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लोग क्रोधित क्यों हो जाते हैं?

आम तौर पर जब अपनी धारणा के अनुसार नहीं होता, हमारी बात सामनेवाला न समझे, डिफरेन्स ऑफ व्यूपोइन्ट हो जाए, तब क्रोध हो जाता है। कई बार हम सही हों लेकिन कोई हमें गलत ठहराए, तब क्रोध हो जाता है। लेकिन हम सही हैं वह हमारे दृष्टिबिंदु से ही न? सामनेवाला भी खुद के दृष्टिबिंदु से खुद को सही ही मानेगा न! कई बार सूझ नहीं पड़ती, आगे का नज़र नहीं आता और क्या करना है, वह समझ में ही नहीं आता, तब क्रोध हो जाता है।

जब अपमान होता है तब क्रोध हो जाता है, जब नुकसान हो जाता है, तब क्रोध हो जाता है। इस प्रकार मान के रक्षण के लिए, लोभ के रक्षण के लिए क्रोध हो जाता है। वहाँ मान और लोभ कषाय से मुक्त होने की जागृति में आना ज़रूरी है। नौकर से चाय के कप टूट जाएँ, तब क्रोध हो जाता है, लेकिन जमाई के हाथों टूटे तब? वहाँ क्रोध कैसा कंट्रोल में रहता है! अर्थात् बिलीफ पर ही आधारित है न?

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