अफसोस की बात है कि आत्महत्या के विचार बहुत सामान्य हो गए हैं। आधुनिक जीवन के अथक दबावों के कारण कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत स्थिति को पूरी तरह निराशाजनक मानते हैं। उनको लगता है कि उनके पास चीज़ों को अच्छी तरह बदलने के लिए शक्ति नहीं है। वे स्वयं को पूर्ण अंधकार और निराशा में डूबे हुए पाते हैं और स्वतंत्रता की आशा बहुत कम होती है।
इस तरह की तीव्र हताशा (डिप्रेशन) और आत्महत्या के विचारों के कारणों में शामिल हैं:
यह चीज़ें व्यक्ति की मन की शांति, स्थिरता और सुख में बाधा डालते हैं। यही कारण है कि लोग अपनी जान लेने के बारे में सोचते हैं।
बुद्धि का काम है हर स्थिति में अच्छे और बुरे में फर्क करना। यह आपको भीतर से लगातार परेशान करेगा जैसे कि, 'देखो उसने क्या कहा', 'उसे मुझसे ज़्यादा तनख्वाह मिलती है', 'हर कोई हमेशा उसका पक्ष लेता है', 'मेरे व्यू पोइन्ट पर विचार नहीं किया जा रहा है', 'हर कोई हमेशा मुझे अनदेखा करता है '। यही विचार आपके दु:खों का मूल कारण है।
इसलिए जैसे-जैसे आपकी बुद्धि बढ़ती है, वैसे-वैसे आपके भीतर दुःख भी बढ़ते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि दो साल के लड़के की माँ मर जाती है, तो उसे असर नहीं होगा और वह हँसता-खेलता रहेगा। इसी परिस्थिति में, अगर पच्चीस साल की बेटी की माँ की मृत्यु हो जाती है, तो बेटी को बहुत मानसिक दुःख होगा। कारण यह है कि जैसे-जैसे हम बढ़ते जाते हैं, हमारी बुद्धि विकसित होती है, और इसलिए हमें बहुत दुःख होता है। इसलिए हमें जो भीतर दुःख महसूस होता है, वह हमारी बुद्धि की मात्रा के आधार पर होती है। जितनी बड़ी बुद्धि, उतना बड़ा दुःख।
अक्रम विज्ञान, एक अध्यात्म विज्ञान में बताया है कि जब सहज विचार आना बंद हो जाते हैं तो क्या होता है। जब वे नेगेटिव और निराशावादी विचारों में बदल जाते हैं और आप आंतरिक अंधकार में चले जाते हैं। आप स्पष्ट रूप से नहीं सोच पाते और आपको आपकी समस्याओं का कोई समाधान नहीं दिखाई देता। ऐसा है कि जैसे आप पहली बार किसी अंधेरी सुरंग में हैं। थोडी रौशनी है ऐसा लगता है परन्तु जैसे जैसे गहराई में उतरते जाते हैं, उतना ही अंधेरा होता जाता हैं।
अक्रम विज्ञान, आध्यात्मिक विज्ञान, समझाता है कि, लोग खुद के जीवन को समाप्त करने के बारे में क्यों सोचते है, इसका प्राथमिक कारण यह है कि उन्होंने अपने पिछले जन्मों में से किसी एक जन्म में आत्महत्या की थी। इन कर्मों का असर सात जन्मों तक रहता है। जैसे-जैसे जन्म बीतते जाते है, वैसे-वैसे आत्महत्या के विचारों की तीव्रता कम होती जाती है, जिस तरह पर ऊँचाई से गिराए जाने पर गेंद की उछाल की ऊँचाई प्रत्येक उछाल में कम होती जाती है, और जैसे ही गेंद रुक जाती है, आत्महत्या के विचार भी समाप्त हो जाते हैं।
‘डिप्रेशन’ के आधार पर या ‘एलिवेशन’ के आधार पर जो विचार आते हैं, वे सभी विचार गलत हैं। ‘नोर्मेलिटी’ से जो विचार आते हैं, वे ही ‘करेक्ट’ हैं।
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