लक्ष्मी (पैसों) को अच्छे कार्य में खर्च करना चाहिए और बच्चों के लिए बहुत अलग मत रखना। चाहे वे माता-पिता से विरासत में कितनी भी अपेक्षा करें। उन्हें पढ़ा-लिखाकर काम-धंधे पर लगा कर अपना कर्तव्य पूरा कर देना। जब वे काम पर लग जाएँ, बाद में वित्तिय सहायता देने की आवश्यक्ता नहीं है। अपने बच्चे को कितना पैसा देना चाहिए यह तय करते समय इसे ध्यान में रखना। याद रखें कि जितना आपके साथ अगले जन्म में आता है (आपके कर्म) उतना ही आपका। अपने सगे-संबंधियों के अलावा किसी और पर खर्च किया गया धन (अच्छे कर्म) पुण्य बाँधेगा।
आइए पढ़ते हैं विल बनाते समय विरासत के बंटवारे के लिए परम पूज्य दादाश्री क्या समझ प्रदान करते हैं।
दादाश्रीः एक आदमी ने मुझे प्रश्न किया कि, ‘बच्चों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है?’ मैंने कहा, ‘आपका कर्तव्य लड़के को पढ़ाना है। अगर आपके पास पैसा है तो आपको उसे अच्छी तरह से पढ़ाना चाहिए।’
प्रश्नकर्ताः हमें बच्चों की शादी नहीं करनी चाहिए?
दादाश्रीः उनकी शादी करवाओ, सब कुछ करो। ये फॉरेनवाले क्या गलत कहते हैं कि बच्चा अपना खुद कर लेगा? उसे उसकी पसंद के अनुसार पढ़ाओ-लिखाओ, और जब वह अठारह वर्ष का हो जाए, फिर अलग! ये लोभ की गाँठ वालों को अमेरिकन्स क्या कहते हैं ? कि तुम इंडियन्स ऐसा किसलिए करते हो, पेट काटकर इकठ्ठा करते हो! खाओ-पीयो, मजे करो। ‘अरे, हमारे पीछे तो चाहिए ना! बच्चों को देने के लिए इकठ्ठे किए।’ तो क्या बच्चों को देना कोई बहुत बड़ा गुनाह है।
एक आदमी ने मुझे प्रश्न किया कि बच्चों को कुछ नहीं दें? मैंने कहा, ‘बच्चों को देना, लेकिन आपके पिता ने आपको जितना दिया हो, उतना देना। बीच में जो कमाया, वह हम जहाँ चाहे, किसी अच्छे कार्य में खर्च कर दें।’
प्रश्नकर्ताः हमारे वकीलों के कानून में भी ऐसा है कि बाप-दादा की प्रोपर्टी (संपति) हो, उसे बच्चों को देनी ही चाहिए और जो स्व-उपार्जित धन है उसका बाप जो करना चाहे कर सकता है।
दादाश्रीः हाँ, जो करना चाहे करे। अपने हाथों से ही कर लेना चाहिए। अपना मार्ग क्या कहता है कि तेरा अपना माल हो, वह अलग करके खर्च कर, तो वह तेरे साथ आएगा। क्योंकि यह ‘ज्ञान’ प्राप्त करने के बाद अभी एक-दो जन्म बाकी रहे हैं, इसलिए साथ में जरूरत पड़ेगी न? दूसरे गाँव जाते हैं तब साथ में थोड़ी रोटियाँ ले जाते हैं। तब यहाँ भी साथ में कुछ होना चाहिए न?
इसलिए बेटे को तो सिर्फ क्या देना चाहिए, एक ‘फ्लैट’ (मकान) देना, हम रहते हैं वह। वह भी हो तो देना। उसे कह देना कि, ‘बेटे, हम नहीं रहे उस दिन यह सब तेरा, तब तक मालिकी हमारी! पागलपन करेगा तो तुझे तेरी पत्नी के साथ निकाल बाहर करूँगा। हम है तब तक तेरा कुछ भी नहीं। हमारे जाने के बाद सबकुछ तेरा।’ विल बना देना। आपके बाप ने दिया हो उतना आपको उसे देना है। वह उतना हकदार है। आखिर तक लड़के के मन में ऐसा रहे कि ‘अभी पिताजी के पास पचास हज़ार और है।’ आपके पास तो लाख होगें। वह मन में समझे कि 40-50 हज़ार देंगे। उसे आखिर तक इस लालच में रखना। वह अपनी पत्नी से कहे कि, ‘जा, पिताजी को फर्स्ट क्लास भोजन करा, चाय-नाश्ता ला।’ आप रोब से रहना है। अर्थात् आपके पिताजी ने जो कुछ कोठरी (मकान) दी हो वह उन्हें दे दो।
दादाश्रीः बेटे के लिए पैसे छोड़कर जाएँगे तो वे शराबी बन जाएँगे। यानी माँ-बाप ने अहित किया कहा जाएगा। ऐसा आपको तभी करना पड़ता है जब आपके पास अधिक हो। आपको इतनी बचत करनी है कि वह शिकायत ना करे, कि मेरे पिता ने सब कुछ बर्बाद कर दिया! और यहाँ से कोई डॉलर साथ ले गया क्या?
