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अरिहंत भगवान किसे कहते हैं?

अरिहंत भगवान कौन है?

  • जो सिद्ध नहीं है और देहधारी केवल ज्ञानी है, वे अरिहंत कहलाते है।
  • वे केवल ज्ञानी जिन्होने सभी शत्रुओं का नाश किया हो, क्रोध-मन-माया-लोभ-राग-द्वेष रूपी शत्रुओं का नाश किया हो, उन्हे अरिहंत कहते हैं। वे पूर्ण स्वरुप भगवान कहलाते है!
  • जो मौजूद है उन्हें (अरिहंत कहा जाता है)। जो मौजूद नहीं  है, उन्हे अरिहंत नहीं कहा जा सकता। प्रत्यक्ष-प्रगट होने चाहिए।

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परिचय, अरिहंत भगवान का

  • अरिहंत भगवान का अर्थ है मोक्ष से पहले की अवस्था। ज्ञान में  सिद्ध भगवान जैसी स्थिति है लेकिन उनके लिए कुछ बंधन बचा है। जिस तरह दो आदमियों को साठ साल की सज़ा सुनाई गई थी - एक आदमी को जनवरी के पहले दिन और दूसरे को जनवरी के तीसरे दिन । साठ साल हो चुके हैं। पहले व्यक्ति को मुक्त किया गया। दूसरे व्यक्ति को दो दिनो के बाद रिहाई मिलेगी। लेकिन वह मुक्त ही कहा जाता है ना? ऐसी उनकी स्थिति है!
  • अरिहंत को बहुत बड़ा रूप कहा जाता है। पूरे ब्रह्मांड में किसी के पास उस समय उस तरह के परमाणु नहीं है। सारे सर्वश्रेष्ठ परमाणु केवल उनके शरीर में व्यवस्थित हो गए। फिर वह शरीर कैसा! वह वाणी कैसी! वह रूप कैसा! वह सारी बातें कैसी! उनकी तो बात ही अलग है ना ?! इसीलिए उनके साथ किसी को नहीं रक्खा जा सकता! तीर्थंकर को एक अद्भुत मूर्ति कहा जाता है जिसके साथ किसी को नहीं रक्खा जा सकता।
  • अरिहंत तो हमेशा अरिहंत ही रहेंगे और अरिहंत ही देशना (उपदेश) देते है।
  • 'अरिहंत कौन है!' अगर यह जाने तो दर्द कम होंगे । केवल अरिहंत ही इस संसार के रोगों को मिटा सकते है।
  • सर्वश्रेष्ठ उपकारी अरिहंत कहलाते है। अरिहंत! उन्होंने स्वयं छह शत्रुओं पर विजय प्राप्त किया और हमें विजय का मार्ग दिखाते है, हमें आशीर्वाद देते है। इसीलिये उन्हें हमने पहले रक्खा है। उन्हें हम बहुत उपकारी मानते हैं।
  • अरिहंत तो सीमंधर स्वामी हैं, अगर अन्य उन्नीस तीर्थंकर हो, तो फिर जो वर्तमान तीर्थंकर है उन्हें अरिहंत कहा जाता है।

अरिहंत भगवान अब कहाँ है?

सीमंधर स्वामी ब्रह्मांड में हैं। वह आज अरिहंत है, इसलिए उन्हें नमस्कार करो। वे अभी भी मौजूद है। अरिहंत के रूप में होने चाहिए, तब हमें फल मिलता है। इसीलिए अगर हम, यह समझके, कि सारे ब्रम्हाण्ड में अरिहंत जहां भी है, उन्हें हम नमस्कार करते है, तो बहुत सुन्दर फल मिलता है।

आइए, हम परम पूज्य दादाश्री के साथ हुए संवाद के माध्यम से, अरिहंत भगवान के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं...

प्रश्नकर्ता: क्या अरिहंत देहधारी होते है?

दादाश्री: हाँ, देहधारी ही होते है। अगर देहधारी नहीं है, तो उन्हें अरिहंत नहीं कहा जा सकता। उनका एक शरीर (देहधारी) और एक नाम (नामधारी) है।

यह ‘नमो अरिहंताणं’ जो हम बोलते हैं वह किसे पहुँचता है? अन्य क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ अरिहंत हैं उन्हें पहुँचता है। महावीर भगवान को नहीं पहुँचता। डाक तो हमेशा उसके पते पर ही पहुँचेगी। जबकि लोग क्या समझते हैं कि यह ‘नमो अरिहंताणं’ बोलकर हम महावीर भगवान को नमस्कार पहुँचाते हैं। वे चौबीस तीर्थंकर तो मोक्ष में जाकर बैठे हैं, वे तो ‘नमो सिद्धाणं’ हो चुके हैं। वे भूतकालीन तीर्थंकर कहलाते हैं। यानी कि आज सिद्ध भगवान कहलाते हैं और जो वर्तमान तीर्थंकर हैं, उन्हें अरिहंत कहा जाता हैं।

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