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कोई हमसे दग़ा कर गया हो वह वर्तमान में याद आता रहता हैं तो क्या करे? किस तरह पूर्वग्रह के बिना रहे?

अभिप्राय किस तरह छूटें?

कोई हमसे दग़ा कर गया हो वह हमें याद नहीं करना चाहिए। पिछला याद करने से बहुत नुकसान होता है। अभी वर्तमान में वह क्या करता है वह देख लेना है, वर्ना ‘प्रेजुडिस’ कहलाता है।

प्रश्नकर्ता: लेकिन ध्यान में तो रखना चाहिए न वह?

दादाश्री: वह तो अपने आप रहता ही है। २ ध्यान में रखें तो ‘प्रेजुडिस’ होता है। ‘प्रेजुडिस’ से तो फिर से संसार बिगड़ता है। हमें वीतराग भाव से रहना चाहिए। ३ पिछला लक्ष्य में रहता ही है, लेकिन वह कोई ‘हैल्पिंग’ वस्तु नहीं है। ४ हमारे कर्म के उदय ऐसे थे इसलिए उसने हमारे साथ ऐसा वर्तन किया। ५ उदय अच्छे होंगे तो ऊँचा वर्तन करेगा। इसलिए रखना मत ‘प्रेजुडिस’। ६ आपको क्या पता चलता है कि पहले धोखा देनेवाला आज मुनाफा करवाने आया है या नहीं? और आपको उसके साथ व्यवहार करना हो तो करो और नहीं करना हो तो मत करो, लेकिन ‘प्रेजुडिस’ मत रखना। और शायद व्यवहार करने का वक्त आए फिर तो बिलकुल ‘प्रेजुडिस’ मत रखना।

प्रश्नकर्ता: अभिप्राय वीतरागता तोड़ता है?

दादाश्री: हाँ, हमें अभिप्राय नहीं होने चाहिए। ७ अभिप्राय अनात्म विभाग के हैं, वह आपको ‘जानना’ है कि वह गलत है, नुकसानदायक है। ८ खुद के दोषों से, खुद की भूलों से, खुद के ‘व्यू पोइन्ट’ से अभिप्राय बाँधते हैं। आपको अभिप्राय बाँधने का क्या ‘राइट’ (अधिकार) है?

प्रश्नकर्ता: अभिप्राय बँध जाएँ और वे मिटे नहीं, तो नया कर्म बँधा जाता है?

दादाश्री: यह अक्रम विज्ञान प्राप्त हुआ हो और आत्मा-अनात्मा का भेदज्ञान हुआ हो उसे नया कर्म नहीं बँधता। हाँ, अभिप्रायों का प्रतिक्रमण नहीं हो तो सामनेवाले पर उसका असर रहा करता है, उससे उसका आप पर भाव नहीं आता। चोखे भाव से रहें तो एक भी कर्म बँधता नहीं, और यदि प्रतिक्रमण करें तो वह असर भी उड़ जाता है। सात से गुणा किया, उसे सात से भाग कर दिया वही पुरुषार्थ।

जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत सब ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स’ के हाथ में है, तो अभिप्राय रखने की ज़रूरत ही कहाँ है? स्वरूप ज्ञान मिलने के बाद, ज्ञाता-ज्ञेय का संबंध प्राप्त होने के बाद दो-पाँच अभिप्राय पड़े हों उन्हें निकाल दें तो ‘वीद ऑनर्स’ (मानपूर्वक) पास हो जाएँ हम!

अभिप्राय के कारण से जैसा है वैसा देखा नहीं जा सकता। मुक्त आनंद अनुभव नहीं किया जा सकता, क्योंकि अभिप्राय का आवरण है। अभिप्राय ही नहीं रहे तब निर्दोष हुआ जाता है। स्वरूप ज्ञान के बाद अभिप्राय हैं तब तक आप मुक्त कहलाते हो, लेकिन महामुक्त नहीं कहलाते। अभिप्राय के कारण से ही अनंत समाधि रुकी हुई है।

पहले जो ‘कॉज़ेज़’ थे उसके अभी ‘इफेक्ट’ आते हैं। लेकिन उस ‘इफेक्ट’ में भी ‘अच्छा है, बुरा है’ ऐसे अभिप्राय देते हैं, उससे राग-द्वेष होते हैं। क्रिया से ‘कॉज़ेज़’ नहीं बँधते, लेकिन अभिप्राय से ‘कॉज़ेज़’ बँधते हैं।

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