प्रिय स्वजन की मृत्यु की घटना का साक्षी बनना, बहुत दुःखद अनुभव है। लेकिन जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता। ऐसे समय में कौनसी समझ हाज़िर रखें कि जिससे इस कठिन समय में अंदर शांति रहे?
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तब वह देह छोड़कर दूसरे देह में जन्म लेते हैं। यानी उस व्यक्ति का आत्मा इस दुनिया में कहीं हाज़िर ही है! हम यहाँ पर जो भी भावना करते हैं वह भावना व्यक्ति जहाँ हो वहाँ उन्हें पहुँचती है। हम उनको याद करें, तो उसके स्पंदन उनको पहुँचते हैं।
इसलिए अगर प्रिय स्वजन की मृत्यु के बाद हम उनके पीछे दुःखी हों, रोएँ तो उनको दुःख के स्पंदन पहुँचते हैं, परिणाम स्वरूप उनको दुःख होता है। उसके बदले जब स्वजन की बहुत याद आए तब भगवान का नाम लेना और कहना कि व्यक्ति का आत्मा जहाँ हो वहाँ सुख और शांति पाए। जितनी बार स्वजन की याद आए उतनी बार उनको शांति मिले ऐसी प्रार्थना करें। ऐसा करने से उनको शांति के स्पंदन पहुँचते हैं।
यह दुनिया एक पंछी मेला, नहीं कायम का यहाँ मुकाम!
यह जगत् किसके जैसा है? एक पेड़ के ऊपर पंछी इकट्ठा होते हैं, आमने-सामने सगाइयाँ होती हैं और सुबह सुबह सब उड़ जाते हैं। जैसे हम एक ट्रेन में सफ़र करते हों और हमारे साथ डिब्बे में दूसरे मुसाफ़िर भी होते हैं, फिर उनके साथ जान-पहचान होती है, सब साथ में खाना खाते हैं, हँसी-मज़ाक करते हैं। उसके बाद उन मुसाफ़िरों का स्टेशन आए और वो उतरने लगे, तब हम उनका हाथ पकड़ लें कि, “हम आपको अभी नहीं जाने देंगे?” अगर कोई ऐसा करे तो लोग उसे पागल कहेंगे! इसी तरह हम सभी एक घर में, एक परिवार में कर्म के हिसाब से एक अवतार के लिए इकट्ठा हुए हैं और दूसरे अवतार में बिखर जाएँगे।
घर में कोई पसंदीदा मेहमान आए हों और जब वे विदा लेते हैं तब क्षणिक दुःख होता है। लेकिन मेहमान को हम नहीं कहते कि “आप हमेशा के लिए यहीं रह जाइए।” क्योंकि हमें यह मालूम है कि हमेशा के लिए रुकें वे मेहमान नहीं हैं। उसी तरह हमारे जीवन में प्रियजन मिलते हैं और बिछड़ जातें हैं। मिलना एक संयोग है और बिछड़ना वह वियोग है।
संयोग वियोगी स्वभाव के हैं। एक संयोग आता है और फिर उसका टाईम हो जाए तो नियम से उसका वियोग होता ही है।
जब तक इस संसार से मुक्ति नहीं मिल जाती, तब तक जन्म-मृत्यु का यह चक्र चलता ही रहता है। अगर हम दूसरी तरह से सोचें तो आज हम किसी एक स्वजन के लिए इतना दुःखी हो रहे हैं लेकिन पिछले जन्म में बहुत सारे स्वजन मृत्यु के पश्चात् हमें छोड़कर चले गए या हम उन्हें छोड़ कर आ गए हैं। तो क्या हमें वे लोग याद हैं? पिछले जन्म के माँ-बाप, पति-पत्नी और बच्चे कौन थे वह हमें याद नहीं। उनको याद करके हम दुःखी भी नहीं होते हैं। इसलिए ये सभी संबंध एक अवतार के सापेक्ष संबंध हैं, रिलेटिव संबंध हैं, हमेशा के संबंध नहीं हैं। इस वास्तविकता का ध्यान रहे तो हम स्वजन को खोने के दुःख में से उबर सकते हैं।
एक भाई उनके बेटे की आकस्मिक मृत्यु से अत्यंत व्यथित होकर परम पूज्य दादा श्री से प्रश्न पूछते हैं, तब वे उन्हें क्या समझ प्रदान करते हैं वह देखते हैं।
प्रश्नकर्ता: मेरे बेटे का दुर्घटना में निधन हुआ है, तो उस दुर्घटना का कारण क्या होगा?
