
त्रिमंत्र में जैनों का, वासुदेव का, और शिव का, ये तीनों मंत्र जोड़ दिए हैं। त्रिमंत्र एक निष्पक्षपाती मंत्र है। इसलिए यह हिंदुस्तान के सभी लोगों के लिए है। यदि यह मंत्र बोलोगे तो बहुत फायदा होगा। क्योंकि इसमें अच्छे अच्छे मनुष्य और सबसे उच्च कोटि के जीव हैं, उन्हें नमस्कार करना सिखाया है। तो चलिए समझाते हैं इस त्रिमंत्र का अर्थ।
नमो अरिहंताणम, जिन्होंने सभी दुश्मनों का नाश कर दिया है, क्रोध-मान-माया-लोभ-राग-द्वेषरूपी दुश्मनों का नाश कर दिया है, वे अरिहंत कहलाते हैं।
नमो सिद्धाणं, जो यहाँ से सिद्ध हो गए हैं, जिनका यहाँ से शरीर भी छूट गया है और फिर शरीर नहीं मिलता और सिद्ध गति में निरंतर सिद्ध भगवान की स्थिति में रहते हैं। भगवान रामचंद्रजी, ऋषभदेव भगवान, महावीर भगवान, ये सभी सिद्ध भगवंत कहलाते हैं।
नमो आयरियाणं, अर्थात अरिहंत भगवान के कहे हुए आचार का जो पालन करते हैं और उन आचार का पालन करवाते हैं। उन्होंने ख़ुद आत्मा प्राप्त कर लिया है, आत्मदशा प्रकट हो गई है, जैसे कि, श्रीमदजी और परम पूज्य दादा भगवान।
नमो उवज्जायाणम, जिन्हें आत्मा प्राप्त हो गया है और जो ख़ुद आत्मा जानने के बाद शास्त्र सब पढ़ते हैं और फिर दूसरों को पढ़ाते हैं। उनमें आत्माज्ञानी पूज्य नीरूमा और पूज्यश्री दीपकभाई का समावेश होता है।
नमो लोए सव्व साहूणम, लोए अर्थात लोक, तो इस लोक में जितने साधु हैं जो संसार दशा से मुक्त होकर आत्मदशा के लिए प्रयत्न कर रहे हैं और आत्म दशा में रहते हैं।
एसो पंच नमुक्कारो, ऊपर जो पाँच नमस्कार किए वे।
सव्व पावप्पणासणों, सभी पापों को नाश करने वाला है। यह बोलने से सभी पाप भस्मीभूत हो जाते हैं।
मंगलाणम च सव्वेसिं, सभी मंगलों में...
पढमं हवई मंगलं, प्रथम मंगल है। इस दुनिया में जो सभी मंगल हैं उन सभी में सबसे पहला मंगल यह है, सबसे बड़ा सच्चा मंगल यह है ऐसा कहना चाहते हैं।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, वासुदेव भगवान! अर्थात जो वासुदेव भगवान नर में से नारायण हुए, उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ। इस काल के वासुदेव अर्थात कौन? कृष्ण भगवान। इसलिए, यह नमस्कार कृष्ण भगवान को पहुँचता है। उनके जो शासनदेव होते हैं, उन्हें पहुँच जाता है!
ॐ नमः शिवाय, इस दुनिया में जो कल्याण स्वरूप हो गए हैं और जो जीवित हैं, जिनका अहंकार खत्म हो गया है, वे सभी शिव कहलाते हैं। शिव तो खुद कल्याण स्वरूप ही हैं। इसलिए जो खुद कल्याण स्वरूप हुए हैं और दूसरों को कल्याण की राह दिखाते हैं, उन्हें नमस्कार करता हूँ। इसमें सभी ज्ञानियों को नमस्कार पहुँचता है।
प्रश्नकर्ता: इस त्रिमंत्र में नवकार मंत्र, वासुदेव और शिव, इन तीनों मंत्रों को साथ रखने का क्या प्रयोजन है?
दादाश्री: सारा फल खाए और एक टुकड़ा खाए, इसमें फर्क नहीं है? ये त्रिमंत्र पूरे फल के रूप में हैं, पूरा फल!
