प्रश्नकर्ता: किसी पर बहुत गुस्सा आ जाए, फिर बोलकर बंद हो गए, बाद में यह जो बोलना हुआ उसके लिए जी बार-बार जला करे तो उसमें एक से ज़्यादा प्रतिक्रमण करने होंगे?
दादाश्री: उसमें दो-तीन बार सच्चे दिल से करें और एकदम अच्छी तरह से हुआ तो समाप्त हो जाएगा। ‘हे दादा भगवान! भयंकर परेशानी आ गई। ज़बरदस्त क्रोध हुआ। सामनेवाले को कितना दु:ख हुआ! उसके लिए मा़फी माँगता हूँ, आपकी साक्षी में बहुत ज़बरदस्त मा़फी माँगता हूँ।’
प्रश्नकर्ता: किसी के साथ ज़रूरत से ज़्यादा विवाद हो जाए, तो उससे मन में अंतर बढ़ता जाता है। और किसी के साथ कभी एकाध-दो बार विवाद हो जाए, तो उसमें दो-चार बार, ऐसे अधिक बार प्रतिक्रमण करने होंगे या एक ही बार करेंगे तो सब का जाएगा उसमें?
दादाश्री: जितना हो सके उतना करना और अंत में सामूहिक कर देना। बहुत सारे प्रतिक्रमण इकट्ठे हो जाएँ तो सामूहिक प्रतिक्रमण कर लेना कि इन सभी कर्मों के प्रतिक्रमण मुझ से अलग-अलग नहीं हो रहे हैं। इन सभी का साथ में प्रतिक्रमण कर रहा हूँ। आप दादा भगवान से कह देना, वह पहुँच जाएगा।
प्रश्नकर्ता: हम सामनेवाले पर क्रोध करें, फिर तुरंत हम प्रतिक्रमण कर लें, फिर भी हमारे क्रोध का असर सामनेवाले व्यक्ति पर से तुरंत तो नाबूद नहीं होगा न?
दादाश्री: वह नाबूद हो या नहीं हो, यह आपको नहीं देखना है। आपको तो अपने ही कपड़े धोकर स्वच्छ रहना है। आपको मन में अच्छा नहीं लगता फिर भी हो जाता है न?
प्रश्नकर्ता: क्रोध हो जाता है।
दादाश्री: इसलिए आप उसे नहीं देखना, आपको प्रतिक्रमण करना है। आप कहना कि, ‘चंदूभाई, प्रतिक्रमण कीजिए।’ फिर जैसे कपड़ा बिगड़ा होगा, वैसा ही वे धो डालेंगे! आप बहुत दुविधा में मत पड़ना। वर्ना फिर से बिगड़ेगा।
Book Name: प्रतिक्रमण (Page #51 Paragraph #2 to #6 & Page #52 Paragraph #1,#2,#3)
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