बोलिए पहाड़ी आवाज़ में
यह भीतर मन में ‘नमो अरिहंताणं’ और सबकुछ बोले लेकिन भीतर मन में और कुछ चल रहा हो, उल्टा-पुल्टा। तो उससे कोई परिणाम नहीं मिलता। इसलिए कहा था न कि एकांत में जाकर, ऊँची पहाड़ी आवाज़ में बोलो। मैं तो ऊँची आवाज़ में नहीं बोलूँ तो चलेगा लेकिन आपको ऊँची आवाज़ में बोलना चाहिए। हमारा तो मन ही अलग तरह का है न!
अब ऐसी एकांत जगह में जाए तो वहाँ पर यह त्रिमंत्र बोलना ऊँचे से। वहाँ नदी-नाले पर घूमने जाए तो वहाँ ज़ोर से बोलना, दिमाग़ में धम-धम हो ऐसे।
प्रश्नकर्ता : ज़ोर से बोलने पर जो विस्फोट होता है उसका असर सब जगह पहुँचता है। इसलिए यह ख्याल में आता है कि ज़ोर से बोलने का प्रयोजन क्या है!
दादाश्री : ऊँची आवाज़ में बोलने से बहुत फायदा ही है। क्योंकि जब तक ऊँची आवाज़ में नहीं बोलते, तब तक मनुष्य की सारी भीतरी मशीनरी (अंत:करण) बंद नहीं होती। यह बात प्रत्येक मनुष्य के लिए है। हमारी तो भीतरी मशीनरी बंद रहती है। लेकिन ये दूसरे लोग ऊँची आवाज़ में नहीं बोलें न, तो उनकी भीतरी मशीनरी बंद नहीं होगी। तब तक एकत्व प्राप्त नहीं होता। इसलिए हम कहते हैं कि ऊँची आवाज़ में बोलना। क्योंकि ऊँची आवाज़ में बोलें तो फिर मन बंद हो गया, बुद्धि खत्म हो गई और यदि धीरे-धीरे बोलेंगे न, तो मन भीतर चुन-चुन करता है, ऐसा होता है या नहीं होता है?
प्रश्नकर्ता : होता है।
दादाश्री : बुद्धि भी भीतर ऐसे दख़ल देती रहती है, इसलिए हम कहते हैं कि ऊँची आवाज़ में बोलना चाहिए। और एकांत में जाएँ तब उतनी ऊँची आवाज़ में बोलना कि जैसे आकाश उड़ा देना हो, ऐसे बोलना। क्योंकि ऊँची आवाज़ में बोलने से भीतर सब (सारा अंत:करण) बंद हो जाता है।
मंत्र से नहीं होता आत्मज्ञान
प्रश्नकर्ता : गुरु के दिए मंत्र-जाप करने से क्या आत्मज्ञान जल्दी होता है?
दादाश्री : नहीं। संसार में अड़चनें कम होंगी लेकिन ये तीन मंत्र (त्रिमंत्र) साथ में बोलेंगे तो।
प्रश्नकर्ता : तो ये मंत्र अज्ञानता दूर करने के लिए ही हैं न?