दादाश्री: इस संसार में जो सब आँखों से दिखाई देता है, कान से सुनने में आता है, वह सब ‘रिलेटिव करेक्ट’ (व्यवहार सत्य) है,... बिलकुल सत्य नहीं है वह बात! यह शरीर भी हमारा नहीं है, तो बेटा हमारा कैसे हो सकता है? यह तो व्यवहार से, लोक-व्यवहार से अपना बेटा माना जाता है। वास्तव में वह अपना बेटा होता नहीं है। वास्तव में तो यह शरीर भी हमारा नहीं है। इसलिए, जो हमारे पास रहे उतना ही अपना और दूसरा सभी सब पराया है। इसलिए बेटे को अपना बेटा मानते रहें. तो परेशानी होगी और अशांति रहेगी! वह बेटा अब गया, खुदा की ऐसी ही मर्ज़ी है, तो उसे अब ‘लेट गो’ करना है।
प्रश्नकर्ता: वह तो ठीक है, अल्लाह की अमानत अपने पास थी, वह ले ली!
दादाश्री: हाँ, बस। यह पूरा बाग़ ही अल्लाह का है।
प्रिय स्वजन अपना शरीर छोड़कर चले गए और शरीर के तो अंतिम संस्कार भी हो गए। आत्मा तो इस शरीर में से निकलकर दूसरा शरीर भी धारण कर चुका होगा। उस व्यक्ति के साथ का संबंध तो उनके शरीर के साथ ही खत्म हो जाता है। माँ-बाप हैं तब तक हम पुत्र या पुत्री हैं, लेकिन अगर माँ-बाप नहीं तो पुत्र या पुत्री का संबंध भी नहीं। जब तक पति है तब तक पत्नी है। जब तक बच्चे हैं तब तक माँ-बाप हैं। इसलिए जगत् के सभी संबंध विनाशी हैं, टेम्पररी हैं। इसमें सिर्फ़ आत्मा ही परमानेंट है, शाश्वत है! जन्म और मृत्यु देह के हैं, आत्मा के नहीं।
जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु अवश्य होती ही है। मृत्यु जीवन का पूर्णविराम नहीं, बल्कि अल्पविराम है। जैसे दो दिनों के बीच रात आती है, वैसे ही दो जन्मों के बीच एक मृत्यु आती है। जिस तरह व्यक्ति पुराने कपड़े बदलकर नये कपड़े पहनता है उसी तरह जीव भी एक देह त्यागकर दूसरा देह धारण करता है। जीव देह का त्याग करता है उसे मृत्यु कहते हैं और दूसरा देह धारण करता है उसे जन्म कहते हैं। हर एक जीव जन्म से ही कर्म का स्टॉक लेकर आता है। आयुष्य भी एक कर्म ही है। जब एक-एक करके सभी कर्म खत्म हो जाते हैं, तब साँसें कम पड़ जाती हैं और आयुष्य पूरा हो जाता है जिसे हम मृत्यु कहते हैं।
इस प्रकार, आत्मा के शाश्वत होने की समझ और स्वजन मृत्यु के बाद भी कहीं दूसरे देह में हाज़िर हैं यह खयाल मात्र हमें स्वजन को खोने के दुःख में तसल्ली देता है।
यह संसार बहते हुए समुद्र के समान है। उसमें यह जीवन रूपी बुलबुला कब फूट जाए उसका कोई भरोसा नहीं है। इसलिए हमें अपनी या रिश्तेदार की मृत्यु की तैयारी रखनी चाहिए। जिस तरह हम ४४० वोल्ट के साधन के साथ काम कर रहे हों तब चप्पल पहनते हैं, इन्सुलेशन के लिए हाथ में दस्तानें पहनते हैं और साथ में लकड़ी रखते हैं वगैरह सब तैयारियाँ करते हैं। जिससे हमें शॉक ना लगे। डेढ़ फुट का कदम आने वाला हो और हमें पता हो कि आगे कदम है तो फिर हमें दिक्कत नहीं होगी और अगर पता ही ना हो तो डेढ़ इंच के गड्ढे में भी पैर टेढ़ा पड़ेगा और मोच आ जाएगी। ठीक वैसे ही स्वजन की मृत्यु के लिए अगर हमने पहले से तैयारी की होगी तो हमें सदमा नहीं लगेगा और दुःख कम होगा।
इसलिए परिवार के हर एक व्यक्ति के लिए “कल उनकी मृत्यु हो जाए तो मैं किस तरह से रहूँगा?” ऐसी मानसिक तैयारी करके रखनी चाहिए जिससे व्यक्ति की मृत्यु की खबर हम झेल सकें।
