विवाहित जीवन में कभी न कभी, ऐसी स्थितियाँ आती हैं, जब गुस्से हुई पत्नी संभालना पड़ता है। करीबी रिश्ता होने के नाते, हम उन्हें खुश करने की कोशिश करते हैं। इसके बावजूद, परिस्थिति के बेकाबू होने पर उसे नियंत्रित करना कठिन हो जाता है।
आम तौर पर, परिस्थितियाँ काबू से बाहर जाने की शुरुआत छोटे मतभेदों या गलतफहमियों से होती है। थोड़ा धैर्य रखकर, खुलकर बातचीत करके और एक-दूसरे का विनय संभालने से ऐसी समस्याओं को आसानी से सुलझाया जा सकता है। अकुलाए बिना, ऐसी परिस्थितियों का समझदारी से समाधान ढूँढ़ना सबसे बेहतर उपाय है।

मान लीजिए, हमारी पत्नी का किसी पड़ोसी के साथ झगड़ा हो गया हो और उन्हें इतना गुस्सा आ जाए कि जब हम घर आएँ तो वे हमें भी डाँटने लगें, तो हमें क्या करना चाहिए? क्या हमें भी सामने गुस्सा करना चाहिए? जब ऐसा हो, तो हमें एडजस्टमेन्ट लेना चाहिए। हमें नहीं पता कि वे क्यों गुस्से में हैं। हमें मतभेद नहीं होने देना चाहिए। अगर वे हमारे साथ बहस करने लगें, तो हमें उन्हें शांत करना चाहिए। मतभेद अर्थात् टकराव!
आइए, हम देखते हैं आत्मज्ञानी परम पूज्य दादाश्री ने अपनी पत्नी के साथ किस तरह कुशलतापूर्वक टकराव टाला था।
दादाश्री: अब एक बार मेरा हीरा बा से मतभेद हो गया। मैं भी फँस गया। मेरी वाइफ को मैं ‘हीरा बा’ कहता हूँ। हम तो ज्ञानी पुरुष, हम तो सभी को ‘बा’ कहते हैं और ये बाकी की सब बेटियाँ कहलाती हैं! अगर बात सुननी हो तो कहूँ। यह बहुत लंबी बात नहीं है, छोटी बात है।
प्रश्नकर्ता: हाँ, वह बात बताइए न!
दादाश्री: एक दिन मतभेद हो गया था। मेरी ही भूल थी उसमें, उनकी भूल नहीं थी।
प्रश्नकर्ता: वह तो उनकी हुई होगी, लेकिन आप कहते हैं कि मेरी भूल हुई थी।
दादाश्री: हाँ, लेकिन उनकी भूल नहीं थी, मेरी भूल। मुझे ही मतभेद नहीं डालना है। उन्हें तो हो तो भी हर्ज नहीं और नहीं हो तो भी हर्ज नहीं। मुझे (मतभेद) नहीं डालना था, इसलिए मेरी ही भूल कहलाएगी न! यह ऐसे किया तो कुर्सी को लगा या मुझे?
प्रश्नकर्ता: आपको।
दादाश्री: इसलिए मुझे समझना चाहिए था न!
तब फिर एक दिन मतभेद हुआ। मैं फँस गया। मुझसे वे कहती हैं, ‘मेरे भैया की चार लड़कियों की शादी होनी है, उनमें यह पहली की शादी है तो हम शादी में क्या देंगे?’ तो वैसे ऐसा नहीं पूछतीं तो चलता। जो भी दें, उसके लिए मैं ‘ना’ नहीं करता। मुझे पूछा इसलिए मेरी अक़्ल के अनुसार चला। उन जैसी अक़्ल मुझ में कहाँ से होती? उन्होंने पूछा इसलिए मैंने क्या कहा? ‘इस अलमारी में चाँदी जो पड़ा हैं, वे दे देना, नये बनवाने के बजाय! ये चांदी के बर्तन अलमारी में पड़े हैं छोटे-छोटे, उनमें से एक-दो दे देना!’ इस पर उन्होंने मुझे क्या कहा जानते हो? हमारे घर में ‘मेरा-तेरा’ जैसा शब्द नहीं निकलता था। ‘हमारा-अपना’ ऐसा ही बोला जाता था। अब वे ऐसा बोलीं कि 'आपके मामा के लड़कों की बेटियों की शादी में तो इतने बड़े-बड़े चाँदी के थाल देते हो न!' उस दिन 'मेरा-आपका' बोलीं। वैसे हमेशा 'हमारा' ही कहती थीं। मेरे तुम्हारे के भेद से नहीं कहती थीं। मैंने सोचा, 'आज हम फँस गए।' मैं तुरंत समझ गया। इसलिए इसमें से निकलने का रास्ता ढूँढने लगा। अब किस प्रकार इसे सुधार लूँ। खून निकलने लगा, अब किस प्रकार पट्टी लगाएँ कि खून बंद हो जाए, वह हमें आता था!
