अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें21 मार्च |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
बस में चढ़ने के लिए राइट साइड में एक व्यक्ति खड़ा है, वह रोड के साइड में खड़ा है। रोंग साइड से एक बस आई। वह उसके ऊपर चढ़ गई और उसको मार डाला। क्या इसे न्याय कहा जाएगा?
प्रश्नकर्ता : ड्राइवर ने कुचल डाला, लोग तो ऐसा ही कहेंगे।
दादाश्री : हाँ, उल्टे रास्ते से आकर मारा, गुनाह किया। सीधे रास्ते से आकर मारा होता तो भी गुनाह तो कहा ही जाता। यह तो डबल गुनाह किया। इसे कुदरत कहती है कि 'करेक्ट किया है।' शोरगुल मचाओगे तो व्यर्थ जाएगा। पहले का हिसाब चुका दिया। अब ऐसा समझते नहीं हैं न! पूरी ज़िंदगी तोड़फोड़ में ही बीत जाती है। कोर्ट, वकील और...! और कभी देरी हो जाए, तब वकील भी गालियाँ देता है कि 'तुम में अ़क्ल नहीं है, गधे जैसे हो, गालियाँ खाता है भाई! इसके बजाय यदि कुदरत का न्याय समझ ले, दादाजी ने कहा है वह न्याय, तो हल आ जाए न? और कोर्ट जाने में हर्ज नहीं है। कोर्ट में जाना लेकिन उसके साथ बैठकर चाय पीना, इस तरह सारा व्यवहार करना (समाधानपूर्वक निपटाना) यदि वह नहीं माने तो कहना, हमारी चाय पी लेकिन साथ में बैठ। कोर्ट जाने में हर्ज नहीं, लेकिन प्रेमपूर्वक निपटाना (भीतर राग-द्वेष नहीं हों, उस तरह)!
प्रश्नकर्ता : वैसे लोग हम से विश्वासघात भी कर सकते हैं न?
दादाश्री : मनुष्य कुछ नहीं कर सकता। यदि आप प्योर हैं, तो आपको कुछ भी नहीं कर सकता, ऐसा इस जगत् का कानून है। प्योर हो तो फिर कोई कुछ करनेवाला रहेगा नहीं। इसलिए भूल सुधारनी हो तो सुधार लेना।
Q. किसी के मेहनत से कमाए हुए पैसे क्यों चोरी हो जाते हैं?
A. तब लोग मुझे पूछते हैं कि ये चोर और जेबकतरे क्या करने आए होंगे? भगवान ने क्यों इन्हें जन्म दिया होगा? अरे, वे नहीं होते तो तुम्हारी जेबें कौन खाली करेगा?...Read More
Q. लोग हमें दुःख क्यों देते हैं?
A. न्याय ढूँढते-ढूँढते तो दम निकल गया है। इन्सान के मन में ऐसा होता है कि मैंने इसका क्या बिगाड़ा है, जो यह मेरा बिगाड़ता है। प्रश्नकर्ता : ऐसा होता है। हम...Read More
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Q. किसीको दिया हुआ उधार कैसे वसूल करूँ?
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Q. क्या मुझे न्याय खोजना चाहिए?
A. इस जगत् में तू न्याय देखने जाता है? हुआ सो न्याय। 'इसने चाँटा मारा तो मुझ पर अन्याय किया', ऐसा नहीं लेकिन जो हुआ वही न्याय, ऐसा जब समझ में आएगा, तब यह सब...Read More
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Q. बुद्धि से कैसे छुटकारा पाएँ?
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Q. मेरे जीवन के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
A. यह सारा प्रोजेक्शन आपका ही है। लोगों को क्यों दोष दें? प्रश्नकर्ता : क्रिया की प्रतिक्रिया है यह? दादाश्री : उसे प्रतिक्रिया नहीं कहते। लेकिन यह सारा...Read More
Q. कुदरत के न्याय का स्वरूप क्या है?
A. जो कुदरत का न्याय है, उसमें एक क्षण के लिए भी अन्याय नहीं हुआ। यह कुदरत जो है, वह एक क्षण के लिए भी अन्यायी नहीं हुई। कोर्ट में अन्याय हुआ होगा, लेकिन...Read More
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