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विवाहित जीवन की समस्याओं का किस तरह समाधान लाएँ?

लोगों में अपने साथी के साथ होने वाली समस्याओं का समाधान ला सकने की क्षमता कम हो गई है। और जब टकराव होते हैं तब उलझने बहुत बढ़ जाती है। इसके बजाय जितना अधिक आप समझेंगे उतना ज्यादा विश्वास बढ़ेगा। विश्वास बढ़ने से परिणाम मिलेगा। विश्वास के बिना, कुछ भी आपकी मदद नहीं करेगा । अगर आप समझदारी से काम लेंगे तो आपके साथी को भी संतोष रहेगा और आपका जीवन खुशहाल होगा।

परम पूज्य दादाश्री ने, विवाहित जीवन में होने वाले क्लेश और समस्याओं को सुलझाने के कई उपाय बताए हैं। उनके सत्संग में से लिए गए कुछ अंश के अवतरण नीचे दिए गए हैं, जो पाठकों को उनके विवाहित जीवन में होने वाले क्लेश को टालने में मददगार हो सकता है। 

समस्याओं को घर की चार दीवारी तक ही सीमित रखें।  

अपने घर की बात घर में रहे, ऐसे फ़ैमिली की तरह जीवन जीना चाहिए। इतना परिवर्तन लाओ तो अच्छा है। क्लेश तो होना ही नहीं चाहिए। 

जब जीवनसाथी क्रोधित हों तब शांतिपूर्वक व्यवहार करें। 

आपका जीवनसाथी क्रोधित हो तब आप शांत रह सकें, तो ही आपको शादी करनी चाहिए। वह गुस्सा करे और हम भी गुस्सा करने लगें तो असावधानी कहलाएगी। वह उछले तब हमें शांत रहना है। 

सकारात्माक व्यवहार करें... 

जब हम दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं तब उनके सकारात्मक और नकारात्मक गुणों का दिखाई देना स्वाभाविक है। परंतु हम उनके नकारात्मक गुणों को ही ज्यादा देखने लगते हैं। इस समस्या का हल निकालने के लिए अपने जीवनसाथी के सद्गुणों को लिखकर रख लें, और जब टकराव हो तब उन्हें पढ़े आपको आश्चर्य होगा कि इस छोटे से प्रयोग से, आपके विवाहित जीवन में कितना सुखद परिवर्तन आ सकता है। 

सहन न करें, समाधान लाएँ 

सहन करने के बजाय वैवाहिक जीवन में होने वाले क्लेश को कैसे टाला जा सकता है, इस पर विचार करना ज्यादा उचित होगा। समझ से, विचार करके उसका हल लाएँ। सहन करना गुनाह है। सहनशीलता की हद पार होने पर व्यक्ति स्प्रिंग की तरह उछलता है और पूरे घर को तहस-नहस कर देता है। सहनशीलता तो स्प्रिंग के समान है। स्प्रिंग पर कभी भी दबाव नहीं डालना चाहिए। दूसरों के साथ व्यवहार करते समय कुछ हद तक ठीक है लेकिन घर में इस तरह दबाकर नहीं रखना चाहिए। स्प्रिंग तो उछलेगा। कुछ हद तक सहनशीलता होनी चाहिए।

सूक्ष्मता से सोचने पर इसके पीछे के कारण को जाना जा सकता है। बिना समझे सहन करने पर स्प्रिंग की तरह उछलेगा। इसलिए, सोचने की आवश्यकता है। न सोचने के कारण सहन करना पड़ता है। सोचने पर समझ में आएगा कि भूल कहाँ हो रही है। दूसरे समाधान मिल जाएगा।  

शांति की चाबी – जीवनसाथी के साथ एडजस्ट करें। 

इस दुनिया में दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते। विवाहित जीवन में क्लेश का यह भी एक कारण है। यह समझने के बाद हल लाने का एक ही उपाय है, ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’। ‘माई फ़ैमिली’ का अर्थ क्या? इसका मतलब, “हमारे बीच तकरार नहीं है किसी भी तरह की।“खुद की फ़ैमिली में एडजस्ट होना आना चाहिए। | जिस घर में तकरार हो वहाँ भगवान रहते ही नहीं। 

