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प्रियजन को खोना: जब किसी की मृत्यु हो तब कैसे समता में रहकर मृत्यु को हैंडल करें!

प्रिय स्वजन की मृत्यु की घटना सबसे ज़्यादा दुःखदायी लगती है। करीबी व्यक्ति की मृत्यु होगी इस कल्पना के भय से ही कंपकंपी छूटने लगती है। करीबी व्यक्ति के बिना ही जीवन जीना पड़ेगा यह मानने के लिए मन तैयार ही नहीं होता और जब वह घड़ी आती है तब उससे जो खालीपन लगता है उसे हम झेल नहीं पाते। उस व्यक्ति की याद में डूबकर बस बार-बार रोते ही रहते हैं और उस दुःख से उबर नहीं पाते। लेकिन अगर मृत्यु की यथार्थ समझ मिले और दुःख के कारण हमारी दृष्टि में आ जाएँ दुःखद घटनाओं में भी हमें शांति रह सकती है।

प्रिय स्वजन की मृत्यु के वक़्त हमारा सच्चा कर्तव्य क्या है? स्वजन की मृत्यु के पश्चात् क्या करना चाहिए? किस तरह से शांति प्राप्त करें? क्या मृत्यु के पश्चात् हमें पितृ बाधा पहुँचाते हैं? श्राद्ध करने का क्या महत्व है? अगर इन तमाम प्रश्नों के संतोषजनक जवाब मिल जाएँ तो दुःख और शोक के अवसरों में भी अवश्य सांत्वना मिलती है।

परम पूज्य दादा भगवान ने स्वजन की मृत्यु के दौरान होने वाले व्यवहार का बहुत नज़दीक से अवलोकन किया है और मृत्यु के समय होने वाले लौकिक व्यवहार और मान्यताओं के सच्चे कारणों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने मृत्यु के बारे में दुनिया से बिल्कुल अलग, जैसी है वैसी वास्तविकता उजागर की है। यह वास्तविकता हमें सालों पुराने लौकिक दृष्टिकोण को झाड़कर मृत्यु के प्रसंग को नई ही दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करती है।

मृत्यु के रहस्य

हम हमारे कर्म के अनुसार लोगों से मिलते और बिछड़ते है|जब हम शोक करते है तब हमारे सपंदन मृत व्यक्ति के आत्मा तक पहुचकर उन्हें कष्ट देते है| इसलिए हमें उनके आत्मा की प्रगति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए|

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Top Questions & Answers

  1. Q. स्वजन के अंतिम समय में क्या ध्यान में रखें?

    A. परिवार में या नज़दीक के कोई स्वजन बड़ी उम्र के हों और उनका अंतिम समय नज़दीक आ गया हो तब एक बच्चे के... Read More

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  6. Q. मृत्यु के बाद लौकिक विधियों का क्या महत्त्व है?

    A. समाज में अनेक प्रकार की मान्यताएँ प्रचलित हैं कि मृत्यु के बाद व्यक्ति का जीव तेरह दिन तक भटकता... Read More

  7. Q. मानव जीवन का महत्व

    A. मनुष्यदेह में आने के बाद अन्य गतियों में जैसे कि देव, तिर्यंच अथवा नर्क में जाकर आने के बाद फिर से... Read More

Spiritual Quotes

  1. ऐसा है न, भगवान की दृष्टि से इस संसार में क्या चल रहा है? तब कहे, उनकी दृष्टि से तो कोई मरता ही नहीं। भगवान की जो दृष्टि है, वह दृष्टि यदि आपको प्राप्त हो, एक दिन के लिए दें वे आपको, तो यहाँ चाहे जितने लोग मर जाएँ, फिर भी आपको असर नहीं होगा, क्योंकि भगवान की दृष्टि में कोई मरता ही नहीं है।
  2. कभी न कभी सोल्युशन तो लाना पडे़गा न? जीवन-मृत्यु का सोल्युशन नहीं लाना पड़ेगा? वास्तव में खुद मरता भी नहीं है और वास्तव में जीता भी नहीं है। यह तो मान्यता में ही भूल है कि स्वयं को जीव मान बैठा है। खुद का स्वरूप शिव है। खुद शिव है, लेकिन यह खुद की समझ में नहीं आता है और खुद को जीवस्वरूप मान बैठा है!
  3. किसी भी वस्तु का जन्म होता है, उसकी मृत्यु अवश्य होती है। और आत्मा अजन्म-अमर है, उसकी मृत्यु ही नहीं होती।
  4. ये जन्म-मृत्यु आत्मा के नहीं हैं। आत्मा परमानेन्ट वस्तु है। ये जन्म-मृत्यु इगोइज़म, अहंकार के हैं। इगोइज़म जन्म पाता है और इगोइज़म मरता है।
  5. मृत्यु के बाद जन्म और जन्म के बाद मृत्यु है, बस। यह निरंतर चलता ही रहता हैं! अब यह जन्म और मृत्यु क्यों हुए हैं? तब कहे कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, इफेक्ट एन्ड कॉज़ेज़, कारण और कार्य, कार्य और कारण। उसमें यदि कारणों का नाश करने में आए, तो ये सारे 'इफेक्ट' बंद हो जाएँ, फिर नया जन्म नहीं लेना पड़ता है!
  6. करना, करवाना और अनुमोदन करना-ये तीन कर्मबंधन के कारण हैं।
  7. मेरे हिसाब से ज़िन्दगी, वह जेल है, जेल! वे चार प्रकार की जेलें हैं। पहली नज़ऱकैद है। देवलोग नज़ऱकैद में हैं। ये मनुष्य सादी कैद में हैं। जानवर कड़ी मज़दूरीवाली ़कैद में हैं और नर्क के जीव उमऱकैद में हैं।
  8. जो अहंकार है न, उसे आवागमन है। आत्मा तो मूल दशा में ही है। अहंकार फिर बंद हो जाता है, इसलिए उसके फेरे बंद हो जाते है!
  9. केवल मनुष्य जन्म में ही 'कॉज़ेज़' बंद हो सकें ऐसा है। अन्य सभी गतियों में तो केवल 'इफेक्ट' ही है। यहाँ 'कॉज़ेज़' एन्ड 'इफेक्ट' दोनों हैं।
  10. यह अभिनय है। दी वर्ल्ड इज़ दी ड्रामा इटसेल्फ, (संसार स्वयं एक नाटक हैं) आपको नाटक ही करना है केवल, अभिनय ही करना है, लेकिन अभिनय 'सिन्सियरली' करना है।

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