प्रश्नकर्ता: हम प्रत्यक्ष में ‘सॉरी’ कहते हैं, तब उस में भी जूनियर व्यक्ति को कहें तो, उसके दिमाग में इतनी ज़्यादा राई चढ़ जाती है, जिसका कोई हिसाब नहीं।
दादाश्री: ऐसा कुछ नहीं कहना है। यदि अपने मुँह से शब्द निकल जाएँ तो बाद में हमें पछतावा होता है या नहीं? पछतावा होता है इसलिए प्रतिक्रमण करते हैं। फिर ‘यू आर नोट रिस्पोन्सिबल एट ऑल’ आप उसके जि़म्मेदार नहीं हैं। इसलिए हमने यह कहा था कि उनकी जि़म्मेदारी हम सिर पर लेते हैं। क्योंकि आप यदि इतना करो न तो फिर आपकी जोखिमदारी नहीं है। फिर उसकी वकालत करना हमें आता है। लेकिन इतना हमारा कहा हुआ करो, फिर आप कायदे में आ गए। इसलिए फिर वकालत, फिर जो हो वह तो हमें आता है। हम संभाल (देख) लेते हैं। लेकिन हमारा इतना कहा करो, तो बहुत हो गया।
अपने कहने से सामनेवाला आत्महत्या करे ऐसी दशा हो गई हो तो हमें आधे-पौने घंटे तक प्रतिक्रमण करते ही रहना है कि अरेरे! मेरी ऐसी दशा कहाँ से हुई? ऐसा मेरे निमित्त से सब? फिर हमारी जि़म्मेदारी नहीं है। इसलिए इसमें घबराना नहीं है। इतने तक हमारा यह पालन किया उसके बाद आगे के कोर्ट की सारी जि़म्मेदारी हम अपने सिर लेते हैं। बाद में उसकी जि़म्मेदारी देवी-देवताओं की हैं। झगड़ा हो तो उसे हम निपटा देते हैं। लेकिन यहाँ तक जाओ न, तो बहुत हो गया। जितना हिसाब है उतना ही, बहुत गहरा उतरने जैसा है नहीं। आपको समझ में आया न?
Reference: Book Name: प्रतिक्रमण (ग्रंथ) (Page #182 - Paragraph #2 to #4)
ऐसे पाप धुलते हैं?
प्रश्नकर्ता: किसी को हम दु:ख पहुँचाएँ और फिर हम प्रतिक्रमण कर लें, लेकिन उसे ज़बरदस्त आघात, ठोकर लगी हो तो क्या उससे हमें कर्म नहीं बंधता?
दादाश्री: हमें उसके नाम के प्रतिक्रमण करते रहना है और उसे जितना दु:ख हुआ हो, उतने ही प्रतिक्रमण करने पड़ेंगे।
प्रश्नकर्ता: सास ने बहू से कुछ कहा, और बहू ने आत्महत्या कर ली, वहाँ तक हो गया। उसमें वह मर गई। फिर उसके लिए प्रतिक्रमण करें तो सामनेवाले को शांति होगी?
दादाश्री: हमें तो प्रतिक्रमण करते रहना है, अपनी अन्य कोई जि़म्मेदारी नहीं है। और यदि जीवित हो न तो हमें कहना है, क्या नाम है आपका?
प्रश्नकर्ता: *चंदूभाई।
दादाश्री: तो जीवित हो तो हमें उसे भी कहना है कि, ‘इस *चंदूभाई में अक्ल नहीं है। आप उसे माफ करना।’ ऐसा कहना है हमें। इसलिए खुश हो जाएगी। अपनी अक्ल कम है, ऐसा दिखाया कि सामनेवाला खुश हो जाता है। ऐसा कहना है कि,‘*चंदूभाई में कोई बरकत नहीं है, अक्ल नहीं है, इसलिए यों आपको ऐसा किया।’ इसलिए ऐसा हुआ होगा। ऐसा कहें न तो वह खुश हो जाता है। हाथ टूट जाने के बाद यदि कभी इतना कहें न तो हाथ टूटने को हानि में नहीं गिनता। वह खुश हो जाता है। क्योंकि टूट जाना वह डिसाइडेड था, लेकिन निमित्त हम थे। वह निमित्त हो गया। इसलिए मोड़ लेता है। राशी जमा-उधार हो जाती है।
*चंदूभाई = जब भी दादाश्री 'चंदूभाई' या फिर किसी व्यक्ति के नाम का प्रयोग करते हैं, तब वाचक, यथार्थ समझ के लिए, अपने नाम को वहाँ पर डाल दें।
Reference: Book Name: प्रतिक्रमण (ग्रंथ) (Page #179 - Paragraph #7, Page #180 - Paragraph #1 to #5)
पारस्परिक संबंधों में समस्याओं के लिए जादुई रबर - प्रतिक्रमण। प्रतिक्रमण किस तरह किया जाए, जानिये यहाँ से।
A. हम जिन भावनाओं को महसूस करते हैं, वे हमारे संजोग, हमारे चारित्र और दूसरों के साथ हमारे संबंधों से... Read More
Q. लोग आत्महत्या क्यों करते हैं? आत्महत्या के विचारों का कारण क्या है?
A. अफसोस की बात है कि आत्महत्या के विचार बहुत सामान्य हो गए हैं। आधुनिक जीवन के अथक दबावों के कारण कुछ... Read More
Q. प्रेमियों के आत्महत्या करने के परिणाम क्या हैं? प्रेम के लिए आत्महत्या करना क्या उचित है?
A. दुःखद रूप से, प्रेमी सामाजिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक मतभेदों से बचने के लिए आत्महत्या कर लेते हैं... Read More
Q. किशोरावस्था में आत्महत्या के कारण क्या है? युवानो में आत्महत्या का प्रमाण क्यों बढ़ रहा है?
A. किशोरावस्था में लड़कों और लड़कियों के लिए किशोरावस्था के वर्षो एक चिंताजनक और बैचेनी भरे समय के... Read More
Q. आत्महत्या के परिणाम क्या हैं?
A. उससे पहले करना ‘मुझे’ याद प्रश्नकर्ता: दादाजी ऐसा सुना है कि आत्महत्या के बाद इस प्रकार के सात... Read More
Q. आत्महत्या को कैसे रोका जा सकता है?
A. सभी जगह फँसाव! कहाँ जाएँ? जिसका रास्ता नहीं उसे क्या कहा जाए? जिसका रास्ता नहीं हो उसके पीछे... Read More
subscribe your email for our latest news and events