बहुत बार लौकिक व्यवहार के अनुसार स्वजन की मृत्यु के पश्चात् लोग मिलने आते हैं और उनकी यादों को ताज़ा करते रहते हैं जिससे भरे हुए घाव फिर से खुल सकते हैं। कभी कभी तो लोगों को मृत्यु के बारे में लंबे ख़ुलासे करने से हम मुश्किल में पड़ सकते हैं। “आपने ऐसा किया होता तो वे बच जाते” यदि ऐसी सलाहें सामने से आती हैं तो या तो हम खुद को या दूसरों को गुनहगार देखने लगते हैं। उस वक़्त हमें क्या सावधानी रखनी चाहिए, इसकी समझ भी परम पूज्य दादा भगवान हमें देते हैं।
परम पूज्य दादा भगवान एक प्रसंग का बयान करते हुए कहते हैं, “बूढ़े चाचा बीमार हों और आपने डॉक्टर को बुलाया, सभी इलाज करवाया, फिर भी चल बसे। फिर शोक प्रदर्शित करनेवाले होते हैं न, वे आश्वासन देने आते हैं। फिर पूछते हैं, ‘क्या हो गया था चाचा को?’ तब आप कहो कि असल में मलेरिया जैसा लगता था, पर फिर डॉक्टर ने बताया कि यह तो ज़रा फ्लू जैसा है!’ वे पूछेंगे कि किस डॉक्टर को बुलाया था? आप कहो कि फलाँ को। तब कहेंगे, ‘आपमें अक्कल नहीं है। उस डॉक्टर को बुलाने की ज़रूरत थी।’ फिर दूसरा आकर आपको सुनाएगा, ‘ऐसा करना चाहिए न! ऐसी बेवकूफी की बात करते हो?’ यानी सारा दिन लोग सुनाते ही रहते हैं! यानी ये लोग तो उल्टे चढ़ बैठते हैं, आपकी सरलता का लाभ उठाते हैं। इसलिए मैं आपको समझाता हूँ कि लोग जब दूसरे दिन पूछने आएँ तो आपको क्या कहना चाहिए कि भाई, चाचा को ज़रा बुख़ार आया और टप्प हो गए, और कुछ हुआ नहीं था।’ सामने वाला पूछे उतना ही जवाब। हमें समझ लेना चाहिए कि विस्तार से कहने जाएँगे तो झंझट होगी। उसके बजाय, रात को बुख़ार आया और सुबह टप्प हो गए, कहें तो फिर कोई झंझट ही नहीं न!”
वास्तव में देखें तो,व्यक्ति का आयुष्य पूरा होने का काल पके तो संयोग ऐसे इकट्ठा हो जाते हैं कि कोई बचा नहीं सकता, जैसे कि, डॉक्टर का देर से आना, एम्बुलेंस का नहीं मिलना, समय पर इलाज़ नहीं होना और थोड़े ही समय में मृत्यु हो जाती है। हम मृत्यु के पहले व्यक्ति को बचाने के सभी पॉज़िटिव प्रयत्न कर सकते हैं लेकिन किसी से रुक सके ऐसा नहीं है। श्रीराम, श्रीकृष्ण या महावीर भगवान कोई अपनी मृत्यु रोक नहीं सके, तो हम किस तरह से रोक सकते हैं? इसलिए मृत्यु हो जाने के बाद खुद को या दूसरे निमित्त को दोषित न मानते हुए, कर्मों का हिसाब पूरा हुआ ऐसी समझ हाज़िर रखें तो स्वजन की मृत्यु में अवश्य समता रहेगी।
“वह आयुष्य उसका यहाँ पर टूट जानेवाला था, इसलिए उस घड़ी टूटने के सारे ‘सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स’ मिल जाते हैं और आयुष्य पूरा हो जाता है, लट्टू झटपट घूम जाता है!” - दादाश्री
परम पूज्य दादा भगवान ने स्वजन की मृत्यु के पश्चात् नीचे दी गई प्रार्थना करने का सूचित किया है, यहाँ जिस भगवान को मानते हों उन्हें याद करके यह प्रार्थना कर सकते हैं।
“प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, प्रत्यक्ष सीमंधर स्वामी की साक्षी में देहधारी * के मन-वचन-काया के योग, भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म से भिन्न ऐसे हे शुद्धात्मा भगवान, आप ऐसी कृपा करो कि * जहाँ हो वहाँ सुख, शांति पाए, मोक्ष पाए।
आज दिन के अद्यक्षण पर्यंत मुझसे * के प्रति जो भी राग-द्वेष, कषाय हुए हों, उनभी माफ़ी चाहता हूँ। हृदयपूर्वक पछतावा करता हूँ। मुझे माफ़ करो और फिर से ऐसे दोष कभी भी नहीं हों, ऐसी शक्ति दो।“
* मृत व्यक्ति का नाम लें।
इस प्रकार बार-बार प्रार्थना करनी चाहिए। बाद में जितनी बार मृत व्यक्ति याद आए, तब-तब यह प्रार्थना करनी चाहिए।
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