प्रश्नकर्ता: जो ईर्ष्या होती है वह नहीं हो, उसके लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री: उसके दो उपाय हैं। ईर्ष्या हो जाने के बाद पश्चाताप करना चाहिए और दूसरा, जो ईर्ष्या हो जाती है वह ईर्ष्या आप नहीं करते हैं। ईर्ष्या वह पूर्व जन्म के परमाणु भरे हुए हैं, उसे एक्सेप्ट (स्वीकार) न करें। उसमें तन्मयाकार नहीं होने से ईर्ष्या उड़ जाएगी। आपको ईर्ष्या होने पर पश्चाताप करना वही उत्तम है।
प्रश्नकर्ता: सामनेवाले पर शंका नहीं करनी हो, फिर भी शंका होती है तो उसे कैसे दूर करना?
दादाश्री: वहाँ फिर उसके शुद्धात्मा को याद करके क्षमा माँगना। उसका प्रतिक्रमण करना। यह तो पहले गलतियाँ की थी इसलिए शंका होती है।
जंगल में जाने पर लौकिक ज्ञान के आधार पर ‘डकैत मिलेगा तो?’ ऐसे विचार आए, अथवा शेर मिलेगा तो क्या होगा, ऐसा विचार आए तो उसी समय प्रतिक्रमण कर लेना। शंका हुई तो बिगड़ेगा। शंका नहीं होने देना। किसी भी व्यक्ति के लिए कुछ भी शंका आए तो प्रतिक्रमण करना। शंका ही दु:खदायी है।
शंका होने पर प्रतिक्रमण करवा लेना। और हम ठहरे इस ब्रह्मांड के स्वामी, हमें शंका क्यों होगी?! मनुष्य हैं इसलिए शंका तो होगी। लेकिन भूल हुई अत: ऩकद प्रतिक्रमण कर लेना।
जिसके लिए शंका हुई उसका प्रतिक्रमण करना। वर्ना शंका आपको खा जाएगी।
किसी के लिए ज़रा सा भी उल्टा-सुल्टा विचार आए कि तुरंत उसे धो डालना। वह विचार यदि थोड़ी देर के लिए रहेगा तो सामनेवाले को पहुँच जाएगा और फिर अंकुरित होगा। चार घंटे, बारह घंटे या दो दिन के बाद उसे असर होगा। इसलिए स्पंदन का बहाव उस ओर नहीं जाना चाहिए।
किसी भी बुरे कार्य का पछतावा करो, तो उस कार्य का फल बारह आने नष्ट हो ही जाता है। फिर जली हुई रस्सी होती है न, उसके जैसा फल देगा। उस जली हुई रस्सी को अगले जन्म में ऐसे ही हाथ में लेने से ही वह उड़ जाएगी। कोई भी क्रिया यों ही व्यर्थ जाती ही नहीं है। प्रतिक्रमण करने से वह रस्सी जल जाती है परंतु उसकी डिज़ाइन (आकृति) वैसी की वैसी ही रहती है। किन्तु अगले जन्म में क्या करना पड़ेगा? ऐसे ही झाड़ने से उड़ जाएगी।
Book Name: प्रतिक्रमण (Page #43 Paragraph #6,#7 & Page #44)
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