प्रश्नकर्ता : नौकरी के दौरान फर्ज अदा करते समय मैंने बहुत सख्ती के साथ लोगों के अपमान किये थे, उन्हें दुत्कारा था।
दादाश्री : उन सभी का प्रतिक्रमण करना। उसमें आपका बद इरादा नहीं, आपके अपने लिए नहीं पर सरकार के लिए ऐसा किया था। वह सिन्सियारिटी (ईमानदारी) कहलाये।
प्रश्नकर्ता : उस हिसाब से मैं बहुत बुरा आदमी था, कईयों को दुःख हुआ होगा न?
दादाश्री : उसका तो आप साथ में प्रतिक्रमण कर लेना कि मेरे यह स्वभाव को लेकर, कड़क स्वभाव को लेकर जो-जो दोष हुए हैं, उसकी क्षमा माँगता हूँ। अलग-अलग से नहीं करना।
प्रश्नकर्ता : इकट्ठा प्रतिक्रमण करना क्या?
दादाश्री : हाँ, आप ऐसा करना कि, 'यह मेरे स्वभाव को लेकर सरकार का कार्य करने में जो-जो दोष हुए हैं, लोगों को दुःख पहुँचे ऐसा किया है, उसकी क्षमा चाहता हूँ।' ऐसा प्रतिदिन बोलकर प्रतिक्रमण करना।
प्रश्नकर्ता : हम जो प्रतिक्रमण करते हैं, उसमें जो-जो दोष हुए हों, उन्हें याद करके, हम क्षमा माँगते हैं। दोष तो अनेकों होते हैं और उनमें से बहुत सारे हम भूल गये होते हैं, तो उनकी याद ताज़ा करके दुःखी क्यों होना चाहिए?
दादाश्री : वह दुःखी होने के लिए नहीं है। बहीखाता जितना शुद्ध हुआ, उतनी शुद्धि हुई। आखिर आपको वह बहीखाता तो शुद्ध करना पड़ेगा। फुरसद के समय में घंटाभर उसके लिए निकालने में आपका क्या बिगड़ जाता है?
प्रश्नकर्ता : दोषों की लिस्ट तो बहुत लम्बी हो जाती है मगर?
दादाश्री : लिस्ट लम्बी हो जाये तो, ऐसा मानिये न कि एक व्यक्ति के साथ सौ तरह के दोष हो गये हों तो उसका सामूहिक प्रतिक्रमण कर डालना कि इन सभी दोषों की मैं आपके पास मा़फी माँगता हूँ।
दादावाणी-अगस्त-2007 (Page #11& 12)
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