अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
प्रश्नकर्ता : दादा, सामनेवाले के दोष क्यों दिखते हैं?
दादाश्री : खुद की भूल के कारण ही सामनेवाला दोषित दिखता है। इन दादा को सब निर्दोष ही दिखते हैं। क्योंकि अपनी सारी भूलों को उन्होंने मिटा डाला है। खुद का ही अहंकार सामनेवाले की भूल दिखाता है। जिसे खुद की ही भूल देखनी है, उसे सभी निर्दोष ही दिखेंगे।
जिसकी भूल हो, वह भूल का निकाल करे। सामनेवाले की भूल से हमें क्या लेना-देना?
प्रश्नकर्ता : दादा, सामनेवाले के दोष नहीं देखने हों, फिर भी दिख जाएँ और भूलें घेर लें तो क्या करें?
दादाश्री : जो उलझाती है वह बुद्धि है, वह विपरीत भाव को प्राप्त बुद्धि है और बहुत काल से है, और फिर आधार दिया है। इससे वह जाती नहीं है। यदि उससे कहा कि तू मेरे लिए हितकारी नहीं है तो उससे छूट जाएँगे। यह तो नौकर होता है, उसे कहा कि तेरा काम नहीं है, फिर उसके पास काम करवाएँ तो चलेगा? उसी प्रकार बुद्धि को एक बार भी काम न बताएँ। इस बुद्धि को तो संपूर्ण असहयोग देना है। विपरीत बुद्धि संसार के हिताहित का भान बतानेवाली है, जब कि सम्यक् बुद्धि संसार से हटाकर मोक्ष की ओर ले जाती है।
प्रश्नकर्ता : दोष छूटते नहीं, तो क्या करना चाहिए?
दादाश्री : दोष छूटते नहीं। पर उन्हें 'हमारी चीज़ नहीं है,' ऐसा कहें, तो छूट जाएँगे।
प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा कहें, फिर भी नहीं छूटें तो क्या करना चाहिए?
दादाश्री : यह तो जो दोष बर्फ जैसे हो गए हैं, वे एकदम से कैसे छूटेंगे? फिर भी वे ज्ञेय हैं और हम ज्ञाता, ऐसा संबंध रखें, तो उससे वे दोष छूट जाएँगे। हमारा आधार नहीं होना चाहिए। आधार न मिले तो वह गिर ही जाएगा। यह तो आधार से चीज़ खड़ी रहती है। निराधार हो जाए, तो गिर जाती है। यह जगत् आधार से खड़ा हुआ है, पर निराधार हो तो खड़ा ही नहीं रहे न। निराधार करना आता नहीं है। वह तो ज्ञानियों के ही खेल हैं! यह जगत् तो अनंत 'गुह्यवाला', उसमें 'गुह्य से गुह्य' भाग को किस तरह समझे?
Book Name: निजदोष दर्शन से... निर्दोष! (Page #66 Paragragh #2 to #8 Page #67 Paragragh #1, #2,#3)
Q. आपसी रिश्तों में समस्याएँ क्यों आती है?
A. प्रश्नकर्ता : मेरे घर में हर तरह की मुश्किलें ही क्यों रहा करती हैं? धंधे में, वाइफ को, घर में सभी को कोई न कोई तकली़फ रहा ही करती है। दादाश्री : हम,...Read More
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Q. आपसी रिश्तों में होनेवाले टकराव को कैसे टालें?
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Q. बच्चों को सुधारने के लिए क्या हमें उन्हें मारना चाहिए?
A. इस जगत् में आप किसीको दुःख देंगे, तो उसका प्रतिघोष आप पर पड़े बगैर रहेगा नहीं। स्त्री-पुरुष ने तला़क लेने के बाद, पुरुष फिर से शादी करे उसके बावजूद...Read More
Q. सास के साथ होनेवाले टकराव को कैसे टालें?
A. एक-एक कर्म से मुक्ति होनी चाहिए। सास परेशान करे, तब हर एक समय कर्म से मुक्ति मिलनी चाहिए। तो उसके लिए हमें क्या करना चाहिए? सास को निर्दोष देखना चाहिए कि...Read More
Q. जब अपमान हो, तब कैसा व्यवहार करना चाहिए?
A. प्रश्नकर्ता : कोई हमें कुछ कह जाए वह भी नैमित्तिक ही है ना? अपना दोष नहीं हो, फिर भी बोले तो? दादाश्री : अपना दोष नहीं हो और वह बोले, तो किसीको ऐसा अधिकार...Read More
Q. क्या हमें पूर्वाग्रह रखना चाहिए?
A. दोष देखना बंद कर दो न! प्रश्नकर्ता : यदि दोष नहीं देखें तो दुनिया की दृष्टि से हम एक्सेस फूल (अधिक मूर्ख) नहीं लगेंगे? दादाश्री : मतलब दोष देखने से सफल...Read More
Q. ऑफिस में आलसी लोगों के साथ काम करते हुए कैसा व्यवहार रखना चाहिए?
A. प्रश्नकर्ता : मेरा स्वभाव ऐसा है कि कुछ गलत बर्दाश्त नहीं कर सकता इसलिए गुस्सा आ जाता है। दादाश्री : गलत है, यह न्याय कौन करेगा? प्रश्नकर्ता : हमारी...Read More
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