इस कलियुग में ब्रह्मर्चय का पालन करना कठीन माना जाता है। फिर भी ऐसे दूषमकाल में परम पूज्य ज्ञानी पुरुष दादाश्री स्वयं ब्रह्मचर्य में रहकर दूसरे लोगों को सही समझ देने सें सक्षम हैं। परम पूज्य दादाश्री ने विवाहितों को ऐसा रास्ता दिखाया कि बाहर के परिणामो में कुछ भी फेरबदल किये बिना भीतर ऐसी समझ फीट होती जाती है कि धीरे-धीरे बाहर परिवर्तन होने लगता है। एक पत्नीव्रत- एक पतिव्रत होगा उसे परम पूज्य पूज्य दादाश्रीने इस काल में ब्रह्मचारी कहा है और उसके ब्रह्मचर्य की उन्होंने खुद ने गारन्टी ली है। तो फिर विवाहित भी ज्ञानी की दृष्टि से समझकर ब्रह्मचर्य का मार्ग क्यों नहीं पूरा कर सकते ?
विषय के संबंध में, आपको पत्नी के साथ समाधानपूर्वक आपसी व्यवहार रखना। आपको और उन्हें दोनों का समाधान हो ऐसा व्यवहार रखना। उन्हें असमाधान हो और आपको समाधान रहे, तो ऐसा व्यवहार बंद कर देना। यह ‘अक्रम विज्ञान’ है ! स्त्री के साथ रहना। आज सभी शास्त्रों ने स्त्री के साथ रहने को मना किया है, जबकि परम पूज्य दादाश्री स्त्री के साथ रहने को कहते हैं। लेकिन साथ में यह थर्मामीटर देते हैं कि स्त्री को दुःख नहीं हो, उस तरह से विषय का व्यवहार रखना।
धर्म में प्रगति के लिए विवाह करना है। दोनों साथ में रहें और आगे बढ़े। लेकिन यह तो विषयरूप हो गया है। स्त्री हो और विषय न हो तो कोई हर्ज ही नहीं है। हाँ, अपने ऋषि-मुनि विवाह करते थे न ! एक-दो, एक लड़का और एक लड़की बस, और कुछ नहीं | फिर केवल फ्रेन्डशीप ( मित्रता ) । ऐसा जीवन जीना है। अभी अगर एक पुत्र या एक पुत्री के लिए शादी करें, तब हर्ज नहीं। बाद में मित्रों की तरह रहें। फिर दु:खदायी नहीं होगा।! ये तो विषय में सुख ढूँढते हैं, यही दुःखों का मूल कारण है।
हक़ के विषय के बारे में ज्ञानी पुरुष क्या कहना चाहते है कि यह दवाई ‘मीठी’ है इसलिए रोज-रोज नहीं पीनी चाहिए। यह ‘दवाई जैसा’ है और ‘बुखार’ चढ़ने पर दोनो में से किसी एक को नहीं लेकिन दोनों को बुखार चढ़े और वह असह्य हो जाए, तभी दवाई पीनी चाहिए, वर्ना, यदि मीठी है इसलिए बार-बार पीने लगे तो वह दवाई ही पाइज़न बन जाएगी। उसके लिए फिर डाक्टर जिम्मेदार नहीं है! मानो पुलीस वाला पकड़कर ले जाए और चार दिन भूखा रखने के बाद (डंडे मारकर) मांसाहार करवाए, उस समय जैसे बरबस-मजबूर होकर, चिढकर मांसाहार करना पडें, उसी प्रकार विषय सेवन करना चाहिए।
विवाहित जीवन कब शोभायमान होता है? जब दोनों को बुखार चढ़े, तभी दवाई पीएँ, तब। बिना बुखार दवाई पीते हैं या नहीं? बिना बुखार के दवाई पीए, तो वह विवाहित जीवन शोभा नहीं देता। दोनों को बुखार चढ़े तभी दवाई पीओ। दिस इज़ द ऑन्ली मेडिसिन (यह केवल दवाई ही है)। मेडिसिन मीठी हो, उससे कहीं हर रोज़ पीने जैसी नहीं होती। विवाहित जीवन को शोभायमान करना हो तो संयमी पुरुष की आवश्यकता है। ये सभी जानवर असंयमी कहलाते हैं। मनुष्यों का तो संयमी जीवन होना चाहिए। पहले जो राम-कृष्ण आदि हो गए, वे सभी पुरुष संयमवाले थे। स्त्री के साथ संयमी! अभी का यह असंयम क्या दैवी गुण है? नहीं, वह पाशवी गुण है। मनुष्यों में ऐसा नहीं होना चाहिए। मनुष्य असंयमी नहीं होना चाहिए। जगत् समझता ही नहीं कि विषय क्या है? एक बार के विषय में पाँच-पाँच लाख जीव मर जाते हैं, उसकी समझ नहीं होने से यहाँ मौज उड़ाते हैं। समझते नहीं है न! कोई चारा नहीं हो तभी ऐसी हिंसा हो, ऐसा होना चाहिए। लेकिन ऐसी समझ नहीं हो, तब क्या करे?
