पति-पत्नी के रिश्ते को कुदरत ने एक्सेप्ट किया है। उसमें यदि अणहक्क (अवैध) संबंध की इच्छा न हो तो हर्ज नहीं है। कुदरत ने उतना चलने दिया है। यदि आप संसारी हैं तो अपने हक़ का विषय भोगना, लेकिन अणहक्क (बिना हक़ का, अवैद्य) का विषय तो भोगना ही मत। क्योंकि इसका फल भयंकर है। अणहक्क का ले लेना, अणहक्क की इच्छा करना, अणहक्क के विषय भोगने की भावना करना, वह सब पाशवता कहलाती है। हक़ (वैद्य) और अणहक्क इन दोनों के बीच में लाइन ऑफ डिमार्केशन तो होनी चाहिए न ? और उस डिमार्केशन लाइन से बाहर निकलना ही नहीं चाहिए। फिर भी लोग डिमार्केशन लाइन से बाहर निकले हैं न?! वही पाशवता कहलाती है। हक़ का भोगने में हर्ज नहीं है।
लोग आज भी अणहक्क के विषय के भयंकर जोखिमों से अनभिज्ञ हैं। परम पूज्य दादा भगवान ने इन जोखिमों के बारे में बताया है जिससे लोगों को वास्तविकता का पता चले। ये तथ्य इस प्रकार हैं :
अणहक्क के विषय भोगने की इच्छा करना, वहाँ पर जानवर गति है। हमारे मन में होता है कि हमे क्या होने वाला है? इसलिए भय नहीं रखते। लेकिन संसार तो भय का कारखाना है। इसलिए सावधानी पूर्वक चलना। भयंकर कलियुग है। दिन ब दिन उतरता काल आ रहा है, विचार वगैरह बिगड़ते जाएँगे। इसलिए मोक्ष के बारे में बातें करोगे तो कुछ काम बनेगा। इसीलिए तो सयाने पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन करके मोक्ष में चले गए न!
प्रश्नकर्ता : नर्क में ज़्यादातर कौन जाता है?
दादाश्री : शील के लुटेरों के लिए सातवाँ नर्क है। जितनी मिठास आई थी उससे अनेक गुना कड़वाहट का अनुभव करे, तब वह तय करता है कि अब वहाँ नर्क में नहीं जाना है। यानी इस जगत् में यदि नहीं करने जैसा कुछ है तो वह यह है कि किसी का शील मत लूटना। कभी भी दृष्टि मत बिगड़ने देना। शील लूटने के बाद नर्क में जाएगा और वहाँ मार खाता रहेगा। इस दुनिया में शील जैसी उत्तम कोई चीज़ है ही नहीं। इस दुनिया में शीलवान जैसी उत्तम चीज़ कुछ भी नहीं।
जिन लोगों ने अणहक्क के विषय में पड़कर भयंकर जोखिमदारी ले ली है, लेकिन इस भयंकर जिम्मेदारी में से मुक्त होना चाहते है, तो उनके लिए रास्ता है। प्रत्यक्ष ज्ञानी पुरुष के पास अपने दोषो का हृदयपूर्वक पछतावा (आलोचना) करके। ज्ञानी पुरुष संपूर्ण रूप से शुद्ध होते है और विषय से पूर्णत: मुक्त होते हैं। इसके अलावा, आपकी गलती से बाहर निकलने में आपकी मदद करने के लिए उनका कोई स्वार्थ या कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं होता है। इसलिए आप निश्चिंत होकर उन पर विश्वास कर सकते हैं कि वे आपकी बात किसी को नहीं बताएंगे। केवल प्रत्यक्ष ज्ञानी ही आपको मुक्त कर सकते है, लेकिन आपको हृदयपूर्वक पश्चाताप और दृढ़ निश्चय होना चाहिए कि ऐसी भूल फिर से नहीं होगी।
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं कि पछतावे में जलेगा, तब भी पाप खत्म हो जाएँगे। दो-चार लोग यह बात सुनकर मुझसे पूछने लगे कि, हमारा क्या होगा? मैंने कहा ‘अरे! भाई मैं तेरा सबकुछ ठीक कर दूँगा। तू आज से समझदार बन जा।’ जागे तभी से सवेरा। उसकी नर्कगति उड़ा दूँगा, क्योंकि मेरे पास सभी रास्ते हैं, मैं कर्ता नहीं हूँ इसलिए। यदि मैं कर्ता हो जाऊँ तो मुझे बंधन है। मैं आपको ही बताता हूँ कि अब ऐसा करो आप। उससे फिर सब खत्म हो जाता है और ऐसे ही कुछ अन्य विधियाँ करते हैं।
परम पूज्य दादा भगवान अधिक दृढ़ता से कहते हैं:
प्रश्नकर्ता : आपके पास ऐसे लोग आते हैं कि जो उनके खुद के पिछले हुए दोषों की आपसे आलोचना करते हैं तो आप उन्हें छुड़वा देते हैं?
दादाश्री : मुझ से आलोचना करे तो मेरे साथ अभेद हुआ कहलाएगा। हमें तो छुड़वाना ही पड़ेगा। आलोचना करने का अन्य कोई स्थान ही नहीं है, यदि स्त्री को बताने जाए तो स्त्री चढ़ बैठे, मित्र को बताने जाए तो मित्र चढ़ बैठे, खुद अपने आपसे कहने जाए तो खुद ही चढ़ बैठता है उल्टा इसलिए किसी को नहीं बताता और हल्का नहीं हो पाता इसलिए हमने आलोचना का सिस्टम (पद्धति) रखा है।
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