हम सभी अपने जीवन में चिंताओं से जूझते रहे हैं। ऐसा समय आता है, जब हम दूसरों से ज्यादा चिंता करते है। और कभी-कभी ऐसा समय आता है, जब हमे चिंता करनी चाहिए, पर हम नहीं करते हैं। इसका क्या कारण है? चिंता करना इतना सामान्य क्यों हो गया है? चिंता और परेशानी होने का कारण क्या है? परम पूज्य दादा भगवानने हमें चिंता के कई कारण दिए हैं, आईये देखते है:
क्या आपने कभी किसी बच्चे को हंसते और खेलते हुए देखा हैं, भले ही उसकी माँ बीमार हो? बल्की उसका बीस साल का भाई अपनी माँ के लिए बहुत चिंतित होता है?
क्या आपने देखा है कि मजदूर रोज अच्छी तरह से सोता है, जबकि एक अमीर व्यावसायिक अधिकारी लगातार चिंता में रहता हैं? अमीर लोगो की तुलना में मजदूर लोग ज्यादा संतुष्ट होते हैं, जब उनकी जरूरते पूरी हो जाती हैं - रोटी, कपड़े और मकान से। जबकि अमीर लोगो को उनकी जरुरतो के बारे में सोचने की जरुरत नहीं रहती, फिर भी वे चिंता करते हैं।
इस भिन्नता का क्या कारण है? तेज बुद्धि। यह एक पहला कारण है सामान्य चिंता होने का। बुद्धि जितनी तेज होगी, आंतरिक दुःख भी उतना ही ज्यादा होगा। तेज बुद्धि वाला व्यक्ति किसी भी स्थिति का विश्लेषण बहुत जल्दी करेगा और बहुत जल्दी फायदे और नुकसान के बारे में सोचने में सक्षम होता है। कुछ ही सेकंड के अंदर उनके पास कई विचार होते हैं और उनका दिमाग सोच को रोकने में सक्षम नहीं होता है। यह तेज बुद्धि उनके दुःख और चिंता का कारण बनता है।
जब एक आदमी एक बड़ा घर, एक बेहतरीन कार और अधिक पैसा आदि बनाने का सपना देखता है, तो उसे लालच कहते है। वह इन्हे प्राप्त करने के विचारों में ही रहता है और एक बार जब वह उन्हें प्राप्त कर लेता है, तो वह इस बारे में ज्यादा चिंतित होता है कि वह इन सब की भरपाई कैसे कर पायेगा? तो चिंता सब की आदत बनने का एक कारण लालच है!
क्या आप कभी ऐसी स्थिति में आए हो, जो गलत हो गई हो। और आप परिस्थितियों के परिणाम के बारे में चिंता करना शुरू कर देते हो ? जब परिणाम सँभालने की स्थिति में होते हैं, तो चिंता नहीं होती हैं। जब परिणाम विपरीत होने की गहराई से जुड़े हो, तो चिंताए हो जाती है। यह भी, चिंता के सबसे सामान्य कारणों में से एक है!
जब हम कठिन परिस्थितियों से जूझ रहे होते हैं, तो हम अक्सर दूसरों को दोष देते हैं। दूसरों पर दोष लगाकर, हम अनावश्यक चिंताएं और दुःख पैदा करते हैं। चिंता तब और बढ़ जाती है, जब दूसरे व्यक्ति को लगी चोट और उसके परिणामों के कारण क्रोध-अभिमान-छल-लालच बढ़ जाता है। इन क्रियाओं से हमारे संबंधों में द्वेष और तनाव उत्पन्न होता है, जो चिंता और आंतरिक अशांति को बढ़ाता है।
नीचे दी गई कथा बताती है कि किसी चीज़ का कर्ता बनना (चिंता और) दुःख का कारण है।
एक दिन मैंने परिवार के लिए एक मिष्ठान्न बनाने का सोचा। मैं उस मिष्ठान्न को बनाने में माहिर था, मुझे पिछले दिनों इसके लिए जबरदस्त तारीफ मिली थी, इसलिए मुझे खुद पर यकीन था कि यह मिष्ठान्न वैसा ही बनेगा जैसा मैने सोचा है।
जब मैं रसोईघर में गया, तो कुछ सामग्री नहीं थी, तो मैं उन्हें खरीदने बाजार गया, लेकिन बदकिस्मती से हड़ताल के कारण दुकानें बंद थीं।
मैं खाली हाथ घर लौट आया, दु:खी था कि मैने जो सोचा नहीं हो पाया, मेरा परिवार क्या सोचेगा। उपलब्ध सामग्री से मैंने कुछ दूसरी डिश बनाने का निर्णय लिया। मैं अपनी तुरंत निर्णय से खुश होकर खाना बनाने रसोईघर में गया। लेकिन इस बार, गैस का लाइटर नहीं चला, मैंने माचिस जलाई लेकिन सिलेंडर खाली था।
अब मैं क्या करू? अपने परिवार को क्या बताऊं? वह मेरे बारे में क्या सोचेंगे ? यह सारे विचार मुझ पर हावी होने लगे!
तब मुझे यकीन हुआ, कि मैं भोजन बनाने में सफल इसलिए हुआ था क्योंकि सभी सामग्री उपलब्ध थी जिनकी मुझे ज़रूरत थी। कोई भी काम तभी पूरा होता है, जब आपकी ज़रूरत की सभी चीजें उपलब्ध हो सही जगह और सही समय पर, हम एक संजोग हैं। पहले मैं सभी संजोगो को नज़र अंदाज करके क्रेडिट खुद ले लेता था। उस दिन मुझे एहसास हुआ कि मैं किसी भी चीज़ का कर्ता नहीं हूँ।
अगर मुझे इस बात का एहसास नहीं होता कि मैं कर्ता नहीं हूँ। तो मैं निराश हो जाता और दूसरों पर दोष लगाता। कि हड़ताल करने वाले दोषित हैं, गैस सिलेंडर वाले पर दोष लगाता। दोष देखना, क्रोध,टकराव चिंता और आंतरिक दुःख पैदा करती है ।
चिंताए तब होती है जब कोई यह मानने लगता है कि मैं यह सब कर रहा हूँ| चिंता होने का यह गूढ़ कारण है| जब कोई सोचता है कि वह अपने जीवन के सभी कार्यों का "कर्ता खुद" है। तो इस कर्तापने के अहंकार के कारण, वह खुद को चिंताओं से दुखी होने के लिए तैयार करता है, जब घटनाए अपनी कल्पना के अनुसार नहीं होती हैं। चिंता करना सबसे बड़ा अहंकार है, ‘मैं कर्ता हूं ’ यह कर्तापन का अहंकार।
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