कृष्ण का साक्षात्कार
प्रश्नकर्ता: मीरा को, नरसिंह को, कृष्ण का साक्षात्कार किस तरह हुआ था?
दादाश्री: जो मीरा को और नरसिंह को दिखाई दिए वे कृष्ण नहीं थे, उसे देखनेवाला कृष्ण है! जो कहता है कि, ‘कृष्ण भीतर दिखाई देते हैं, वह तो दृश्य है, उसे देखनेवाला दृष्टा, वही सच्चा कृष्ण है और उस सच्चे कृष्ण के साक्षात्कार तो सिर्फ ‘ज्ञानीपुरुष’ ही करवा सकते हैं। उस समय ‘ज्ञानीपुरुष’ नहीं थे इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उन्हें सच्चा साक्षात्कार हुआ था, लेकिन नरसिंह, मीरा, कबीर, अखा, ज्ञानदेव, तुकाराम वगैरह सभी भक्त अभी यहीं पर हैं, कोई भी मोक्ष में नहीं गया है, इस काल में हमसे स्वरूप का ज्ञान ले गए हैं!
जब तक तू भक्त है तब तक भगवान तुझसे अलग हैं। जब भक्त और भगवान एक हो जाते हैं, तब काम पूर्ण होता है। कृष्ण को तो कोई पहचान ही नहीं सका। कृष्ण को किसीने बंसरीवाला तो किसीने गोपियोंवाला वगैरह-वगैरह बनाया। कोई भी तसवीरें बेचे और हम खरीद लेते हैं फिर उनकी आराधना करते हैं, यह सब व्यापार है! कृष्ण वैसे नहीं हैं। आप जैसी कल्पना करते हो, वे वैसे नहीं हैं। यह तो, लोग बालकृष्ण की भजना करते हैं। कोई ज्ञान में बूढ़े हो चुके, ज्ञानवृद्ध हो चुके योगेश्वर कृष्ण को नहीं भजते। बालकृष्ण को लोग झूले में बैठाते हैं। कृष्ण कहते हैं, ‘लोग उल्टे हैं, हर साल लोग मेरे जन्मदिन पर भूखे रहते हैं और दूसरे दिन मालमलीदा खाते हैं। ऐसे मेरे खुद के ही भक्त मेरे विरोधी बन गए हैं। मुझे मुरलीवाला बनाते हैं, कपटी कहते हैं, लीला करते हैं, ऐसा कहते हैं। मेरा जितना उल्टा हो सके, उतना उल्टा करते रहते हैं।’ मूर्त के दर्शन करने से मूर्त बना जाता है और अमूर्त को भजने से अमूर्त बना जाता है, उससे मोक्ष मिलता है। स्वरूप में रमणता वह चारित्र है। शुद्ध दशा से अभेदता लगती है। आत्मवत् सर्वभूतेषु लगता है, वह निरा शुद्ध है। ज्ञान-दर्शन-चारित्र और सुख उत्पन्न हुआ, वही ज्योत है। यह दीया वह नहीं है। ज्ञाता-दृष्टा वही कृष्ण। दृश्य, वह कृष्ण नहीं है।
प्रश्नकर्ता: चिंता तो रात-दिन करते हैं, लेकिन हमें चिंता नहीं करनी है फिर भी हो जाती है, तो फिर क्या उपाय करना चाहिए?
दादाश्री: इसमें कृष्ण की आज्ञा का उल्लंघन होता है, लेकिन साथ-साथ इसका इलाज भी है। आपको रोज़ सुबह पाँच बार कृष्ण भगवान की फोटो के सामने दोनों हाथ जोड़कर कहना चाहिए कि, ‘हे भगवान, आपने कहा है कि तू एक भी चिंता मत करना। क्योंकि करना-करवाना सब आपके हाथ में है, फिर भी मुझसे चिंता हो जाती है तो क्या करूँ? मेरी तो दृढ़ इच्छा है कि एक भी चिंता नहीं करूँ। इसलिए हे भगवान ऐसी कुछ कृपा कीजिए, ऐसी शक्ति दीजिए कि फिर से चिंता नहीं हो।’ इसके बावजूद यदि फिर से चिंता हो तो फिर से भगवान से ऐसे विनती करना। ऐसे करते ही जाओ, फिर कोई भी चिंता नहीं होगी, ऐसे हम लोगों ने कृष्ण भगवान से तार जोड़ा! और जाओ, ‘हमें’ याद करके, हमारा नाम लेकर कृष्ण भगवान से रोज़ सुबह पाँच बार ऐसे कहना, फिर यदि चिंता हो तो हमारे पास आना। यदि अपनी नीयत साफ होगी, कृष्ण के सच्चे भक्त हैं तो फिर किसलिए चिंता होगी? कृष्ण से हमें साफ-साफ कहने में क्या परेशानी है? सच्ची भावनावाला तो भगवान को भी गालियाँ दे सकता है। भगवान को कौन गाली दे सकता है? जो सच्चा पुरुष हो वही भगवान को गाली दे सकता है। इसमें कहाँ डरने की बात है? भगवान से कह सकते हैं कि, ‘हमें चिंता नहीं करनी है, हमारी मर्ज़ी बिल्कुल आपकी आज्ञा में ही रहने की है। फिर भी चिंता हो जाती है तो हम क्या करें? हम तो आपकी शरण में रहते हैं और आपको डाँटेंगे भी सही।’
*चन्दूलाल = जब भी दादाश्री 'चन्दूलाल' या फिर किसी व्यक्ति के नाम का प्रयोग करते हैं, तब वाचक, यथार्थ समझ के लिए, अपने नाम को वहाँ पर डाल दें।
Book Name: आप्तवाणी 2 (Page #378 - Paragraph #2 to #4, Page #379 - Paragraph #1)
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