
स्पर्धा में जब सामने वाला व्यक्ति हमारे साथ तुलना होने लगे कि “ इसके पास ज़्यादा है, मेरे पास कम है”, तब उसे हमारे लिए ईर्ष्या शुरू होती है। सामने वाला व्यक्ति हमारे साथ स्पर्धा या ईर्ष्या करे तब किस तरह से जागृत रहें उसकी समझ हमें यहाँ प्राप्त होती है।
जिस व्यक्ति को हमारे लिए स्पर्धा होती है वह देखता है कि “यह बड़े बनकर बैठ गए हैं, रौफ़ मारते हैं, अपने आपको पता नहीं क्या समझते हैं!” इसलिए उस व्यक्ति को हमारे लिए द्वेष, स्पर्धा और ईर्ष्या होगी। इसलिए जब हम सफ़ल होंगे तब आसपास के लोग आकर हमारी तारीफ़ करें और हमें बधाई दें, तब हमें भी सामने नम्रता रखनी चाहिए। कोई हमारे साथ स्पर्धा ना करे उसके लिए हमें बहुत ही विनम्र रहना चाहिए। अंदर से ऐसा भाव पकड़कर रखना चाहिए कि “मुझे किसी के साथ स्पर्धा नहीं करनी है।”
हमारे पास सच्ची समझ होनी चाहिए कि पुण्य के आधार पर हमें काम में सफलता मिली है, पिछली असफलता को याद करके सोचना चाहिए कि तब हमारी काबिलियत कहाँ थी? जब पुण्य खत्म हो जाएगा तब असफलता भी मिलेगी। इसलिए सफ़लता का अहंकार अपने आप उतर जाता है और नम्रता आती है।
सामनेवाले का पॉज़िटिव देखने से हमारा अहंकार अपने आप कम हो जाता है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति को हमारे साथ स्पर्धा या तुलना कर रहा हो तो उनके पॉज़िटिव देखने चाहिए, उन पॉज़िटिव गुणों की लोगों के साथ प्रशंसा भी करनी चाहिए। सामनेवाले के विनय में रहना चाहिए, “वह मुझसे बड़ा है, मै छोटा हूँ।” ऐसा मन में रखने से विनय उत्पन्न होता है।
हम भी सबके ऊपर इम्प्रैशन जमाते रहते हैं इसलिए सामनेवाले को ईर्ष्या होती है। उस समय सामनेवाले व्यक्ति को भी इन्वॉल्व करिए जिससे वह भी ख़ुश हो जाएं। अपनी सफ़लता में, अपने काम में या बातों में सभी को इन्वॉल्व करिए, सभी को साथ में रखें तो अपना मान अपने-आप कम होता जाएगा और सामने वाले को स्पर्धा नहीं होगी।
कोई हमसे स्पर्धा या तुलना करे तब हमें उसके लिए द्वेष नहीं करना चाहिए। बल्कि उस व्यक्ति के भीतर रहने वाले भगवान को याद करके प्रार्थना करनी चाहिए कि उनका दुःख दूर हो जाए। उनको शांति हो जाए।
अगर कोई व्यक्ति हमारे बारे में नेगेटिव कर रहा हो और वह बात हमारे पास आए, तो हमें कहना चाहिए कि, “ठीक है। मुझमें कमी तो होगी ना? उनको दिख रही है तो मैं उसे सुधारूँगा।” लेकिन हमें भी सामनेवाले का नेगेटिव किसी से नहीं कहना चाहिए।
सामने वाले व्यक्ति को भी हेल्प मिल जाए, उसे अच्छे संजोग मिलें और स्पर्धा के कारण खत्म हो जाए ऐसा हमें ऐसे भाव करने चाहिए, तभी इससे छूट सकेंगे। हमारे निमित्त से किसी को स्पर्धा ना हो ऐसी भावना करते रहनी चाहिए। फिर भी अगर कोई स्पर्धा करने लगे तो उसके लिए सच्चे दिल से पश्चाताप करना चाहिए।
जिस व्यक्ति को हमारे निमित्त से स्पर्धा कर रहा है तो वह हमेशा हमें नीचे गिराने, हमारी भूल निकालने, हमे हराने की कोशिशें करता रहेगा। हमें लगेगा कि सामनेवाला जानबूझकर परेशान कर रहा है तब भी उस समय हमें सामने कोई रिएक्शन नहीं देना चाहिए। जिसे इस स्पर्धा में से बाहर निकलना है, उसे मार खा लेनी चाहिए। सामनेवाला हमारा कितना भी नुकसान करे, नीचे गिराने की कोशिश करे, सभी से बुराई करता रहे, दुःख या कष्ट दे, हमारी बदनामी करे, नेगेटिव बातें करे, इन सभी में हमें सामने बिल्कुल रिएक्ट नहीं करना चाहिए।
सामनेवाला व्यक्ति हमारे साथ स्पर्था करता हो, तो उनके लिए एक भी नेगेटिव हमें किसी और से नहीं कहना चाहिए। उनकी नेगेटिव बातों हो रही हो तो उनमें ख़ुश भी नहीं होना चाहिए।
कोई हमारे साथ स्पर्धा करे तो हमें जाग्रत रहना चाहिए कि उनकी असर में हम ना आ जाएँ, अंदर कोई राग-द्वेष ना हो जाए। क्योंकि, यदि हमें असर हो गई तो हम भी उनकी तरह ही हो जाएँगे और सामने स्पर्धा में उतर जाएँगे।
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