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मैं कहाँ गलत हूँ?

जब हमें बिना किसी भूल के भुगतना पड़ता है, तब हृदय बार-बार द्रवित होकर पुकारता है कि इसमें मेरी क्या भूल? इसमें मैंने क्या गलत किया है? फिर भी जवाब नहीं मिलता, तब अपने भीतर बसे वकील वकालत करना शुरू कर देते हैं कि इसमें मेरी ज़रा-सी भी भूल नहीं है। इसमें सामनेवाले की ही भूल है न? अंत में ऐसा ही मनवा लेता है, जस्टीफाइ करवा देता है कि, 'लेकिन उसने यदि ऐसा नहीं किया होता तो फिर मुझे ऐसा गलत क्यों करना पड़ता या बोलना पड़ता?' इस तरह खुद की भूल ढक देते हैं और सामनेवाले की ही भूल है, ऐसा प्रमाणित कर देते हैं। और कर्मों की परंपरा सर्जित होती है।

परम पूज्य दादाश्री ने, सामान्य लोगों को भी सभी तरह से समाधान कराए, ऐसा जीवनोपयोगी सूत्र दिया कि 'भुगते उसी की भूल'। इस जगत् में भूल किसकी? चोर की या जिसका चोरी हुआ, उसका? इन दोनों में से भुगत कौन रहा है? जिसका चोरी हुआ, वही भुगत रहा है न? जो भुगते, उसी की भूल। चोर तो पकड़े जाने के बाद भुगतेगा, तब उसकी भूल का दंड उसे मिलेगा। आज खुद की भूल का दंड मिल गया। खुद भुगते, तो फिर दोष किसे देना? फिर सामनेवाला निर्दोष ही दिखेगा। अपने हाथों से टी-सेट टूट जाए तो किसे कहेंगे? और नौकर से टूटे तो? ऐसा है। घर में, धंधे में, नौकरी में, सभी जगह 'भूल किसकी है?' ढूँढना हो तो पता लगाना कि 'कौन भुगत रहा है?' उसी की भूल। भूल है, तब तक ही भुगतना पड़ता है। जब भूल खत्म हो जाएगी, तब इस दुनिया का कोई व्यक्ति, कोई संयोग, हमें भोगवटा नहीं दे सकेगा।

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