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ज़िद्दी या अवज्ञाकारी बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करें?

जब आपके और बच्चों के बीच टकराव हो तब क्या करना चाहिए? जब बच्चा रोए तब क्या करना चाहिए? आइए बच्चों के ऐसे व्यवहार से निपटने की कला जाने!

नीचे दी गई बातों पर विचार करें:

जब आपको अपने बच्चों के किसी विशेष प्रकार के व्यवहार से शिकायत रहती है, तब क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि कहीं आप भी अपने बच्चों के साथ वैसा ही व्यवहार तो नहीं करते हैं?

उदाहरण के तौर पर:

  • मान लीजिए, वे आपका कहा नहीं सुनते। जब वो आपके पास कुछ माँगे, तो क्या आपका भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार तो नहीं होता? जब वह आपसे कुछ कहना चाहते हैं तब क्या उनके कई बार कहने पर ही आप उनकी बात सुनते हैं?
  • मान लीजिए, वे मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं। तो क्या आप भी अपने फ्री समय में अपना मोबाइल चेक करते रहते हैं?
  • मान लीजिए, वे कठोर शब्द बोलते हैं। तो क्या आप भी जब गुस्से में होते हैं तब ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं?

उन्हें सुनना शुरू करें और उनके साथ बातें करें फिर उनमें बदलाव देखें। उनके साथ समय बिताएँ, उनका ध्यान रखें और उनके साथ उसी तरह का व्यवहार करना शुरू करें जिस व्यवहार की आप उनसे उम्मीद रखते हैं।

नीचे दिए गए संवाद में परम पूज्य दादाश्री बताते हैं कि ज़िद्दी बच्चों के साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहिए:

माता-पिता के तौर पर आपको अपने बच्चों के साथ-साथ खुद भी ज़िद्दी बनने के बजाय उन्हें शांत करना चाहिए।

दादाश्री : बहला-फुसलाकर कर एक बार सीधा कर दें फिर चलता रहता है। लेकिन यह तो और भी टेढ़ा बना देते हैं, लोग। उसके साथ खुद भी टेढ़े बन जाते हैं। अगर बेटा बात न करे तो माँ भी बात नहीं करती।

प्रश्नकर्ता : हाँ, मुँह फुला लेती है।

दादाश्री : मुँह फुलाती है। तो फिर ये तो माँ बनने के लक्षण ही नहीं हैं न! लोगों का देख-देखकर.. अन्य कोई माँ मारती है तो यह भी मारती है।

प्रश्नकर्ता : ऐसा नहीं करना है। जानने की इच्छा है कि माँ कैसे बनें?

दादाश्री : बच्चा ज़िद करे और हम भी ज़िद करें, तो क्या होगा?

प्रश्नकर्ता : माँ ज़िद करे और बच्चा भी ज़िद करे, तो अंत में तो बच्चा ही मार खाता है।

दादाश्री : नहीं, लेकिन उसका तो कोई अर्थ ही नहीं है न। यानी बच्चे की ज़िद छुड़वानी चाहिए।

प्रश्नकर्ता : कैसे छुड़वाएँ?

दादाश्री : उसकी प्रकृति जिसमें खुश होती हो, थोड़ी देर के लिए कुछ मीठी बातें करके खुश कर देने से फिर गाड़ी चलने लगेगी, फिर आड़ाई (अहंकार का टेढ़ापन) चली जाएगी। जितनी देर के लिए आड़ाई करे, उतनी देर तक बहलाना-फुसलाना करना पड़ेगा।

माता-पिता के लिए बच्चों के ज़िद्दी व्यवहार से निपटने में मदद रूप कुछ महत्वपूर्ण सुझाव:

  • बच्चों का जिद्दीपना (अवज्ञा) माता-पिता के पिछले आचरण का प्रतिबिंब है। यदि आप एक योग्य माता-पिता हैं, तो बच्चे आपके विरोधी नहीं होंगे। इसलिए माता-पिता को खुद सुधरने की ज़रूरत है।
  • यदि आप बच्चों को बार-बार टोकेंगे तो वे बिगड़ जाएँगे।
  • उन्हें ज्ञानी के या सत्संग के संपर्क में रखें। अच्छे संग में रहने से उनमें सर्वश्रेष्ठ गुण उत्पन्न होंगे।
  • बच्चों को सुधरने में मदद करनी चाहिए, उन्हें मारना नहीं चाहिए। बच्चों को मारना बहुत गलत है।
  • सच्चे माता-पिता वे कहलाते हैं अगर बेटा बुरी लाइन पर चला गया हो तो उन्हें प्रेम से समझाकर सुधारने का प्रयास करते हैं। लेकिन आजकल इस प्रकार का प्रेम देखने को नहीं मिलता हैं, क्योंकि माता-पिता स्वयं ही दुखी होते है। यह जगत प्रेम से ही वश होता है।
  • माता-पिता अपने बच्चों के गलत आचरण के बारे में मित्रों और परिवार के सदस्यों के सामने बार-बार बात करते रहते हैं। इसके गंभीर परिणाम होते हैं क्योंकि बच्चे वास्तव में वैसे ही बनते जाते हैं जैसा हम उनके बारे में बोलते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि हम मानते हैं कि हमारा बेटा बहुत ज़िद्दी और तुफानी (उद्दंड) है, तो बच्चा निश्चित रूप से एक दिन ऐसा बन जाएगा, भले ही वह आज ऐसा ना हो। दूसरी ओर, यदि आपका बेटा वास्तव में ज़िद्दी है, लेकिन फिर भी आप कहा करते हो कि मेरा बेटा बहुत समझदार, शांत और आज्ञाकारी है तो आप कुछ ही समय में आपके बेटे में जबरदस्त सकारात्मक परिवर्तन देखोगे...
  • मानव मन इतना सक्षम है कि किसी सोए हुए व्यक्ति को आपने निकम्मा कहा तो उसे भी रेकॉर्ड कर लेता है। आपका कहा उस व्यक्ति के आत्मा तक पहुँच जाएगा, आप उसके साथ कर्म के हिसाब में बंध जाओगे और आपको इसका परिणाम भुगतना पडेगा। अगर आप कुछ कहना चाहते हैं, तो सुनिश्चित करें कि वह सकारात्मक है। आपके अच्छे भाव आपको सुख देंगे। बच्चों के ज़िद्दीपने या गलत व्यवहार के बारे में बार-बार बोलने के बजाय उस व्यवहार के बारे में बात करें जिसके लिए आप अपने बच्चे को प्रोत्साहित करना चाहते हैं।
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