हमारे रोज़मर्रा के जीवन में मतभेद होते रहते हैं। इस तरह के मतभेद होने का मूल कारण अभिप्राय में भिन्नता होना कि लोग कैसे हैं या क्या होना चाहिए। जिसके फलस्वरुप टकराव, संघर्ष, कलह, समझ का अभाव रहता है जो आंतरिक अलगाव और अंततः तलाक की ओर ले जाता है।
आइए हम परम पूज्य दादाश्री की दृष्टि से तलाक होने के कारणों को समझते हैं।
भारत के किस घर में झगड़े नहीं होते ? कई बार मुझे दोनों को समझा बुझाकर समाधान करवाना पड़ा। कभी-कभी तो बात तलाक तक पहुँच चूकी होती है। बहुत लोग इस परिस्थिति में फँस जाते हैं। लेकिन वे क्या कर सकते हैं ? निकलने का कोई रास्ता नहीं है। समझ की कमी के कारण दूरियाँ बढ़ जाती है। दोनों अपनी-अपनी ज़िद पर अड़े रहते हैं। समझ की कमी के कारण व्यर्थ बहस होती है। जब हम उन्हें सच्ची बात समझाते हैं तब वे डायवोर्स नहीं लेने के लिए तैयार होते हैं। फिर वे कहते हैं, “ यह ऐसा नहीं है, यह ऐसा नहीं है।”
प्रश्नकर्ताः यद्यपि वे एक साथ रहते हैं, पर वास्तव में वे साथ रहते हुए भी अलग रहते हैं।
दादाश्रीः बिल्कुल तलाकशुदा की तरह।
प्रश्नकर्ताः आप सभी के बीच सुलह करवा देते हो।
दादाश्रीः एक जन्म तो (यह संबंध) निभाया जा सकता है या नहीं ? किसी भी तरह से हल लाना चाहिए। एक जन्म के लिए रिश्ता जुड़ गया है तो क्या तुम्हें उसके साथ निपटारा नहीं लाना चाहिए !
भाग -१
दादाश्री : वाइफ के साथ मतभेद हो जाता है?
प्रश्नकर्ता : हाँ, बहुत बार पड़ता है।
दादाश्री : वाइफ के साथ भी मतभेद होता है? वहाँ भी एकता न रहे तो फिर और कहाँ रखनी है? एकता यानी क्या कि कभी भी मतभेद न पड़े। इस एक व्यक्ति के साथ निश्चित करना है कि आपमें और मुझमें मतभेद नहीं पड़े। इतनी एकता करनी चाहिए। ऐसी एकता की है आपने?
प्रश्नकर्ता : ऐसा कभी सोचा ही नहीं। यह पहली बार सोच रहा हूँ।
दादाश्री : हाँ, वह सोचना तो पड़ेगा न? भगवान कितना सोच-सोचकर मोक्ष में गए! मतभेद पसंद है?
प्रश्नकर्ता : ना।
दादाश्री : मतभेद हों तब झगड़े होते हैं, चिंता होती है। इस मतभेद में ऐसा होता है तो मनभेद में क्या होगा? मनभेद हो तब डायवोर्स लेते हैं और तनभेद हो, तब अरथी निकलती है।
भाग -२
दादाश्रीः क्या तुम्हें मतभेद पसंद है ? जब भेद होता है तब कलह शुरू होता है। तलाक वह अत्यधिक कलह का परिणाम है।
प्रश्नकर्ताः दैनिक जीवन में होने वाले टकराव का कारण मतभेद है या मनभेद है ?
दादाश्रीः जिन लोगों को आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है उनमें टकराव का कारण मतभेद है। जिन्हें आत्मसाक्षात्कार हुआ है वहाँ सिर्फ मनभेद होता है। मनभेद से किसी को दुःख नहीं होता जबकि मतभेद के कारण लड़ाई-झगड़ा, कलह होता है।
प्रश्नकर्ताः मतभेद कम हो तो ज्यादा अच्छा है ?
दादाश्रीः जो एक दूसरे के साथ रहना चाहते हैं, उनमें किसी भी तरह का मतभेद होना ही नहीं चाहिए। मतभेद के कारण कलह, टकराव होता है, विनय चूक जाते हैं। विचारों में भिन्नता के कारण टकराव होने से आंतरिक एकता की जगह अलगाव होता है जो आगे चलकर संबंधों में दूरियाँ बढ़ाता है और अंततः तलाक का कारण बनता है।
ऐसे घर में मतभेद पड़ेंगे तो कैसे चलेगा? स्त्री कहती है ‘मैं तुम्हारी हूँ’ और पति कहता है कि ‘मैं तेरा हूँ’, फिर मतभेद कैसा? आप दोनों के बीच ‘प्रोब्लम’ बढ़ेंगे तो अलगाव पैदा होगा। ‘प्रोब्लम’ ‘सॉल्व’ हो जाएँ, तो फिर अलगाव नहीं होगा। जुदाई के कारण दु:ख हैं। और सभी को प्रोब्लम खड़े होते ही हैं, तुम्हें अकेले को ही होते हों ऐसा नहीं। जितनों ने शादी की उतनों को प्रोब्लम खड़े हुए बिना रहते नहीं।
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१) समस्या पति होने में नहीं है, समस्या उसके पतिपने (बोसपने) में है।
२) मतभेद से टकराव है और टकराव होना “कमजोरी” है।
३) ‘मेरा मत’, कहा तो आवरण आता है। अपने मत के आवरण की वजह से दूसरों का मत समझ नहीं सकता। और इसीलिए वह सिर्फ बुराई ही करता रहता है।
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