यदि पति और पत्नी दोनों मिलकर एक दूसरे के साथ एडजस्टमेन्ट लेना तय करें तो, दोनों के लिए लक्ष्य प्राप्त करना संभव है। उदाहरण के तौर पर, जिस तरह इंसान के एक हाथ में दर्द होने पर वह किसी और से कहने के बजाय खुद ही दूसरे अच्छे हाथ से दर्द करने वाले हाथ का मसाज कर सकता है। इसी तरह, यदि आप एडजस्ट करोगे तभी आपका काम पूरा होगा। क्लेश से कुछ भी प्राप्त नहीं होता। न चाहते हुए भी मतभेद हो जाता हैं। यदि सामने वाला हठी हो और अपनी बात की पकड़ रखता हो तो आपको ‘लेट गो’ करके सो जाना चाहिए। लेकिन यदि आप दोनों अपनी बात पर अड़े रहेगें तो पूरी रात बीत जाने पर भी कलह का अंत नहीं होगा। दूसरों के साथ व्यवहार करते समय, भागीदारी में, व्यापार में और ऐसे सभी मामलों में जो सावधानी आप बरतते हैं क्या वही सावधानी आपको अपने जीवनसाथी के साथ व्यवहार करते समय नहीं बरतनी चाहिए? 

क्लेश को समाधानपूर्वक हल करने की भावना रखें 

परम पूज्य दादाश्री कहते की, “हमें तो ‘सामनेवाले का समाधान करना है’ इतना निश्चित रखना है। ‘समभाव से निकाल’ करने का निश्चित करो, फिर निकाल हो या न हो वह पहले से देखना नहीं है। और निकाल होगा। आज नहीं तो दूसरे दिन होगा, तीसरे दिन होगा, गाढ़ा हो तो दो वर्ष में, तीन वर्ष में या चार वर्ष में होगा। वाइफ के ऋणानुबंध बहुत गाढ़ होते हैं, बच्चों के गाढ़ होते हैं, माँ-बाप के गाढ़ होते हैं, वहाँ ज़रा ज़्यादा समय लगता है। ये सब अपने साथ के साथ ही होते हैं, वहाँ निकाल धीरे-धीरे होता है। पर हमने निश्चित किया है कि जब हो तब ‘हमें समभाव से निकाल करना है’, इसलिए एक दिन उसका निकाल होकर रहेगा, उसका अंत आएगा। जहाँ गाढ़ ऋणानुबंध हों, वहाँ बहुत जागृति रखनी पड़ती है, इतना छोटा-सा साँप हो पर सावधान, और सावधान ही रहना पड़ता है। और यदि बेखबर रहें, अजाग्रत रहें तो समाधान होता नहीं। सामनेवाला व्यक्ति बोल जाए और हम भी बोल जाएँ, बोल गए उसमें हर्ज नहीं है परन्तु बोल जाने के पीछे हमें ‘समभावे निकाल’ करना है ऐसा निश्चय रहा हुआ है इसलिए द्वेष रहता नहीं है। 

प्रतिक्रमण – एक शक्तिशाली साधन 

जब आप खुद को वैवाहिक संघर्ष में पाते हैं तो इसे अपने जीवनसाथी के साथ अपने बाहरी संबंधों की असर न होने दें। हमें जिसके साथ पूर्व का ऋणानुबंध हो और वह हमें पसंद ही ना हो, उसके साथ रहना ही पसंद ना हो और फिर भी अनिवार्य रूप से सहवास में रहना पड़ता हो, तो क्या करना चाहिए? बाहर का व्यवहार उसके साथ रखना चाहिए, लेकिन अंदर उसके नाम के प्रतिक्रमण करने चाहिए। क्योंकि हमने पिछले जन्म में अतिक्रमण किया था, यह उसका परिणाम है। कॉज़ेज़ क्या किए थे? तो उसके साथ पूर्व जन्म में अतिक्रमण किया था। उस अतिक्रमण का इस जन्म में फल आया। यानी उसका प्रतिक्रमण करेंगे तो प्लस-माइनस (जोड़ना-घटाना) हो जाएगा। अत: अंदर आप उसके लिए माफी माँग लो। माफी माँगते रहो कि ‘मैंने जो-जो दोष किए हैं, उसके लिए माफी माँगता हूँ’। 