ऋषभदेव भगवान ने एक ही बात कही थीं कि ये जो मंदिर हैं, वे वैष्णव वाले वैष्णव के, शैवधर्म वाले शिव के, जैनधर्मी जैन के, अपने-अपने मंदिर बाँट लेना लेकिन ये जो मंत्र हैं उन्हें मत बाँटना। मंत्र बाँटने पर उनका सत्व चला जाएगा। इसीलिए यह समन्वय भगवान के कहे अनुसार है।
यह त्रिमंत्र तो ऐसा है न कि नासमझ बोले तो भी फायदा होगा और समझदार बोले तो भी फायदा होगा। लेकिन समझदार को अधिक फायदा होगा और नासमझ को मुँह से बोला उतना ही फायदा होगा। एक सिर्फ यह टेपरिकॉर्ड (मशीन) बोलता है न, उसे फायदा नहीं होगा। लेकिन जिसमें आत्मा है, वह बोलेगा तो उसे फायदा होगा ही।
'नमो अरिहंताणम' के जाप के समय किसी रंग के चिंतन करने की कोई जरूरत नहीं है। और यदि चिंतन करना हो तो आँखें बंद करके न...मो...अ...रि...हं...ता...णं... ऐसे एक-एक शब्द नज़र आना चाहिए। उससे बहुत अच्छा फल प्राप्त होता है। एकांत में जाकर, ऊँची पहाड़ी आवाज़ में बोलो। ऊँची आवाज़ में बोलने से बहुत फायदा ही है। क्योंकि, जब तक ऊँची आवाज़ में नहीं बोलते, तब तक मनुष्य की सारी भीतरी मशीनरी (अंत:करण) बंद नहीं होती। तब तक एकत्व प्राप्त नहीं होता। इसलिए हम कहते हैं कि ऊँची आवाज़ में बोलना। क्योंकि ऊँची आवाज़ में बोलें तो फिर मन बंद हो गया, बुद्धि खत्म हो गई।
दादा भगवान कहते कि, यह हमारा दिया हुआ मंत्र सुबह पाँच बार हमारा चेहरा याद करके बोलोगे, तो कभी डूबोगे नहीं और धीरे धीरे मोक्ष मिलेगा और इसकी जोखिमदारी हम लेते हैं।
संसार व्यवहार में हरेक प्रकार के व्यवहार होते हैं। अतः ये तीन मंत्र बोलने से आने वाली तकलीफें कम हो जाती हैं। फिर भी तकलीफ़ अपना निमित्त रूप से काम कर ही जाती है। लेकिन इतना बड़ा पत्थर लगने वाला हो न, तो इतने से कंकर जितना लगता है।
यदि आपको देवों का सहारा चाहिए तो सभी मंत्र साथ में बोलो। उनके शासन देव होते हैं, अतः वे आपकी हेल्प करते हैं। तो यह त्रिमंत्र है न, उसमें यह जैनों का मंत्र है, जो जैनों के शासन देव हैं, उन्हें ख़ुश करने का साधन है। वैष्णवों का मंत्र है, वह उनके शासनदेवों को ख़ुश करने का साधन है। और शिव का जो मंत्र है, वह उनके शासनदेवों को ख़ुश करने का साधन है। हमेशा हरेक के पीछे शासन को संभालने वाले देव होते हैं। वे देव इस मंत्र को बोलने से ख़ुश हो जाते हैं, इसलिए हमारी तकलीफें खत्म जाती हैं।
दादा भगवान कहते कि हमारे इस दिए हुए त्रिमंत्र में तो ग़ज़ब की शक्ति है। सर्व देव ख़ुश रहते हैं और विघ्न नहीं आते। सम्पूर्ण निष्पक्षपाती है।
ज्यादा अडचनों कि स्थिति में घंटा-घंटा भर बोलें, तो मुश्किलों में सूली का घाव सुई से टल जायेगा।
दादाश्री ने सुबह शाम पाँच- पाँच बार उपयोपुर्वक बोलने को कहा है।
कोई विघ्न आनेवाला हो तो यह त्रिमंत्र आधा घण्टा, एक घण्टा बोलना। सारा गुणस्थान पूर्ण कर देना (एक गुणस्थान अड़तालीस मिनट का होता है)।
A. नमो अरिहंताणम मैं उस प्रभु को नमन करता हूं, जिसने सभी दुश्मनों का नाश कर दिया है,... Read More
Q. अरिहंत भगवान किसे कहते हैं?
A. परिचय, अरिहंत भगवान का अरिहंत भगवान का अर्थ है मोक्ष से पहले की अवस्था। ज्ञान में सिद्ध भगवान... Read More
Q. अरिहंत भगवान और सिद्ध भगवान में क्या अंतर है?
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Q. "आचार्य" में कौन-कौन से गुण होते हैं?
A. प्रश्नकर्ता : 'नमो आयरियाणं'। दादाश्री : अरिहंत भगवान के बताए हुए आचार का जो पालन करते हैं और उन... Read More
Q. "उपाध्याय" में कौन-कौन से गुण होते हैं?
A. प्रश्नकर्ता : 'नमो उवज्झायाणं' विस्तार से समझाइए। दादाश्री : उपाध्याय भगवान। उसका अर्थ क्या होता... Read More
A. प्रश्नकर्ता : 'नमो लोए सव्वसाहूणं' दादाश्री : 'लोए' यानी लोक, तो इस लोक में जितने साधु हैं उन सभी... Read More
A. प्रश्नकर्ता: ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ समझाइए। दादाश्री: वासुदेव भगवान! अर्थात् जो वासुदेव भगवान... Read More
Q. हमें कैसे पता चलेगा कि किसी को आत्मा की तीव्र इच्छा है?
A. प्रश्नकर्ता: लोए यानी क्या? दादाश्री: नमो लोए सव्वसाहूणं। लोए यानी लोक। इस लोक के अलावा दूसरा,... Read More
A. प्रश्नकर्ता : ॐ, वह नवकार मंत्र का छोटा रूप है? दादाश्री : हाँ, समझकर ॐ बोलने से धर्मध्यान होता... Read More
Q. "जय सच्चिदानंद" का अर्थ क्या है?
A. यह त्रिमंत्र है उसमें पहले जैनों का मंत्र है, बाद में वासुदेव का और शिव का मंत्र है। और यानी... Read More
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