प्रश्नकर्ता : मेरा स्वभाव ऐसा है कि कुछ गलत बर्दाश्त नहीं कर सकता इसलिए गुस्सा आ जाता है।
दादाश्री : गलत है, यह न्याय कौन करेगा?
प्रश्नकर्ता : हमारी बुद्धि जितना काम करे, उसके अनुसार हम न्याय करें।
दादाश्री : हाँ, उतना न्याय होता है।
प्रश्नकर्ता : मगर ऐसा है कि, यदि एक आदमी को हम रोज़ाना पच्चीस रुपये पगार देते हों और वह आदमी पाँच रुपये का भी काम नहीं करता हो, तब हमें ऐसा तो होगा ही कि यह ठीक नहीं है?
दादाश्री : मगर वह काम क्यों नहीं करता होगा? किस कारण से वह काम नहीं करता होगा?
प्रश्नकर्ता : वह स्वभाव से प्रमादी है, इसलिए।
दादाश्री : क्या ऐसे आदमी सभी लोगों को मिलते होंगे?
प्रश्नकर्ता : सभी को मिलते होंगे ऐसा कैसे कह सकते हैं?
दादाश्री : तो आपको ही ऐसा आदमी क्यों आ मिला? उसका कोई कारण तो होगा न?
प्रश्नकर्ता : मेरे पिछले कर्म ऐसे होंगे इसलिए मुझसे आ मिला।
दादाश्री : तो फिर उसका क्या दोष? तो उसके ऊपर गुस्सा करने का कारण ही कहाँ रहा? गुस्सा तो अपने आप पर करें कि, 'भैया, मैंने ऐसे कर्म बाँधे हैं कि मुझे तेरे जैसा आदमी मिल आया?' खुद की कमज़ोरी तो खुद को ही नुकसानदेह होती है। 'भुगते उसकी भूल'। वह काम नहीं करे और आप गुस्सा करें तो आपको दुःख होगा इसलिए भूल आपकी है। वह तो वैसे का वैसा ही रहेगा। कल भी वैसा ही करेगा और ऊपर से आपकी नकल उतारेगा। आपके मुड़ते ही आपके पीछे आपका मज़ाक उड़ाएगा और कहेगा कि, 'घन-चक्कर ही है, जाने दीजिए उसे!'
प्रश्नकर्ता : तो फिर उसे पास बिठाकर, समझाकर कहें कि, 'तुझसे इतना काम क्यों नहीं हो पाता? देख, दूसरे कितना अच्छा काम करते हैं?' उसे आता नहीं हो तो सिखलाएँ, क्या ऐसा करें?
दादाश्री : हाँ, उसकी समझ में आए, उसे भावना उत्पन्न हो, ऐसे समझाना चाहिए।
दादावाणी अगस्त-2008 (Page #12)
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