विवाहित अगर ब्रह्मचर्य व्रत ले, तो समझ में आएगा कि आत्मा का सुख कहाँ से आता है। यह तो विषय है, इसलिए तब तक उसे, इनमें से सच्चा सुख कौनसा है, इसका पता उसे नहीं चलता। जिसने ब्रह्मचर्य व्रत लिया है उसको आत्मा के शाश्वत सुख का पता चलेगा। उसका मन और शरीर निरोगी रहते है। यदि विवाहितों को आत्मज्ञान ‘अक्रम विज्ञान’ द्वारा प्राप्त हुआ हो तो वे सरलता से ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते है।
छ:-बारह महीने स्त्री विषय से दूर रहे न, तभी भान होगा, यह तो भान ही नहीं है। सारे दिन उसका नशा चढ़ता रहता है और नशे में ही घूमता रहता है। इसलिए महात्माओं से कहते हैं कि छ:-बारह महीने के लिए कुछ करो न, कुछ। आपको क्या परेशानी है? थोड़े-बहुत महात्माओं ने ऐसा मन में तय किया और व्रत को ट्रायल में भी लिया, सभी ऐसा करें तो काम हो जाएगा न! आज यह मोक्ष का साधन मिला है, अन्य सबकुछ खाने-पीने की छूट है। सिर्फ यही एक चीज़ नहीं। उसका भगवान ने वर्णन किया है न! वह वर्णन यदि करने जाए न, तो पूरा वर्णन सुनते ही मर जाए मनुष्य।
प्रश्नकर्ता : इसमें भी, इतनी ही दवाई पीना, वह क्या अपने काबू में है? वह डोज़ काबू में नहीं रहे तो क्या करना चाहिए?
दादाश्री : काबू में नहीं रहे, ऐसी कोई चीज़ होती ही नहीं इस दुनिया में। लेकिन दवा मीठी लगी इसलिए बार-बार पीते रहें, ऐसा कहीं करना चाहिए? अत: इसमें स्त्री का दोष नहीं है, बुख़ार का दोष नहीं है। बुख़ार नहीं चढ़ा हो और दवाई पीओ, उस चीज़ का दोष है। यानी यह सब जोखिमदारी समझ लेना। अपनी यह बात भरोसे लायक है और तुरंत ही अनुभव में आए, ऐसी बात है! और अगर यह इतना आसान है तो इसका पालन करना चाहिए, है ना? या इसमें कोई दिक्कत है?
प्रश्नकर्ता : हमें आगे बढ़ना है, इसलिए पालन करना ही है।
दादाश्री : बुख़ार चढ़े तभी पीना। यह तो समझदार इन्सान का ही काम है न? अत: हमारा यह थर्मामीटर मिल गया है। तभी तो हम कहते हैं न कि स्त्री के साथ मोक्ष दिया है! ऐसी सरलता किसी ने नहीं दी है। बहुत ही सरल और सीधा मार्ग दिया है। अब आपको जैसा सदुपयोग करना हो, वैसा करना। एकदम सरल! ऐसा कभी हुआ ही नहीं! यह निर्मल मार्ग है, भगवान भी जिसे एक्सेप्ट करें, ऐसा मार्ग है!
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