मिच्छामी दुक्कड़म अर्धमागधी भाषा (भगवान महावीर के समय में बोली जाने वाली भाषा) का एक शब्द है। मिच्छामी दुक्कड़म द्वारा, यह कहने की कोशिश की जा रही है, 'मिथ्या में दुष्कृतम' मतलब , 'मेरे बुरे कर्म (दुष्कृत) फलहीन हो (मिथ्या)।' इस अर्थ से हम समझ सकते हैं ,यह शब्द केवल संवत्सरी (जैन धर्म का पर्व ) के दिन मिलने वाले, सभी को जिस तरह से आप नए साल की मुबारक बात देते हो वैसे कहने के लिए नहीं है। यह वाक्य हमसे हुई उन गलतियों के लिए पश्चाताप व्यक्त करने का एक तरीका है। यह पश्चाताप, प्रतिक्रमण है (कबूल करना, क्षमा मांगना और पुनरावृत्ति न करने का संकल्प करना) जो संवत्सरी के दिन किया जाता है। एक सामान्य प्रश्न खड़ा होता है की यदि अगर हम सालभर गलतियाँ करते हैं, उसका केवल एक ही दिन प्रतिक्रमण क्यों करते हैं ! तो आइए, परम पूज्य ज्ञानीपुरुष दादा भगवान से उनकी भाषा में यथार्थ प्रतिक्रमण किसे कहते है। हम यह भी जानेंगे कि भगवान महावीर के कहने का क्या मतलब था जब उन्होंने प्रतिक्रमण की बात की थी।
क्रमण, अतिक्रमण, प्रतिक्रमण
यह दुनिया कैसे खड़ी हुई है? यह अतिक्रमण (मन,वचन या काया से दुःख देना) की वजह से। क्रमण (सहज क्रियाएं; ऐसी क्रियाएं जिनका कोई अच्छा या बुरा प्रभाव नहीं है) में हर्ज नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि आप एक दुकान (होटल) में जाते हैं और दो प्लेट आप से टूट गई और प्लेट की कीमत चूका कर चले जाते हैं, तब इसे अतिक्रमण नहीं माना जाता है। इसलिए, प्रतिक्रमण करना आवश्यक नहीं है। लेकिन अगर आप मैनेजर को बताते हैं कि उनके वेटर ने उन्हें तोड़ दिया, तो वह अतिक्रमण है। अतिक्रमण उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। वैसे बाकी सब कुछ क्रमण है। स्वाभाविक और सहज बात क्रमण है, और उसमें कोई हर्ज नहीं है। हालाँकि, अतिक्रमण हुए बिना रहता नहीं है। इसलिए, उसके लिए प्रतिक्रमण करे।
भाव और द्रव्य प्रतिक्रमण के बीच क्या अंतर है?
आपके भाव में हमेशा रहना चाहिए, की ऐसा नहीं होना चाहिए। वह भाव-प्रतिक्रमण कहलाता है (भाव से किया गया प्रतिक्रमण) और अगर हर शब्द पढना पड़े। जितने शब्द लिखे वे सरे पढ़ने पड़े, तो उसे द्रव्य-प्रतिक्रमण (क्रिया के माध्यम से किया गया प्रतिक्रमण) कहा जाता है। जैसे अगर डॉक्टर ने हमें दवा दी है, जो त्वचा पर लगाने के लिए है, लेकिन हम उसे पी जाते हैं। यह उसी तरह है जिस प्रकार हमने प्रतिक्रमण को समझा है, जो भगवान महावीर ने हमें अर्धमागधि भाषा में दिया था और उसे याद कर लिया है। हमने दवा को पिया है जिसे त्वचा पर लगाना था। क्या प्रतिक्रमण केवल संवत्सरी के दिन एक दूसरे को “ मिच्छामि दुक्कड़म” कह कर पूर्ण माना जा सकता है? यह ऐसा नहीं है। बिना समझ प्रतिक्रमण आपको उतना ही मदद करता है, जितना कि एक यूरोपीय व्यक्ति आपसे दिशा-निर्देश मांगे और आप उसे हिंदी भाषा में निर्देश देते हैं।
यथार्थ प्रतिक्रमण किसे कहते है?
