उसमे आत्मा को किंचितमात्र भी भुगतना नही पड़ता। ऐसा इसलिए है क्योंकि आत्मा का अपना स्वभाव परमानंद वाला है ।
भगवान हमेशा इस अनंत सुख में डूबे रहते हैं - आत्मा का शाश्वत सुख, जो किसी भी परिस्थिति में घटता नही है। और वह वहाँ हमेशा रहता है, ऐसा है भगवान का अनंत सुख का गुण !!!
अपने स्वभाव से ही, आत्मा अन्य सभी शाश्वत तत्वों से पूरी तरह से असंग है।
हम अक्सर कहते हैं, ‘मैं अपनी राग और द्वेष से छुटकारा पाना चाहता हूं।‘ हम ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि हम यह नही जानते कि आत्मा कभी भी राग और द्वेष के परमाणुओं द्वारा मटमैला या बिगड़ा हुआ नही है। यह हमेशा से अलग रहा है और इसलिए पहले से ही सभी आसक्तियों से मुक्त है। यह कभी भी किसी भी व्यक्ति या वस्तु के प्रति आकर्षित नहीं हुआ है, न ही वह कभी किसी सुख या दुःख का आनंद लिया है।
शरीर इस दुनिया की सभी चीज वस्तुओं के सम्पर्क मे आता है पर इसके बावजूद, भीतर आत्मा, अपने आंतरिक स्वभाव के कारण इन सभी चीज वस्तुओं से सदैव मुक्त रहता है और इसलिए इस दुनिया में कुछ भी ऐसा नही है जो स्वयं को प्रभावित कर सकता है। आत्मा हमेशा उन सभी लेपायमान भावों और अभिप्रायों से निर्लेप है जो जड़ के हैं और स्वयं के नहीं।
आत्म साक्षात्कार के बाद, भले ही किसी से झगड़ा क्यों ना हो जाए, उसे किसी भी तरह की राग या द्वेष का अनुभव नहीं होता है, क्योंकि आत्मज्ञान प्राप्त हुआ व्यक्ति जानता है कि ‘मै निश्चित रूप से निस्संदेह शुद्ध आत्मा हूं।'
भगवान वह हैं जो हमेशा के लिए सभी आसक्तियों से मुक्त हैं।
ईश्वर सर्व-प्रिय है, शुद्ध प्रेम भी ईश्वर का गुण है!
किसी को आश्चर्य हो सकता है कि भगवान असंग हैं और उनका प्रेम शुद्ध है, यह कैसे संभव है?
ऐसा इसलिए है क्योंकि शुद्ध प्रेम सांसारिक प्रेम से बहुत अलग है। शुद्ध प्रेम आसक्ति से मुक्त है; और इसलिए, यह मनुष्यों के बीच होने वाली अपेक्षाओं या शर्तों तथा पक्षपात या भेदभाव रूपी मलिनता(गंदगी) से मुक्त है।
भगवान सर्वव्यापी हैं, उनका प्रेम प्रत्येक जीव पर, हर क्षण निरंतर बहता रहता है।
भगवान बिल्कुल शुद्ध हैं। बाहरी परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, आत्मा पर आवरण लानी वाली अशुद्धियां चाहे कितनी ही बड़ी और गंभीर क्यों न हों आत्मा को कभी भी कुछ भी दूषित नही कर सकता है। आत्मा सदैव पूर्ण रूप से शुद्ध स्थिति में था, है और रहेगा - ऐसी है इसकी विशेषता!
परिस्थितियों के कारण, जड़ तत्व ओर आत्मा तत्व युगों से एक साथ रहे है; हालाँकि, दोनों में से किसी ने भी अपने व्यक्तिगत आंतरिक गुणों को नहीं खोया है। ठीक उसी तरह जैसे अगर हम एक बोतल में तेल और पानी को मिलाते हैं और उसे अच्छी तरह से हिलाते हैं, तो तेल अपने स्थान पर बना रहेगा और पानी अपनी जगह अलग रहेगा क्योंकि दोनों की प्रकृति अमिश्रणीय है।
इसी तरह, हमारी आत्मा हमेशा शुद्ध ज्ञान के रूप में शरीर से अलग है। पेड़ों, जानवरों, मनुष्यों, देवी-देवता आदि जीवन रूपों का अनुभव करने के पश्चात भी आत्मा की शुद्धता बिल्कुल भी दूषित नहीं हुई है।
यही कारण है कि अक्रम विज्ञान में, ज्ञानी पुरुष हमारे शुद्ध आत्मा को अर्थात आत्मा और प्रकृति अलग करके केवल एक घंटे के समय में हमें भगवान पद की प्राप्ति करवा सकते हैं!
