प्रश्नकर्ता : हम कैसे तय कर सकते हैं कि यह आत्मदशा साध रहे हैं या नहीं?
दादाश्री : हाँ, हम उसके बाधक गुण देख लें तो पता चल जाएगा। आत्मदशा साधनेवाला मनुष्य सिर्फ साधक ही होगा, बाधक नहीं होगा। साधु हमेशा साधक होते हैं और वर्तमान में ये जो साधु हैं वे इस दूषमकाल की वजह से साधक नहीं हैं, साधक-बाधक हैं। साधक-बाधक यानी बीवी-बच्चों को छोड़कर, तप-त्याग आदि करते हैं। आज सामायिक-प्रतिक्रमण करके सौ रुपये कमाते हैं लेकिन शिष्य के साथ झमेला होने से उसके प्रति उग्र हो जाते हैं, तब डेढ़-सौ रुपये गँवा देते हैं। इसलिए वह बाधक है। और सच्चा साधु कभी बाधक नहीं बनता, साधक ही होता है। जितने साधक होते हैं न, वे ही सिद्धदशा प्राप्त कर सकते हैं।
और यह तो बाधक हैं, इन्हें छेड़ते ही चिढ़ने में देर नहीं लगाते न! अर्थात् ये साधु नहीं, त्यागी कहलाते हैं। आजकल के ज़माने के हिसाब से इन्हें साधु कह सकते हैं। बाकी तो साधु-त्यागियों का क्रोध खुल्लमखुल्ला नज़र आता है न! अरे! सुनाई भी देता है। जो क्रोध सुनाई दे वह क्रोध कैसा होगा?
Book Name: त्रिमंत्र (Page # 21 Last line ;Page #22 Paragraph # 1 & # 2)
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