प्रतिक्रमण मतलब अपने गलती के लिए माफी माँगना; उसे धो डालना। एक दाग़ लगा हो, उस दाग़ को धोकर साफ कर डालना। जैसी जगह थी, वैसी कर देना, उसे प्रतिक्रमण कहते हैं। सच्चा प्रतिक्रमण वह है जिससे आप हल्का महसूस करते हो, और यदि वह गलती फिर से हो रही है, तो यह वास्तव में परेशान करती है। जो सच्ची अलोचना-प्रतिक्रमण करते है, वे निश्चत ही आत्म को प्राप्त करेंगे। परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं। प्रतिक्रमण का दूसरे व्यक्ति पर इतना शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है। यदि आप किसी के लिए एक घंटा प्रतिक्रमण करते हैं, तो उनकी आंतरिक स्थिति बदल जाएगी। उस व्यक्ति में एक अद्भुत बदलाव आएगा।
प्रतिक्रमण सबसे बड़ा हथियार है! तो आइए, पढ़ते हैं इस अत्यंत विषय पर परम पूज्य दादाश्री और मुमुक्षु के बीच सुंदर वार्तालाप!
मुमुक्षु : प्रतिक्रमण करने से पाप का नाश होता है, उसके पीछे का साइन्स क्या है?
दादाश्री : अतिक्रमण से पाप होता है और प्रतिक्रमण से पाप का नाश होता है। वापस लौटने से पाप का नाश होता है।
मुमुक्षु : तो फिर कर्म का नियम कहाँ लागू होता है? हम यदि माफी माँगे और कर्मों से छूट जाए तो फिर उसमें कर्म का नियम नहीं रहा न?
दादाश्री : यही कर्म का नियम है! माफी माँगना, वही कर्म का नियम है!
मुमुक्षु : तब तो सब पाप करते जाएँगे और माफी माँगते जाएँगे।
दादाश्री : हाँ! पाप करते जाना है और माफी माँगते जाना है, वही भगवान ने कहा है।
मुमुक्षु : लेकिन सच्चे मन से माफी माँगना है न?
दादाश्री : माफी माँगने वाला सच्चे मन से ही माफी माँगता है और यदि झूठे मन से माफी माँगेगा तब भी चला लेंगे, इसलिए माफी माँगना।
मुमुक्षु : तब तो फिर उसे आदत पड़ जाएगी!
दादाश्री : आदत पड़ जाए तो भले पड़ जाए लेकिन माफी माँगना। माफी माँगे बगैर तो जैसे शामत आ गई! माफी का क्या अर्थ है? तो उसे प्रतिक्रमण कहते हैं और दोष को क्या कहते हैं? अतिक्रमण।
अगर कोई ब्रांडी पी रहा है और उसे माफ़ करने के लिए कह रहा है, तो मैं उसे माफी मांगने के लिए कहता रहूँगा। क्षमा मांगते रहें और पीते रहें, लेकिन दृढ़ संकल्प करें कि अब आप इस आदत को छोड़ना चाहते हैं। सच्चे दिल से मन में पक्का करना। तब आप पीना जारी रख सकते हैं और क्षमा मांगते रह सकते हैं। एक दिन व्यसन छुट जाएगा। मैं आपको अपने विज्ञान के माध्यम से यह पूर्ण गारंटी देता हूँ।
इस मानव जीवन में ऐसा कौन सा ध्येय होना चाहिए जो बहुत दुर्लभ है? सांसारिक ध्येय चाहे कोई भी हो, अंतिम लक्ष्य सभी दोषों से मुक्त होना और मोक्ष प्राप्त करना होना चाहिए। उसके लिए, अतिक्रमण होने पर दिल से प्रतिक्रमण की आवश्यकता है। ये दोष होते है वे परिणाम हैं, रिज़ल्ट है। प्रतिक्रमण इन दोषों के कारणों को नष्ट करता है और उन्हें निर्मूल करता है। यह भगवान महावीर का स्थापित सिद्धांत है कि यदि कोई किसी दोष के लिए सच्चा, हार्दिक दिल से प्रतिक्रमण करता है, तो वह इस जीवन में सभी बैर से मुक्त हो सकता है। और अगर प्रतिक्रमण की सिद्धान्तिक लिंक लगे तो स्वयं का आत्म अनुभव भी दूर नहीं है।
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