अपने जीवन को नियंत्रित करने से पहले निम्नलिखित प्रश्नों के बारे में सोचें, जब सब कुछ नियंत्रण से बाहर हो और आप खुद को फँसा हुवा और असहाय सा महसूस कर रहे हों, तब :
वास्तव में किसी का भी, अपने जीवन पर नियंत्रण नहीं है। सभी कुछ नियंत्रित करने जाना, चिंता करने का कारण बन जाता है। तो फिर, हमारे जीवन में जो कुछ भी होता है उसे कौन नियंत्रित करता है? क्या यह भाग्य है? क्या प्रयास करके कुछ बदलना संभव है? या इसके पीछे कोई और करनी कई?
लोग भाग्य और स्वतंत्र स्व-प्रयास के बारे में बात करते हैं। कुछ केवल भाग्य पर भरोसा करते हैं, जबकि कुछ केवल अपने प्रयासो पर भरोसा करते हैं।
जब लोग ज्यादा पैसा कमाते हैं, तो वे इसका श्रेय खुद को देते हैं, और दावा करते हैं कि यह उनकी कड़ी मेहनत और प्रयास के कारण हुवा है। और यदि उन्हें नुकसान होता हैं, तो अपनी कुंडली, भाग्य, बुरी किस्मत को दोष देते है, यहाँ तक कि भगवान को भी दोष देने लगते है। जब सब यथाक्रम रूप से चल रहा हो, तो सारी सफलता हमारे प्रयास का परिणाम है, लेकिन जब व्यवस्था में कुछ भी रूकावट आती है, तो लोग भगवान को दोष देते हैं। क्या यह सही है? जो अव्यवास्थित है उसे यथाक्रम करना उसे ईस दुनिया में स्वतंत्र प्रयास (पुरुषार्थ) कहा जाता है। यदि कोई व्यक्ति वास्तव में पुरुषार्थ (प्रयास) करने में सक्षम हैं, तो उसे कभी भी नुकसान नहीं होना चाहिए। पुरुषार्थ किसी असफलता को नहीं जानता है। इसलिए यह एक विरोधाभास सा लगता है। तो, क्या आप अभी भी मानते हैं कि आप अपने जीवन को नियंत्रित कर सकते हैं?
लोगों का मानना है कि वे कर्ता हैं जबकि वास्तव में, यह पिछले जन्म का कर्मफल है। वे इस जीवन को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं। नीम के पेड़ की हर पत्ती और शाखा कड़वी होती है। वह हमेशा कड़वी ही रहती है। इसके लिए क्या पेड़ को कोई प्रयास करना पड़ता है? वृक्ष में उगने वाली हर चीज उसके बीज से आई है, इसी तरह मनुष्य अपने सहज स्वभाव (प्रकृति) के अनुसार कार्य करता हैं, लेकिन सिर्फ दावा करता हैं कि “मैं कर्ता हूं” और इस प्रकार अहंकार करता हैं। पिछले जन्म के कर्मफल के आधार से आज घटनाएं घटती है और भौतिक सुख-दुख आते हैं। और “मैंने किया,ऐसा दावा करके हम सूक्ष्म गर्व और अहंकार करता है।
‘तो, क्या मैं इसे भाग्य पर छोड़ दूं ?'
नहीं , आप ऐसे बैठकर ये दावा नहीं कर सकते कि सब कुछ किस्मत पर है। यदि आप ऐसा करते है, तो आप पूरी तरह से निष्क्रिय ही जायेंगे। ऐसी निर्भरता से मन बैचेन हो जायेगा। अगर नियति पर यह निर्भरता सही है,तो आपको कोई चिंता नहीं होनी चाहिए। लेकिन क्या आपको कोई चिंता नहीं है? इसलिए नियति पर निर्भरता तर्कसंगत नहीं है।
तो फिर, कर्ता कौन है?