प्रश्नकर्ताः नहीं।
दादाश्रीः कोई कुछ साथ में नहीं ले जाने देता। अपने जाने के बाद अपने शरीर को जला देते हैं। तब फिर बच्चों के लिए अधिक छोड़कर क्या करें? वे सोचेंगे कि ‘अब नौकरी-धंधा करने की ज़रूरत नहीं।’ बच्चे शराबी बन जाएँगे। क्योंकि फिर उन्हें संगत ऐसी मिल जाती है। ये शराबी ही हुए हैं न सब! अतः बेटे को तो हमें सोच-समझकर मर्यादा में देना चाहिए। अगर ज्यादा दें तो दुरुपयोग होगा। हमेशा जॉब (काम) ही करता रहे ऐसा कर देना चाहिए। बेकार बैठे तो शराब पिए न? बाप-दादा की संपत्ती पर निर्भर रहना अच्छा नहीं है, यह ठंडी खिचड़ी खाने के समान है। खिचड़ी तो ताजी ही खानी चाहिए। तो वह स्वादिष्ट लगेगी। आपको ठंडी खिचड़ी में मज़ा नहीं आएगा।
प्रश्नकर्ताः हाँ, यह सच है दादा।
दादाश्रीः तो आप अपने बेटे को इतनी ठंडी खिचड़ी नहीं दे सकते। उसे व्यवसाय(धंधा) करवा देना, एकाध कार दिलवा देना, बस। हमारे फादर ने कुछ भी ना दिया हो, तब भी हमें कुछ ना कुछ देना चाहिए। बेटे को काम-धंधे पर लगा देना और लड़कियों की शादी करा देना, यह आपका फर्ज है।
दूसरा कुछ साधन हो, तो उसे कोई बिज़नेस (धंधा) पसंद हो वो करवा देना। छोटा-मोटा पाँच-पच्चीस हज़ार रुपये का धंधा करवा देना। कौन सा व्यवसाय पसंद है वह पूछकर, उसे जो व्यवसाय ठीक लगे वह करवा देना। पच्चीस-तीस हज़ार बैंक से लोन पर दिलवाना, ताकि अपने आप भरता रहे और थोड़े बहुत अपने पास से दे देना। उसे ज़रूरत हो उसमें से आधी रकम हमें देनी है और आधी रकम बैंक में से लोन दिलवा देना। इस लोन की किश्तें तू भरना, ऐसा कह देना। किश्तें भरता रहे और वह बेटा समझदार होता है फिर। बैंक वालों का कागज(पत्र) आए कि इस साल भुगतान नहीं किया है, उसे सतर्क रखेगा। हमें जानबूझकर उसे कर्ज दिलाना चाहिए। उस कर्ज की वजह से वह सीधा रहेगा। अन्यथा, वह डाँट-डाँटकर आपका तेल निकाल देगा। और यदि आप उसे डाँटोगे तो वह पलटकर वार करेगा। बैंक वाला डाँटेगा तो पलटकर वार नहीं करेगा।
प्रश्नकर्ताः हमारी जो संपत्ति है, उसकी विल बनाना हो बेटे के लिए, तो एक आदर्श विल किस तरह की होनी चाहिए? एक लड़का और एक लड़की हो तो?
दादाश्रीः बेटी को कुछ निश्चित रकम देना। बेटे से पूछना, कौन सा व्यवसाय करना है? क्या करना है? सर्विस करना है? उसे देना परन्तु एक निश्चित प्रमाण में। आधी रकम अपने पास रहने देना, अर्थात् प्राइवेट! यानी बिना बताई हुई (जाहिर की हुई नहीं।) दूसरी सब (जाहिर करना) बताना और कहना कि, हमें चाहिए, लेकिन हम दोनों को जीवित है तब तक चाहिए ना? कहना। फिर बैंक से लोन पर दिलवाना। बैंक से लोन ना ले ऐसा धंधा नहीं करना। यानी उसे परेशान करने वाला चाहिए ना कोई। जिससे वह शराब ना पीए। इसलिए सही तरीके से, समझ पूर्वक काम करना।
प्रश्नकर्ताः लेकिन विल किस तरह की होनी चाहिए?
दादाश्रीः हो सके तो ओवरड्राफ्ट (अगले जन्म के लिए, दूसरों के लिए खर्च करके) बना लेना चाहिए। हॉस्पिटल का, ज्ञानदान का सभी का ओवरड्राफ्ट करना और फिर जो बचा वह बेटे को देना। थोड़ा बढ़ा भी देना। उसे लालच है ना, उस लालच के लिए पचास हज़ार रखना। और दूसरे दो लाख का ओवरड्राफ्ट करना, अगले जन्म में हम क्या करेंगे? अभी पिछले जन्म के ओवरड्राफ्ट का उपयोग कर रहें हैं, तो इस जन्म में ओवरड्राफ्ट नहीं कराना पड़ेगा? यह क्या कहलाता है?
प्रश्नकर्ताः ओवरड्राफ्ट।
दादाश्रीः हाँ, हमने किसी को नहीं दिया है। इन लोगों के हित (सुख) के लिए, लोककल्याण के लिए खर्च किया, वह ओवरड्राफ्ट (जमा) कहलाता है। बेटे को देकर तो पछताए, बहुत पछताए। बच्चों का हित (भलाई) कैसे करें वो हमें समझना होगा। मेरे साथ आकर बातचीत कर लेना। इसलिए मैं कहता हूँ की व्यर्थ जाए इससे तो अच्छे रास्ते जाए ऐसा कुछ करो। वहाँ(अगले जन्म में) साथ काम आएगा और वहाँ तो जाते समय चार नारियल बाँधेगा ना! और उसमें भी बेटा क्या कहेगा, ‘थोड़े सस्ते वाले, बिना पानी वाले देना!’ इसलिए पैसा अच्छे रास्ते खर्च कर देना। लोगों के सुख के लिए खर्च कर देना। आपका जो (सरप्लस) ज्यादा पैसा हो वह लोगों (दूसरों) के सुख के लिए खर्च करना। उतना ही आपका है, बाकी का गटर में गया।
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