अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें21 मार्च |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
जो कुदरत का न्याय है, उसमें एक क्षण के लिए भी अन्याय नहीं हुआ। यह कुदरत जो है, वह एक क्षण के लिए भी अन्यायी नहीं हुई। कोर्ट में अन्याय हुआ होगा, लेकिन कुदरत कभी अन्यायी हुई ही नहीं। कुदरत का न्याय कैसा है कि, यदि आप चोखे इन्सान हो और यदि आज आप चोरी करने जाओ तो आपको पहले ही पकड़वा देगी और यदि मैला इन्सान होगा तो उसे पहले दिन एन्करेज(प्रोत्साहित) करेगी। कुदरत का ऐसा हिसाब होता है कि पहलेवाले को चोखा रखना है इसलिए उसे पकड़वा देगी, उसे हेल्प नहीं करेगी और दूसरेवाले को हेल्प करती ही रहेगी और बाद में ऐसी मार मारेगी कि फिर वह ऊपर नहीं उठ पाएगा। वह अधोगति में जाएगा। कुदरत एक मिनट भी अन्यायी नहीं हुई। लोग मुझे पूछते हैं कि यह आपके पैर में फ्रेक्चर हुआ है, वह? यह सब कुदरत ने न्याय ही किया है।
यदि कुदरत के न्याय को समझोगे कि 'हुआ सो न्याय', तो आप इस जगत् में से मुक्त हो पाओगे वर्ना कुदरत को ज़रा-सा भी अन्यायी समझा तो वह आपके लिए जगत् में उलझने का ही कारण है। कुदरत को न्यायी मानना, उसका नाम ज्ञान। 'जैसा है वैसा' जानना, उसका नाम ज्ञान और 'जैसा है वैसा' नहीं जानना, उसका नाम अज्ञान।
एक आदमी ने दूसरे आदमी का मकान जला दिया, तो उस समय कोई पूछे कि भगवान यह क्या है? इसका मकान इस आदमी ने जला दिया। यह न्याय है या अन्याय? तब कहे, 'न्याय। जला डाला वही न्याय।' अब इस पर वह कुढ़ता रहे कि नालायक है और ऐसा है, वैसा है। तब फिर उसे अन्याय का फल मिलेगा। वह न्याय को ही अन्याय कहता है! जगत् बिल्कुल न्याय स्वरूप ही है। एक क्षणभर के लिए भी इसमें अन्याय नहीं होता।
जगत् में न्याय ढूँढने से ही तो पूरी दुनिया में लड़ाइयाँ हुई हैं। जगत् न्याय स्वरूप ही है। इसलिए इस जगत् में न्याय ढूँढना ही मत। जो हुआ, सो न्याय। जो हो गया वही न्याय। ये कोर्ट आदि सब बने वे, न्याय ढूँढते हैं इसलिए! अरे भाई, न्याय होता होगा?! उसके बजाय 'क्या हुआ' उसे देख! वही न्याय है।
'न्याय' स्वरूप अलग है और अपना यह फल स्वरूप अलग है! न्याय-अन्याय का फल, वह तो हिसाब से आता है और हम उसके साथ न्याय जॉइन्ट करने जाते हैं, फिर कोर्ट में ही जाना पड़ेगा न! और वहाँ जाकर, थककर, आखिर में वापस ही आना है!
आपने किसी को एक गाली दी तो फिर वह आपको दो-तीन गालियाँ दे देगा, क्योंकि उसका मन आप पर गुस्सा होता है। तब लोग क्या कहते हैं? तूने क्यों तीन गालियाँ दी, इसने तो एक ही दी थी। तब उसमें क्या न्याय है? उसका हमें तीन ही देने का हिसाब होगा, पिछला हिसाब चुका देते हैं या नहीं?
प्रश्नकर्ता: हाँ, चुका देते हैं।
दादाश्री: वसूल करते हैं या नहीं करते? आपने उसके पिताजी को रुपये उधार दिए हों, लेकिन फिर कभी हमें मौका मिले तो वसूल कर लेते हो न? लेकिन वह तो समझेगा कि अन्याय कर रहा है। उसी प्रकार कुदरत का न्याय है। जो पिछला हिसाब होता है, वह सारा इकट्ठा कर देता है। अब यदि कोई स्त्री उसके पति को परेशान कर रही हो, तो वह कुदरती न्याय है। उसका पति समझता है कि यह पत्नी बहुत खराब है और पत्नी क्या समझती है कि पति खराब है। लेकिन यह कुदरत का न्याय ही है।
A. बस में चढ़ने के लिए राइट साइड में एक व्यक्ति खड़ा है, वह रोड के साइड में खड़ा है। रोंग साइड से एक बस आई। वह उसके ऊपर चढ़ गई और उसको मार डाला। क्या इसे...Read More
Q. किसी के मेहनत से कमाए हुए पैसे क्यों चोरी हो जाते हैं?
A. तब लोग मुझे पूछते हैं कि ये चोर और जेबकतरे क्या करने आए होंगे? भगवान ने क्यों इन्हें जन्म दिया होगा? अरे, वे नहीं होते तो तुम्हारी जेबें कौन खाली करेगा?...Read More
Q. लोग हमें दुःख क्यों देते हैं?
A. न्याय ढूँढते-ढूँढते तो दम निकल गया है। इन्सान के मन में ऐसा होता है कि मैंने इसका क्या बिगाड़ा है, जो यह मेरा बिगाड़ता है। प्रश्नकर्ता : ऐसा होता है। हम...Read More
A. भगवान न्याय स्वरूप नहीं है और भगवान अन्याय स्वरूप भी नहीं है। किसी को दुःख नहीं हो, वही भगवान की भाषा है। न्याय-अन्याय तो लोकभाषा है। चोर, चोरी करने को...Read More
Q. किसीको दिया हुआ उधार कैसे वसूल करूँ?
A. बुद्धि तो तूफान खड़ा कर देती है। बुद्धि ही सब बिगाड़ती है न! बुद्धि यानी क्या? जो न्याय ढूँढे, उसका नाम बुद्धि। कहेगी, 'पैसे क्यों नहीं देंगे, माल तो ले गए...Read More
Q. क्या मुझे न्याय खोजना चाहिए?
A. इस जगत् में तू न्याय देखने जाता है? हुआ सो न्याय। 'इसने चाँटा मारा तो मुझ पर अन्याय किया', ऐसा नहीं लेकिन जो हुआ वही न्याय, ऐसा जब समझ में आएगा, तब यह सब...Read More
Q. विरासत और वसीयत को लेकर होनेवाले झगड़ों को कैसे निपटाएँ?
A. एक भाई हो, उसका बाप मर जाए तो जो सभी भाईर्यों की जमीन है, वह बड़े भाईर् के कब्ज़े में आ जाती है। अब बड़ा भाईर् है, वह छोटों को बार-बार धमकाता रहता है और...Read More
Q. बुद्धि से कैसे छुटकारा पाएँ?
A. प्रश्नकर्ता : बुद्धि को निकालना ही है, क्योंकि वह बहुत मार खिलाती॒है। दादाश्री : इस बुद्धि को निकालना हो तो बुद्धि खुद अपने आप नहीं जाएगी। बुद्धि 'कार्य'...Read More
Q. मेरे जीवन के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
A. यह सारा प्रोजेक्शन आपका ही है। लोगों को क्यों दोष दें? प्रश्नकर्ता : क्रिया की प्रतिक्रिया है यह? दादाश्री : उसे प्रतिक्रिया नहीं कहते। लेकिन यह सारा...Read More
subscribe your email for our latest news and events