अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें21 मार्च |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
प्रश्नकर्ता : जीवन में आर्थिक परिस्थिति कमज़ोर हो तब क्या करना?
दादाश्री : एक साल बारिश नहीं होने पर किसान क्या कहते हैं कि हमारी आर्थिक स्थिति खतम हो गई। ऐसा कहते हैं कि नहीं कहते? फिर दूसरे साल बारिश होने पर उसका सुधर जाये। अर्थात् आर्थिक स्थिति कमज़ोर हो तब धैर्य रखना चाहिए। खर्च कम कर देना चाहिए और किसी भी रास्ते मेहनत, प्रयत्न अधिक करने चाहिए। अर्थात् कमज़ोर परिस्थिति होने पर ही यह सब करना, बा़की परिस्थिति अच्छी होने पर तो गाडी अपने आप चलती रहे।
इस देह को जरूरत के अनुसार खुराक ही देने की आवश्यकता है, उसे और कुछ आवश्यक नहीं, और नहीं तो फिर ये त्रिमंत्र हर रोज घंटाभर बोलिये न! यह बोलने पर आर्थिक परिस्थिति सुधर जायेगी। उसका उपाय करना चाहिए। उपाय करने पर सुधर जायें। आपको यह उपाय पसंद आयेगा?
इस दादा भगवान का एक घंटा नाम लेने पर पैसों की बारिश होगी। लेकिन ऐसा करते नहीं न, बाकी हजारों लोगों को पैसे आये हैं। हजारों लोगों की अड़चन गई। 'दादा भगवान' का नाम लें और काम नहीं हो तब वे 'दादा' नहीं। लेकिन ये लोग इस प्रकार नाम लेते नहीं न!
लक्ष्मी तो कैसी है? कमाने में दुःख, सँभालने में दुःख, रक्षण करते दुःख और खर्च करने में भी दुःख। घर में लाख रुपये आने पर उसे संभालने की झंझट होने लगे। किस बैंक में इसकी सेफसाइड (सलामती) है यह खोजना होगा और सगे-संबंधी को मालूम होते ही तुरंत दौड़े आये। मित्र सब दौड़े आये, कहने लगे, 'अरे यार मेरे पर इतना भी य़कीन नहीं? केवल दस हजार की जरूरत है', तब फिर ज़बरदस्ती देना पड़े। यह तो, पैसों का भराव हो तब भी दुःख और तंगी हो तब भी दुःख। यह तो नोर्मल हो वही अच्छा वरना फिर लक्ष्मी खर्च करने पर भी दुःख हो।
हमारे लोगों को तो लक्ष्मी को सँभालना नहीं आता और भोगना भी नहीं आता। भोगते समय कहेंगे कि इतना ज्यादा महँगा? इतना महँगा कैसे लें? अबे चुपचाप भोग ले न! लेकिन भोगते समय भी दुःख, कमाते भी दुःख। लोग परेशान करते हों उसमें कमाना, कई तो उगाही के पैसे नहीं देते। इसलिए कमाते भी दुःख और सँभालते भी दुःख। सँभाल सँभाल करने पर भी बैंक में रहते ही नहीं न! बैंक खाते का नाम ही क्रेडिट और डेबिट, पूरण (जमा) और गलन! लक्ष्मी जाये तब भी बहुत दुःख दे!
कई लोग तो इन्कमटैक्स पचाकर बैठ गये होते हैं। पच्चीस-पच्चीस लाख दबाकर बैठे गये होते हैं। लेकिन वे जानते नहीं कि सभी रुपये जाते रहेंगे। फिर इन्कमटैक्सवाले नोटिस देंगे तब रुपये कहाँ से निकालेंगे? यह तो निरा फँसाव है। इस तरह ऊपर चढें हुए की भारी जोखिमदारी है पर वह जानता ही नहीं न! उलटे सारा-दिन किस तरह इन्कमटैक्स बचाएँ, यही ध्यान। इसलिए ही हम कहते हैं न कि ये तो तिर्यंच (जानवर गति) का रिटर्न टिकट लेकर आये हैं!
सारे संसार की मेहनत (कोल्हू के बैल की तरह) घान निकाल निकालकर व्यर्थ जाती है, वहाँ बैल को खली दें, जब कि यहाँ बीवी हाँडवे का ढेला दें, ताकि चले, सारा दिन बैल की तरह घान निकाल निकाल करता है।
अहमदाबाद के सेठों को दो-दो मिलें हैं फिर भी उनके ऊमस (तनाव)का यहाँ पर वर्णन नहीं कर सकें ऐसा है। दो दो मिलें होने पर भी वे कब फेइल हो जायें यह नहीं कह सकते। स्कुल में अव्वल दर्जे में पास हुए थे पर यहाँ फेइल हो जायें। क्योंकि उन्होंने बेस्ट-फुलिशनेस शुरू की है। 'डीसऑनेस्टी इस ध बेस्ट फुलिशनेस'! (अप्रामाणिकता सर्वोपरि मूर्खता है।) इस फूलिशनेस (मूर्खता) की कोई तो हद होगी न? या फिर सारी हदें पार कर के बेस्ट तक पहूँचना? तभी आज बेस्ट फूलिशनेस तक पहुँचे!