परिस्थितियाँ 'कर्ता' हैं। सभी संयोग यानि साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स (व्यवस्थित) एक साथ मिलते हैं तब कोई घटना घटती है। इस लिए अपने जीवन पर नियंत्रण रखना आपके हाथ में नहीं है। आपको सिर्फ परिस्थिति का निरीक्षण करना चाहिए और देखना चाहिए कि वह क्या हैं? एक बार सभी संयोग मिल जायेंगे, काम पूरा हो जायेगा। मार्च के महीने में बारिश की उम्मीद करना गलत है। 15 जून से (जब भारत में मानसून की बारिश होती है) संयोग एक साथ आते हैं। यदि समय का संयोग मिल रहा हैं, लेकिन बादलों की स्थिति सही नहीं हो, तो बारिश कैसे हो सकती है? जब बादल मौजूद होते हैं, सही समय होता है, बिजलियाँ होती है और अन्य सभी संयोग एक साथ मिलते हैं, तो बारिश होती हैं। सभी संयोगो को इकट्ठा होना होगा। मनुष्य संयोगो पर निर्भर है। लेकिन वह मानता है कि वह कुछ कर रहा है। वह जो कुछ भी करता है, वह भी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यदि एक भी संयोग कम पड़ता हैं, तो वह उस विशेष कार्य को करने में सक्षम नहीं होगा।
व्यवस्थित वह है जो केवल साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स के माध्यम से होता है। व्यवस्थित का ज्ञान सभी अवस्थाओं में संपूर्ण समाधानकरी ज्ञान है।
परम पूज्य दादा भगवान इसे एक सरल उदाहरण के साथ बताते हैं:
एक काँच का गिलास आपके हाथ से छूटने लगा, उसे बचाने के लिए आपने हाथ को ऊपर-नीचे करके अंत तक बचाने का प्रयत्न किया, फिर भी वह गिर पड़ा और टूट गया, तब उसे फोड़ा किस ने? आपकी तनिक भी इच्छा नहीं थी कि गिलास टूटे उल्टे आपने तो उसे अंत तक बचाने का प्रयत्न किया। तब क्या गिलास की खुद की इच्छा थी टूटने की? नहीं, उसे तो ऐसा हो ही नहीं सकता। और कोई हाज़िर नहीं है फोड़नेवाला, तो फिर फोड़ा किस ने? ‘व्यवस्थित ने’। ‘व्यवस्थित’ एक्जेक्ट नियमानुसार चलता है। वहाँ अँधेरनगरी नहीं है। यदि ‘व्यवस्थित’ के नियम में ये गिलास टूटने ही नहीं होते, तो ये काँच के गिलास के कारखाने कैसे चलते? ‘व्यवस्थित’ को तो आपका भी चलाना है और कारखाने भी चलाने हैं और हज़ारों मज़दूरों का पेट भी पालना है। अत: नियम से गिलास टूटेगा ही, टूटे बिना रहेगा ही नहीं। तब अभागा, टूटने पर दु:खी होता है, गुस्सा करता है। अरे! नौकर के हाथों यदि टूट जाए और दो-चार मेहमान बैठे हों, तो मन में सोचता है कि कब मेहमान जाएँ और कब मैं नौकर को चार थप्पड़ जड़ दूँ? और फिर, ऐसा करता भी है! लेकिन यदि उसकी समझ में आ जाए कि नौकर ने नहीं तोड़ा, लेकिन ‘व्यवस्थित’ ने तोड़ा है, तो होगा कुछ? संपूर्ण समाधान रहेगा या नहीं रहेगा? वास्तव में नौकर बेचारा निमित्त है। उसे ये सेठ लोग काटने दौड़ते हैं। निमित्त को कभी काटना नहीं चाहिए। निमित्त को काटकर तू अपना भयंकर अहित कर रहा है। जरा मूल रूट कॉज़ (मूल कारण) का पता लगा न? तो तेरा निबेड़ा आएगा।
इसलिए अपने जीवन को नियंतत्रित रखने के लिए सोचने के बजाय, सकारात्मक प्रयास करने पर विचार करें। सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ किसी कार्य को पूरा करने के लिए सभी संभव प्रयासों को शामिल करना, हमारी तरफ से किया गया यह सकारात्मक प्रयास सकारात्मकता जोड़ता है। प्रार्थना भी इन सकारात्मक प्रायसो में से एक है। जब हम चिंता नहीं करते है, इससे हम कोई भी नकारात्मक प्रमाण को नही जोड़ते है। जब इन प्रमाण के साथै दुसरे प्रमाण जैसे की समय, स्थान, दुसरे सभी शामिल लोगो के अच्छे और बुरे कर्म, यह इकट्ठा होने पर ,जो अंतिम परिणाम आता है। वह व्यवथित है। एक बार जब हम परिणाम को स्वीकार करना सीख लेते हैं, चाहे यह अच्छा हो या बुरा, एक बार जब हम समझ जाते हैं, कि कोई भी कर्ता नहीं है, तो हमारा जीवन शांतिपूर्ण और आनंद से भरा होगा।
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