पांच इंद्रियों के माध्यम से हम जो भी अनुभव करते हैं; जैसे की हमारा मन, बुद्धि, अहंकार, वाणी, आदि सभी रूपी हैं, जबकि आत्मा स्वयं निराकार है। आत्मा का कोई शरीर नही होता है।
शरीर के भीतर का हिस्सा, जो अदृश्य है, वह आत्मा (स्वयं) है। आत्मा ज्ञान है। और ज्ञान अदृश्य है। जिन वस्तुओं को ज्ञान के द्वारा देखा जा सकता है वे रूपी हैं और दृश्यमान हैं, लेकिन ज्ञान स्वयं अदृश्य है।
तो, भगवान प्रत्येक जीवमात्र के भीतर हैं, लेकिन अदृश्य हैं और उनका अपना कोई रूप या आकार नही है।
ईश्वर सूक्ष्मतम है। आत्मा इतना सूक्ष्म है कि अग्नि उसे जला नही सकती और पहाड़ उसे रोक नही सकते! हाँ, आत्मा बहुत ही आसानी से पहाड़ को, आग को या किसी भी चीज़ को बिना किसी बाधा के पार कर सकता है।
ईश्वर के साथ कभी भी कुछ नही हो सकता क्योंकि आत्मा (ईश्वर) को कभी भी कुछ भी छू नही सकता है... आत्मा (ईश्वर) ऐसा सूक्ष्म है !
आत्मा अविनाशी (जिसका कभी विनाश नही हो सकता) है। टेम्पररी चीज़े विनाशी होती हैं; वे अस्तित्व में आती हैं और कुछ समय बाद उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है, जबकि शाश्वत चीजें अविनाशी हैं।
ईश्वर अनादि हैं और इसलिए अविनाशी हैं!
आत्मा का सहज स्वभाव है कि यह न तो बढ़ता है और न ही कभी घटता है।
क्रोध, मान, माया, लोभ ऐसे हैं जो हमेशा बढ़ते और घटते रहते हैं। जैसे हम क्रोध को बढ़ते और घटते देख सकते हैं उसी प्रकार से हम अपनी सभी कमज़ोरियों और ताकतों को बढ़ते और घटते देख सकते हैं। अहंकार भी अपने स्वभाव से कभी खुश हो जाता है और कभी उदास हो जाता है।
जो कुछ भी बढ़ता है या घटता है वह स्वभाव से में विनाशी कहा जाता है और आत्मा कभी भी इसमें लिप्त नहीं हुआ है। इस प्रकार भगवान अविनाशी और स्थिर हैं, वह न तो कभी बढ़ते हैं और न कबी घटते हैं।
दुःख या परेशानी कभी भी आत्मा को छू नही सकती। आत्मा की स्वभाविक विशेषता ऐसी है कि वह किसी को दुःख नही दे सकता है और न ही किसी से दुःख पा सकता है; यह किसी को भी दर्द नहीं दे सकता है और न ही कोई इसे दर्द दे सकता है। यह न तो मार सकता है और न ही मारा जा सकता है।
आत्मा को कभी कुछ नहीं हो सकता। जैसे जैसे व्यक्ति ईश्वर(आत्मा) का अनुभव प्राप्त करता जाता है, वैसे-वैसे इस गुण का अधिक से अधिक अनुभव होता है।
आत्मा के गुण असाधारण हैं, विशेष और अनंत और असीमित हैं। ईश्वर के गुण बहुत, बहुत अलग हैं; ऐसा कुछ जो हमने इस बाहरी दुनिया में कभी नहीं देखा।
वही ईश्वर को श्रेष्ठ बनाता है!
भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान महावीर और कई अन्य आत्मज्ञानी हैं जिनके भीतर आत्मा अपने सभी गुणों के साथ पूरी तरह से प्रकट हुई है। इसलिए दुनिया उन्हें भगवान कहती है।
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