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कोई मुझे नहीं समझता। कोई भी मेरी परवाह नहीं करता। मैं अपना जीवन समाप्त करना चाहता हूँ। मुझे क्या करना चाहिए?

हमारी प्रशंसा नहीं होने से संबंधित भावनाएँ जैसे कि ‘कोई मेरी प्रशंसा नहीं करता’, हमें गलत समझा जाना ‘कोई मुझे नहीं समझता’, या किसी का साथ ना होना ‘कोई मेरी परवाह नहीं करता’, यह सब आत्म-संदेह, निराशा, अकेलेपन और डिप्रेशन का कारण बन सकते हैं। जब हम इतना दु:खी महसूस करते हैं कि हम इन नकारात्मक भावनाओं से परे नहीं देख पाते, तो हम बदला लेने के बारे में सोचते हैं।, जब हमें हमारी अपेक्षा के हिसाब से मान/प्रशंसा कम मिलता है तब अनिवार्य रूप से, अंतिम उपाय के रूप में, ‘मैं अपना जीवन समाप्त करना चाहता हूँ’ जैसे विचार आने लगते हैं।

वास्तव में ये विचार सिर्फ आपको नुकसान पहुंचाएंगे, किसी और को नहीं। यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि जान लेने के कितने भयंकर परिणाम होते हैं।

इसके बजाय, आपको अपने दुःखों के मूल कारणों को देखना चाहिए।

  • हो सकता है कि आपको दूसरे आपके बारे में जो कहते हैं, उस पर संदेह होता हो, खासकर तब जब वह कोई अच्छी बात कहें।
  • हो सकता है कि आप बहुत व्यस्त हैं और जीवन से विचलित हैं इसलिए अपने लिए की गई सकारात्मक(पॉज़िटिव) प्रशंसा स्वीकार करने में आप निष्फल हो जाते हैं।
  • अंदर से आप महसूस कर सकते हैं कि आप दूसरों के प्यार के लायक नहीं हैं।
  • आपको सभी चीज़ें काफ़ी ख़राब लग सकती हैं इसलिए भले ही कोई आपको कितनी ही बार कहे 'शाबाश!', 'शानदार काम किया’, अपने मन में, आप उनके शब्दों को नकारात्मक रूप से ही लेंगे।
  • आत्म-संदेह, असुरक्षा, आत्मविश्वास की कमी या प्रतिस्पर्धात्मकता ऐसे कारण हैं जो आपको कमतर महसूस कराते हैं।

तो, आप इसे बदलने के लिए क्या कर सकते हैं?

  • आप जो कुछ भी करते हैं, वह बिना किसी अपेक्षा के करें। अपेक्षा का परिणाम केवल दुःख और भोगवटा ही होता है।
  • कार्यों को अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार करें।
  • अगर आपको मदद की ज़रूरत है, तो मदद माँगे। कभी-कभी हम मान लेते हैं कि लोग जानते हैं कि हमें मदद की आवश्यकता है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। कभी-कभी जो हमें स्पष्ट लगता है वह दूसरों के लिए स्पष्ट नहीं भी हो सकता।
  • अभिमानी हुए बिना, दूसरों को बताएं कि आपने क्या किया है और उनसे पूछें कि वे इसके बारे में क्या सोचते हैं। हर कोई अपने आप में व्यस्त है। सब अपनी ही उलझनों में खोए हुए हैं। उनके साथ खुलकर बातचीत करने से, आपको निश्चित रूप से प्रतिसाद मिलेगा।
  • हो सकता है जो चीज़ हमारे लिए सही हो वह दूसरों के लिए सही ना हो। इसलिए, हमेशा देखना चाहिए कि किसी भी कार्य के लिए क्या आवश्यक है।
  • शर्माएँ नहीं। दूसरों की विशेषज्ञता का लाभ उठाएँ।
  • बातचीत सभी रिश्तों के मूल में है, चाहे वह स्कूल हो, काम हो या परिवार।
  • यह पता लगाने की कोशिश करें कि आपके दु:खी होने के कारण क्या हैं - जैसे प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या, अपेक्षाएँ, प्रशंसा की ज़रूरत, या आत्मविश्वास की कमी।
  • यदि आप अपनी प्रशंसा चाहते हैं, तो दूसरे जो करते हैं उसकी प्रशंसा करें।
  • दूसरों में अच्छाई देखें - उनके दोष न देखें। और एक दुसरे पर आरोप न लगाएँ।
  • पॉज़िटिव (सकारात्मक) रहें।
  • दूसरों की बात सुनें और उनका साथ निभाएँ।
  • क्यों आप पहला कदम नहीं उठाते और दूसरों के साथ अपने संबंधों में परिवर्तन नहीं लाते?
  • अपने आप को बदलें। आप देखेंगे कि अन्य लोगों में भी बदलाव आएगा।
  • दूसरों को सुख दें और फिर तुम्हें भी सुख मिलेगा।
  • अपनी मानसिकता बदलें - अपने मन को दूसरों के अनुरूप ढालें।
  • आप जो करते हैं उसका आनंद लें। आप देखेंगे कि जब भी आप अपनी पसंद का कोई काम करते हैं, तो आप उसमें बेहतर करते हैं। इसी तरह, जब आप कुछ ऐसा करते हैं जो आपको पसंद नहीं है, तो आपको उतना अच्छा परिणाम नहीं मिलता।

इन सबसे ऊपर, याद रखें कि जैसा आप महसूस कर रहें हैं वैसा महसूस करते रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। उन कारणों को ढूंढे जो आपकी वर्तमान परिस्थिति के लिए ज़िम्मेदार हैं। यदि आप वास्तव में अपनी दुविधा का समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध होंगे, तो चीज़ें निश्चित रूप से अपने आप हल हो जाएंगी। यह सब पाने के लिए आपको समझौता करने के लिए तैयार रहना होगा, बिना किसी को दुःख पहुँचाए अपने मन की बात कहना और अपनी और दूसरों की अपेक्षाओं का ख्याल रखने के लिए तैयार रहना होगा। और अंत में, ज़रूरत पड़ने पर सहायता और सहयोग मांगने में कभी ना शर्माएँ।

चुपचाप दुःख सहन करने और आत्मग्लानि में रहने के बजाय, जो आप महसूस कर रहे हैं उसे व्यक्त करना कहीं गुना बेहतर है। ओपन माइन्ड(खुला मन) रखने से और बातचीत करने से, आप पाएंगे कि आप कम चिंतित, तनाव रहित, और कहीं ज्यादा खुश रह पाएंगे।

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