दादाश्री : नहीं, त्रिमंत्र तो आपकी संसार की अड़चनें दूर करने के लिए हैं। अज्ञानता दूर करने के लिए तो मैंने जो आत्मज्ञान आपको दिया है (ज्ञानविधि द्वारा), वह है।
त्रिमंत्र से, सूली का घाव सूई जैसा लगे
ज्ञानीपुरुष बिना बात की मेहनत में नहीं उतारते। कम से कम मेहनत करवाते हैं। इसलिए आपको ये त्रिमंत्र सुबह-शाम पाँच-पाँच बार बोलने को कहा है।
ये मंत्र क्यों बोलने लायक हैं, क्योंकि इस ज्ञान के बाद आप तो शुद्धात्मा हुए लेकिन पड़ोसी कौन रहा? चंदू भाई (पाठक चंदू भाई की जगह स्वयं को समझें)। अब चंदू भाई को कोई अड़चन आए तब आप कहना कि, ‘चंदू भाई, एकाध बार यह त्रिमंत्र बोलो न, कोई अड़चन होगी तो इससे कम हो जाएगी’। क्योंकि वे हर एक प्रकार के संसार व्यवहार में हैं। उन्हें लक्ष्मी, लेन-देन सबकुछ है। त्रिमंत्र बोलने पर आने वाली अड़चनें कम हो जाएँगी। फिर अड़चनें अपना नैमित्तिक प्रभाव दिखाएँगी लेकिन इतना बड़ा पत्थर लगने वाला हो वह कंकड़ समान लगेगा। इसलिए यह त्रिमंत्र दिया है।
कोई विघ्न आने वाला हो तो यह त्रिमंत्र आधे-आधे घंटे, एक-एक घंटे तक बोलना। एक गुणस्थानक (अड़तालीस मिनट) तक करना वर्ना रोज़ाना यह पाँच बार बोलना। लेकिन ये सभी मंत्र एक साथ बोलना और सच्चिदानंद भी बोलना। सच्चिदानंद में सभी लोगों का मंत्र आ जाता है।
त्रिमंत्र का रहस्य यह है कि आपकी सारी सांसारिक अड़चनों का नाश होगा। आप रोज़ाना सवेरे बोलेंगे तो संसार की सारी अड़चनों का नाश होगा। आपको बोलने के लिए पुस्तक चाहिए तो एक पुस्तक देता हूँ। उसमें यह त्रिमंत्र लिखा है। वह पुस्तक यहाँ से ले जाना।
प्रश्नकर्ता : इन त्रिमंत्रों से चक्र शीघ्रता से चलने लगेंगे?
दादाश्री : इन त्रिमंत्रों को बोलने से दूसरे नए पाप नहीं बँधते, इधर-उधर उल्टे रास्ते पर भटक नहीं जाते और पुराने कर्म पूरे होते जाते हैं।
यह त्रिमंत्र तो ऐसा है न कि नासमझ बोले तो भी फायदा होगा और समझदार बोले तो भी फायदा होगा। लेकिन समझदार को अधिक फायदा होगा और नासमझ को मुँह से बोला उतना ही फायदा होगा। एक सिर्फ यह टेपरिकॉर्ड (मशीन) बोलता है न, उसे फायदा नहीं होगा। लेकिन जिसमें आत्मा है, वह बोलेगा तो उसे फायदा होगा ही।
यह जगत् शब्द से ही उत्पन्न हुआ है। अच्छे व्यक्ति का शब्द बोलने पर आपका कल्याण हो जाएगा और बुरे व्यक्ति का शब्द बोलने पर उल्टा हो जाएगा। इसीलिए यह सब समझना है।
*चन्दूलाल = जब भी दादाश्री 'चन्दूलाल' या फिर किसी व्यक्ति के नाम का प्रयोग करते हैं, तब वाचक, यथार्थ समझ के लिए, अपने नाम को वहाँ पर डाल दें।
1.मंत्र, वह विज्ञान है, गप्प नहीं है। उनमें भी ‘त्रिमंत्र,’ वह तो संसार विघ्नहर्ता है। त्रिमंत्र निष्पक्षपाती मंत्र है, सर्व धर्म समभाव सूचक है, सर्वधर्म के रक्षक देवी-देवता इससे राज़ी रहते हैं। मंत्र का असर कब होता है? ‘ज्ञानीपुरुष’ के हाथों यदि विधिपूर्वक दिया गया हो, तो वह गज़ब का असर करे, ऐसा है।
2. मंत्र, मन को आनंद देते हैं, मन को शक्ति देते हैं और मन को ‘तर’ करते हैं। जबकि भगवान के दिए गए मंत्र विघ्नों का नाश करते हैं। हमारा दिया हुआ ‘त्रिमंत्र’ सर्व विघ्नों का नाश करता है। इस ‘त्रिमंत्र’ की आराधना से तो भाले का घाव सूई जैसा लगता है। बाकी सभी मंत्र तो मन को तर करते हैं!
Book Name: त्रिमंत्र (Page #36 – Paragraph #2 to #6, Entire Page #37 & 38, Page #39- Paragraph #1)
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