मैंने पैसों का हिसाब लगाया था। अगर हम पैसे बढ़ाया करें तो कहाँ तक पहुँचेंगे? इस दुनिया में किसी का हमेशा पहला नंबर नहीं आया है। लोग कहते हैं कि 'फोर्ड का नंबर पहला है।' पर चार साल के बाद किसी दूसरे का नाम सुनने में आता है। अर्थात् किसी का नंबर टिकता नहीं है। बिना वज़ह यहाँ दौड़-धूप करें, उसका क्या अर्थ ? रेस में पहले घोडे़ को इनाम मिलता है, दूसरे-तीसरे को थोड़़ा मिलता हैं और चौथे को तो दौड़ दौड़ कर मर जाने का! मैंने कहा, ''इस रेसकोर्स में मैं क्यों उतरुँ?'' तब ये लोग तो मुझे चौथा, पाँचवा, बारहवाँ या सौवाँ नंबर देंगे। तो फिर हम किस लिए दौड दौड कर हाँफें? क्या हारते नहीं लोग? पहला आने के लिए दौड़ा और आया बारहवाँ, फिर कोई हमसे पूछे तक नहीं।
लक्ष्मी लिमिटेड है और लोगों की माँग 'अनलिमिटेड है!'किसी को विषय की अटकन (मूर्छा रूपी बाधा) होती है, किसी को मान की अटकन पड़ी हो, ऐसी तरह तरह की अटकन (मूर्छा रूपी बाधायें) पड़ी होती है। अर्थात् इस तरह पैसों की अटकन पड़ी होती है, इसलिए सुबह उठा तब से पैसे का ध्यान रहा करे। यह भी बड़ी अटकन कहलाये।
Book name: पैसों का व्यवहार (Page #9 Last Paragraph , Page #10,#11 & Page #12 Paragraph #1, #2).
Q. व्यवसाय में प्रामाणिकता कैसे रखें?
A. इसलिए हम परम हित की बात बताते हैं, ट्रिकें इस्तेमाल करना बंद करें। चोखा व्यापार करें। ग्राहकों से साफ कह दें कि इसमें मेरे पंद्रह प्रतिशत मुनाफा जुड़ा है,...Read More
Q. मुझे मेरे व्यवसाय का विस्तार करना चाहिए?
A. प्रश्नकर्ता: अब धंधा कितना बढ़ाना चाहिए? दादाश्री: धंधा उतना बढ़ायें कि चैन से नींद आये, जब हम हटाना चाहें तब हटा सकें, ऐसा होना चाहिए। धंधा बढ़ा-बढ़ा कर...Read More
Q. क्या मुझे पैसे उधार देने चाहिए?
A. प्रश्नकर्ता: किसी मनुष्य को हमने पैसे दिये हो और वह नहीं लौटाता हो तो उस समय हमें वापस लेने का प्रयत्न करना चाहिए या फिर कर्ज अदा हो गया मानकर संतोष लेकर...Read More
Q. व्यापार में ट्रिक्स-क्या मुझे ऐसा करना चाहिए?
A. लक्ष्मी जी की कमी क्यों है? लक्ष्मी की कमी क्यों है? चारियों से। जहाँ मन-वचन-काया से चोरी नहीं होगी, वहाँ लक्ष्मीजी की मेहर होगी। लक्ष्मी का अंतराय चोरी...Read More
Q. नुकसान के वक्त कैसे बर्तना चाहिए?
A. प्रश्नकर्ता : धंधे में भारी घाटा हुआ है तो क्या करुँ? धंधा बंद कर दूँ कि दूसरा धंधा करुँ? कज़र् बहुत चढ़ गया है। दादाश्री : रुई बाजार का घाटा कुछ बनिये की...Read More
A. प्रश्नकर्ता : मनुष्य कर्ज छोड़कर मर जाये तो क्या होगा? दादाश्री : चाहे कर्ज अदा किये बिना मर जाये, पर उसके मन में आखिर तक-मरते दम तक, एक बात तय होनी चाहिए...Read More
Q. ग़ैरकानूनी पैसे का क्या असर होता है?
A. मुंबई में एक उच्च संस्कारी परिवार की बहन से मैंने पूछा, 'घर में क्लेश तो नहीं होता न?' तब वह बहन कहती है, 'रोजाना सवेरे क्लेश के नाश्ते होते हैं!' मैंने...Read More
Q. व्यावसायिक नैतिकता क्या है?
A. प्रश्नकर्ता : आत्मा की प्रगति के लिए क्या करते रहना चाहिए? दादाश्री : उसे प्रामाणिकता की निष्ठा पर चलना चाहिए। वह निष्ठा ऐसी कि बहुत तंगी में आ जाये तब...Read More
A. जो चीज़ प्रिय हो गई हो उसी में मूर्र्छित रहना, उसका नाम लोभ। वह चीज़ प्राप्त होने पर भी संतोष नहीं होता। लोभी तो, सुबह जागा तब से रात आँख मुँदने तक, लोभ में...Read More
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