परिणाम नियमन किस शक्ति के आधार पर?
प्रश्नकर्ता: मेरी पत्नी के साथ मेरा जीवन बहुत सुखी था, तो भगवान ने अट्ठाईस साल की उम्र में ही उसे मुझसे क्यों छीन लिया, यह मेरी समझ में नहीं आता है। भगवान ऐसा क्यों करते हैं?
दादाश्री: ऐसा है, कि जंग लगे हुए लोहे को यदि अपने मूल स्वभाव में लाना हो तो ऊपर की जंग निकालने के लिए उसे गर्म करना पड़ेगा या नहीं? फिर उसे ठोकना पड़ेगा या नहीं?
प्रश्नकर्ता: हाँ, झाड़-पोंछ करनी होगी।
दादाश्री: वैसे ही, मनुष्य पर यह जो सब आपत्ति आती है न, वह उसे शुद्ध करती है, समझ में आता है न? वर्ना, यदि आपकी पत्नी जीवित होती और ज्यों का त्यों चलता रहता तो आप कुछ दवाई आदि करनेवाले नहीं थे।
प्रश्नकर्ता: यह तो आपने सही कहा दादाजी, जब वह जीवित थी तब मैं सब नास्तिक का ही पढ़ता था और लिखता भी नास्तिक की तरह ही था। लायब्रेरी में जब कोई धार्मिक पुस्तक हाथ में आ जाती तो उसे फेंक देता था कि ‘यह कहाँ बीच में आ टपकी, यह सब गलत है।’
दादाश्री: आप कोई दवाई नहीं करते और रोग रह जाता, रोग बढ़ता जाता। यह तो आपकी दवाई हो रही है।
प्रश्नकर्ता: मगर दादाजी, तब मैं धार्मिक नहीं था। किंतु उस परिस्थिति में भी मैं इतना अशांत नहीं था, जितना आज हूँ।
दादाश्री: अशांत नहीं थे, फिर भी जब आप दोनों के बीच मतभेद हो जाए तो दु:ख तो होता होगा न! उसके साथ कभी मतभेद तो हुआ होगा न?
प्रश्नकर्ता: शायद ही कभी हुआ होगा। और हुआ तो तब भी एक-दो दिन से ज्यादा नहीं चला होगा।
दादाश्री: हाँ, मगर वस्तुस्थिति क्या है कि यों ही अगर कोई खत आ जाए कि ‘भैया आपने तो ऐसा कर दिया’ तब भी असर हो जाता है, हर वस्तु का असर होता है। यह सारा बॉड़ी (शरीर) इफेक्टिव (पारिणामिक) है।
प्रश्नकर्ता: उस समय दादाजी, मेरा अभिगम ऐसा रहता था कि कोई भी मुश्किल आए या कुछ भी हो, तब भी मेरा आत्मविश्वास रहता था कि मैं उसे पार कर जाऊँगा। शायद यह मेरा इगो (अहंकार) ही कहलाए, वह इगो ही है, मगर मैंने कभी ज़रा-सी भी अशांति या द्विधा का अनुभव नहीं किया था। दुनिया की भौतिक मुश्किलों में से पार निकल जाता था किंतु यहाँ पर मार खा गया।
दादाश्री: हम यह जो जीवन जीते हैं न, उस जीवन जीने में दो तरह के परिणाम आते हैं। जब पॉजिटिव (हकारात्मक) रिझल्ट आता है तब सब आपकी धारणा के अनुसार होता है। आप जैसी धारणा करें वैसा, उलटा करने पर भी सब सीधा हो जाए। यानी ऐसे सब एविडन्स (संयोग) आपको मिलते रहें। आपकी इच्छानुसार संयोग मिला करें। लेकिन जब नेगेटिव (नकारात्मक) परिणाम आता है उस समय सब आपकी इच्छा से उलटा ही होता है। अर्थात्, ये पॉजिटिव और नेगेटिव शक्तियाँ काम कर रही हैं। आपको उन दो शक्तिओं के वश रहना पड़ता है।
Reference: दादावाणी - Sep 2009 (Page #2 - Paragraph #1 to #13, Page #3 - Paragraph #1)
पॉजिटिव-नेगेटिव असर
प्रश्नकर्ता: हम यदि आत्मा हैं, मूलत: हम आत्म स्वरूप हैं और इन पॉजिटिव-नेगेटिव शक्तिओं से कुछ कहते नहीं हैं तो भी वे हमें परेशान क्यों करती हैं?
दादाश्री: मूल रूप से यदि आत्मस्वरूप हो जाएँ तो फिर पॉजिटिव और नेगेटिव शक्तियाँ आपको छूती नहीं हैं। फिर असर नहीं करती। मगर इस समय आप मूल रूप से अभी आत्मस्वरूप हुए नहीं हैं न!
प्रश्नकर्ता: यह पॉजिटिव-नेगेटिव जो होता है वह भ्रम है या अहंकार को लेकर होता है?
दादाश्री: नहीं, वह भ्रम नहीं है, सच्ची बात है। हमारी धारणा अनुसार सबकुछ होता रहे। हम जो भी धारणा करें वह सबकुछ हो जाए। उलटा डालने पर भी सीधा पड़े, वह पॉजिटिव का स्वभाव है और दूसरा, नेगेटिव टाइम आया कि सब उलटा ही पड़ता है। सीधा डालने पर भी उलटा पड़े सब।
Reference: दादावाणी - Sep 2009 (Page #3 - Paragraph #2 to #5)
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