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क्या मुझे न्याय खोजना चाहिए?

इस जगत् में तू न्याय देखने जाता है? हुआ सो न्याय। 'इसने चाँटा मारा तो मुझ पर अन्याय किया', ऐसा नहीं लेकिन जो हुआ वही न्याय, ऐसा जब समझ में आएगा, तब यह सब निबेड़ा आएगा।

'हुआ सो न्याय' नहीं कहोगे तो बुद्धि उछल-कूद, उछल-कूद करती रहेगी। अनंत जन्मों से यह बुद्धि गड़बड़ करती आ रही है, मतभेद करवाती है। वास्तव में कुछ कहने का समय ही नहीं आना चाहिए। हमें कुछ कहने का समय ही नहीं आता। जिसने छोड़ दिया, वह जीत गया। वह खुद की ज़िम्मेदारी पर खींचता है। बुद्धि चली गई, वह कैसे पता चलेगा? न्याय ढूँढने मत जाना। 'जो हुआ उसे न्याय' कहेंगे, तब उसे, बुद्धि चली गई, ऐसा कहा जाएगा। बुद्धि क्या करती है? न्याय ढूँढती फिरती है और इसी कारण यह संसार खड़ा है। अतः न्याय मत ढूँढना।

न्याय ढूँढ़ा जाता होगा? जो हुआ सो करेक्ट, तुरंत तैयार। क्योंकि 'व्यवस्थित' के सिवा अन्य कुछ होता ही नहीं है। बेकार की, हाय-हाय! हाय-हाय !!

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