एकता रखें 

अपने जीवनसाथी के साथ एकता रखना। वाइफ के साथ भी मतभेद हो, वहाँ भी एकता नहीं रहेगी तब फिर और कहाँ रखोगें? एकता यानी क्या कि कभी भी मतभेद नहीं पड़े। इस एक व्यक्ति के साथ तय करना कि, ‘तुम्हारे और मेरे बीच मतभेद नहीं पड़े ऐसी एकता रहनी चाहिए।’ 

इतना ही नहीं, आपके मन में भी उनके प्रति भेद नहीं पड़ना चाहिए, उन्हें आपसे कोई जुदाई नहीं लगनी चाहिए। उनकी वाणी अनुचित निकले तब भी आप उन्हें उतना ही आदर दें। और जब आपको ऐसा लगे कि मतभेद बढ़ रहे हैं, तब समाधान हेतु आप पहल करके उनके साथ बात करें मानो कुछ हुआ ही नहीं है। ऐसे प्रयत्नों से आप दोनों की एकता में दरार नहीं पड़ेगी। 

मौन रहना हल नहीं 

१) दादाश्री : घर में कभी मतभेद होता है, तब क्या दवाई लगाते हो? दवाई की बोतल रखते हो?

प्रश्नकर्ता : मतभेद की कोई दवाई नहीं है।

दादाश्री : हें! क्या कहते हो? तब फिर आप इस कमरे में चुप, पत्नी उस कमरे में चुप, ऐसे रूठ कर सोये रहना? दवाई लगाए बगैर? फिर वह किस तरह मिट जाता होगा? घाव भर जाता होगा न? मुझे यह बताओ कि दवाई लगाए बगैर घाव कैसे भर जाएगा? यह तो सुबह तक भी घाव नहीं भरता। सवेरे चाय का कप देते समय ऐसे पटकती है। आप भी समझ जाते हो कि अभी रात का घाव भरा नहीं है। ऐसा होता है या नहीं होता? यह बात कुछ अनुभव से बाहर की थोड़े ही है? हम सभी एक जैसे ही हैं। अर्थात ऐसा क्यों हुआ कि अभी भी मतभेद का घाव पड़ा हुआ है?

२) प्रश्नकर्ता : अबोला (मतभेद के कारण आपसी बातचीत बंद कर देना) रखकर बात टालने से उसका निपटारा हो सकता है?

दादाश्री : नहीं हो सकता। आपको तो सामने मिले तो ‘कैसे हो? कैसे नहीं?’ ऐसा कहना चाहिए। सामनेवाला ज़रा चीखे-चिल्लाए तब आपको धीरे से ‘समभाव से निकाल (निपटारा)’ करना है। उसका निकाल तो करना पड़ेगा न कभी न कभी? अबोला रखोगे... तो उससे क्या निकाल हो गया? निकाल नहीं हो पाता, इसीलिए तो अबोला खड़ा होता है। अबोला होने से जिस बात का निकाल नहीं हुआ उसका बोझ लगता है। हमें तो तुरंत उसे रोककर कहना है, ‘रुकिए, हमारी कुछ भूल हो तो बताइए। मुझसे बहुत भूलें होती हैं आप तो बहुत होशियार, पढ़े-लिखे हो, इसलिए आपसे नहीं होती, पर मैं कम पढ़ा-लिखा हूँ, इसलिए मुझ से बहुत भूलें होती हैं।’ ऐसा कहोगे तो वह खुश हो जाएगी।

आत्मज्ञान की प्राप्ति

आत्मज्ञान प्राप्त करें, यह वैवाहिक जीवन में मतभेद को दूर करने का सबसे महत्वपूर्ण उपाय है। आत्मज्ञान से, आपको वैवाहिक जीवन में होने वाले मतभेद को सही समझ से दूर करने की एक नई ही दृष्टि प्राप्त होगी।

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