बस में चढ़ने के लिए राइट साइड में एक व्यक्ति खड़ा है, वह रोड के साइड में खड़ा है। रोंग साइड से एक बस आई। वह उसके ऊपर चढ़ गई और उसको मार डाला। क्या इसे न्याय कहा जाएगा?
प्रश्नकर्ता : ड्राइवर ने कुचल डाला, लोग तो ऐसा ही कहेंगे।
दादाश्री : हाँ, उल्टे रास्ते से आकर मारा, गुनाह किया। सीधे रास्ते से आकर मारा होता तो भी गुनाह तो कहा ही जाता। यह तो डबल गुनाह किया। इसे कुदरत कहती है कि 'करेक्ट किया है।' शोरगुल मचाओगे तो व्यर्थ जाएगा। पहले का हिसाब चुका दिया। अब ऐसा समझते नहीं हैं न! पूरी ज़िंदगी तोड़फोड़ में ही बीत जाती है। कोर्ट, वकील और...! और कभी देरी हो जाए, तब वकील भी गालियाँ देता है कि 'तुम में अ़क्ल नहीं है, गधे जैसे हो, गालियाँ खाता है भाई! इसके बजाय यदि कुदरत का न्याय समझ ले, दादाजी ने कहा है वह न्याय, तो हल आ जाए न? और कोर्ट जाने में हर्ज नहीं है। कोर्ट में जाना लेकिन उसके साथ बैठकर चाय पीना, इस तरह सारा व्यवहार करना (समाधानपूर्वक निपटाना) यदि वह नहीं माने तो कहना, हमारी चाय पी लेकिन साथ में बैठ। कोर्ट जाने में हर्ज नहीं, लेकिन प्रेमपूर्वक निपटाना (भीतर राग-द्वेष नहीं हों, उस तरह)!
प्रश्नकर्ता : वैसे लोग हम से विश्वासघात भी कर सकते हैं न?
दादाश्री : मनुष्य कुछ नहीं कर सकता। यदि आप प्योर हैं, तो आपको कुछ भी नहीं कर सकता, ऐसा इस जगत् का कानून है। प्योर हो तो फिर कोई कुछ करनेवाला रहेगा नहीं। इसलिए भूल सुधारनी हो तो सुधार लेना।
Book Name: हुआ सो न्याय (Page #16 Paragraph #1 to #5)
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