जब हमारे अंदर विषय विकार की इच्छा तीव्रता से उत्पन्न होती है तो हम उससे तुरंत छुटकारा पाने का उपाय ढूंढते हैं। हाँलाकि, वे समाधान लंबे समय तक नहीं टिक पाते क्योंकि विकारी इच्छाओं को ऐसे शीघ्र उपायों द्वारा काबू में रखना संभव नहीं है। इसके लिए सही समझ, अत्येधिक धैर्य, आंतरिक स्थिरता और सबसे महत्वपूर्ण दृढ़ निश्चय की आवश्यकता होती है।
सर्व प्रथम तो आवेग उत्पन्न करने वाली चीज़ो से खुद को दूर रखें। दुसरे शब्दों में कहें तो विषय विकार से सबंधित तस्वीरें, वीडियो, कहानियाँ पढ़ना या देखना नहीं चाहिए। इस प्रकार की गतिविधियों में पड़ने से विकारी आवेग दस गुना बढ़ जाता है और उसे काबू में रखना मुश्किल हो जाता है।
विपरीत लिंग के लोगों के साथ दृष्टि मिलाना, स्पर्श करना किसी भी किंमत पर टालें। ऐसे लोगो का संग करने से बचें जो विषय विकार को बढ़ावा देते हैं, फिर वह मजाक में ही क्यों न हो। तुम्हें नहीं पता तुम कब उनकी बातों में आ जाओगे।
परम पूज्य दादाश्री ने क्या सलाह और समझ प्रदान की है, आइए जाने उन्हीं के शब्दो में:
"हमेशा ही जैसे-जैसे विषय भोगता जाता है, वैसे-वैसे ज़्यादा सुलगता है। विषय तो ज़्यादा सुलगते जाते हैं। जो भी सुख भोगते हैं, उसकी प्यास बढ़ती जाती है। भोगने से प्यास बढ़ती जाती है। नहीं भोगने से प्यास मिट जाती है। उसे कहते हैं तृष्णा। नहीं भोगने से थोड़े दिन परेशान रहेंगे, शायद महीने-दो महीने लेकिन अपरिचय से फिर बिल्कुल भूल ही जाएँगे। जिस संग में ऐसा लगे कि हम फँस जाएँगे तो उस संग से बहुत ही दूर रहना, वर्ना एक बार फँस गए तो बार-बार फँसते ही जाओगे, इसलिए वहाँ से भाग जाना। फिसलनवाली जगह हो और वहाँ से भाग जाओगे तो फिसलोगे नहीं।"
इसके अतिरिक्त, विकारी विचारों का चिंतन करना, उसमें से किस प्रकार आनंद लेंगें उसकी कल्पना करना, ये भी आवेग को तीव्र बनाते हैं। इसलिए व्यक्ति को सावधान रहना चाहिए और विषय के विचारों को एक सेकेंड से ज्यादा देर के लिए नहीं टिकने देना चाहिए।
लेकिन सबसे पहले तो इन विचारों या आवेग पर कैसे अंकुश लगाएँ? विषय के स्वरूप का विश्लेषण और अध्ययन करके। जिसमें आकर्षित करने वाली चीज़ें ( जैसे–कोई व्यक्ति, विचार, शारिरिक अंग आदि) को पूरी तरह से डिवेल्यू (अवमूल्यन) करके ज़ीरो (शून्य) करना है। विषय विकार से मिलने वाला आनंद मात्र भ्रम है, सच्चा आनंद नहीं है, क्षणिक है, ऐसा सभी तरीके से सोचकर पृथ्थकरण करना है। जब आप विषय में लिप्त होते हैं तो यह भूल जाते हैं कि मानव के शरीर में कितनी गंदगी भरी पड़ी है। उदाहरण के तौर पर- आप भूल जाते हैं कि शरीर के हर छिद्र में से गंदगी निकलती रहती है जिसे देखने, सुंघने में भी घिन आती है। यदि मल, पसीने और अन्य स्त्राव से इतनी दुर्गंध आती है तो विचार किजिए की हमारे शरीर के अंदर का कैसा होगा। साथ ही यदि शारीरिक संपर्क और स्पर्श में सच्चा आनंद और सुख है, तो जब किसी की त्वचा पर घाव या खाज हो तब भी उसे स्पर्श करना अच्छा लगना चाहिए, पर ऐसा नहीं है। इसके अलावा, दुनिया में किसी भी प्रकार की परवशता दुःख का कारण होता है तो पराश्रीत होना सुख का कारण कैसे हो सकता है?
एक बार आपने अपने आप को विषय से दूर कर लिया और विश्लेषण किया कि इसमें कोई सुख नहीं है, तो फिर जब विषय आवेग उत्पन्न होंगे तब आप क्या करेंगे?
विषय विकारी इच्छाएं या वृत्तियाँ उत्पन्न होने पर तुरंत अंकुश लगाने के लिए कुछ टीप्स और युक्तियां:
आवेग की तीव्रता और उसके प्रकार के आधार पर, एक ही समय में कई चाबियों का प्रयोग करने की आवश्यकता हो सकती है। संभव है आपको ऐसा लगे कि कुछ परिस्थितियों में कुछ चाबियां बेहतर काम करती हैं, जबकि अन्य परिस्थिति में दूसरी चाबियाँ। कोई एक काम ना करें तो व्याकुल होने के बजाय तुरंत दूसरी चाबी का प्रयोग करना चाहिए। हार नहीं माननी है, बस लड़ने के नए तरीके ढूँढते रहना है।
विषय सुखों के प्रति उदासीनता आनेपर ही विषय सुख की इच्छाओं और आवेग पर हमेशा संयम (नियंत्रण) बना रहेगा। विषय सुख भ्रामक एंव क्षणिक है इसपर गूढ़ चिंतन करने के पश्चात ही उदासीनता आती है। विषय की ओर आकर्षित करने वाली चीजों के बारे में सोचने की बजाय हमें उन सुखों में फँसने से होने वाले सभी परिणामों के बारे में और ब्रह्मचर्य से होने वाले फायदे एवं उसके महत्व के बारे में सोचना चाहिए।
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विषय इच्छाओं से छुट्कारा पाने के लिए अंतिम उपाय यह है कि हमें यह दृढ़ निश्चय करना चाहिए कि विषय में कोई सुख नहीं है। इस दृढ़ निश्चय के लिए व्यक्ति को उस आनंद का स्वाद लेना होगा जो विषय सुख से प्राप्त आनंद से कहीं अधिक है। वह आनंद सिर्फ खुद के शुद्धात्मा से ही प्राप्त किया जा सकता है। शुद्धात्मा के आनंद का अनुभव करने के लिए, मनुष्य को प्रत्यक्ष ज्ञानी पुरुष से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना चाहिए।
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