यानी उस दिन मेरा-तेरा हुआ! 'आपके मामा के लड़के' कहा! यहाँ तक दशा हुई, मेरी नासमझी इतनी उल्टी! मैंने सोचा, यह तो ठोकर लगने जैसा हुआ आज तो! इसलिए मैं तुरंत ही पलट गया! पलटने में हर्ज नहीं। मतभेद हो, इससे तो पलटना अच्छा। तुरंत ही पलट गया पूरा....। मैंने कहा, 'मैं ऐसा नहीं कहना चाहता।' मैं झूठ बोला, मैंने कहा, 'मेरी बात अलग है, आपके समझने में ज़रा भूल हो गई। मैं ऐसा नहीं कह रहा था।' तब कहती हैं, 'तो क्या कह रहे थे?' तब मैंने कहा, 'यह चाँदी का छोटा बर्तन देना और दूसरे पाँच सौ रुपये नक़द देना। वे उन्हें काम में आएँगे।' 'आप तो भोले हैं। इतना सारा कोई देता है कहीं?' इस पर मैं समझ गया कि हम जीत गए! फिर मैंने कहा, 'तो फिर आपको जितने देने हों, उतने देना। चारों लड़कियाँ हमारी बेटियाँ हैं।' तब वे खुश हो गईं। फिर 'देव जैसे हैं' ऐसा कहने लगीं!
देखो, पट्टी लगा दी न! मैं जानता था कि मैं पाँच सौ कहूँगा तो दे दें, ऐसी नहीं हैं ये! तो फिर हम उन्हें ही अधिकार सौंप दें न! मैं स्वभाव जानता था। मैं पाँच सौ दूँ तो वे तीन सौ दे आएँ। तो फिर बोलो, सत्ता सौंपने में मुझे हर्ज होगा क्या?
आइए अब हम परम पूज्य दादाश्री ने दिए हुए उदाहरणों से क्रोधित पत्नी के साथ व्यवहार करने और उसे खुश करना सीखते हैं:
बीवी ने पति से मिठाई लाने को कहा हो, पर उसकी को तनख्वाह कम मिलती हो, तो वह बेचारा मिठाई कहाँ से ले आए? बीवी महीने भर से कह रही हो कि ‘इन सभी बच्चों को, बेचारों को बहुत इच्छा है। अब तो मिठाई ले आओ।’ फिर एक दिन बीवी मन में बहुत चिढ़ती है तो वह कहता है, 'आज तो लेकर ही आऊँगा', उसके पास जवाब तैयार होता है, जानता है कि जवाब नहीं दूँगा तो गालियाँ देगी। तब फिर कह देता है कि 'आज लाऊँगा।' ऐसा कहकर टाल देता है। अगर जवाब नहीं दे तो जाते समय बीवी किट-किट करेगी। इसलिए तुरंत पॉज़िटिव जवाब दे देता है कि 'आज ले आऊँगा, कहीं से भी ले आऊँगा।' तब बीवी समझती है कि आज तो लेकर आएँगे तो फिर पकाएँगे, लेकिन जब वह आता है तब खाली हाथ देखकर बीवी चिल्लाती है। सुलेमान यूँ तो समझ में बड़ा पक्का होता है, इसलिए बीवी को समझा देता है कि, 'मेरी हालत मैं ही जानता हूँ, तुम क्या समझो।' एक-दो वाक्य ऐसे कहता है कि बीवी कहेगी, 'अच्छा बाद में लाना।' पर दस-पंद्रह दिन बाद बीवी फिर से कहती है तो, फिर 'मेरी हालत मैं जानता हूँ' ऐसा कहता है तो बीवी मान जाती है। वह कभी झगड़ा नहीं करता।
वर्ष १९४३-४४ के बीच में परम पूज्य दादाश्री का गवर्मेन्ट का कॉन्ट्रेक्ट था, उसमें चुनाई काम का मुखिया था, लेबर कॉन्ट्रेक्ट वाला। एक शाम, उसके उनके घर की मुलाकात ली। यह उस शाम का परम पूज्य दादाश्री का वृत्तांत है।
मैंने कहा, ‘अरे, यह एक ही रूम बड़ा है और दूसरा तो संडास जितना छोटा है।’ तब बोला, ‘साहब, क्या करें? हम गरीब के लिए इतना बहुत है।’ मैंने कहा, ‘तेरी वाइफ कहाँ सोती हैं?’ तब कहा, ‘इसी रूम में, इसे बेडरूम कहो, इसी को डाईनींग रूम कहो, सब कुछ यही।’ मैंने कहा ‘अहमद मियाँ, औरत के साथ कुछ झगड़ा-वगड़ा नहीं होता क्या? ‘यह क्या बोले?’ मैंने कहा, क्या? तब वह बोला, ‘कभी नहीं होता है। मैं ऐसा मूर्ख आदमी नहीं हूँ।' 'लेकिन मतभेद?' तब बोला, 'नहीं, मतभेद औरत के साथ नहीं। क्या कहता है, बीवी के साथ मेरी तकरार नहीं होती।' मैंने कहा, 'कभी बीवी गुस्सा हो जाए तब?' तो कहता है, 'प्यारी, बाहर वह साहब परेशान करता है और ऊपर से तू परेशान करेगी तो मेरा क्या होगा?' तो चुप हो जाती है!
मैंने कहा, 'मतभेद नहीं होता, इसलिए झंझट नहीं न?' तो कहता है, ‘नहीं, मतभेद होगा तो वह कहाँ सोएगी और मैं कहाँ सोऊँगा? यहाँ दो-तीन मंज़िलें हों तो मैं जानूँ कि तीसरी मंजिल पर चला जाऊँ। पर यहाँ तो इसी रूम में सोना है। मैं इस करवट सो जाऊँ और वह उस करवट सो जाए, फिर क्या मज़ा आएगा? सारी रात नींद नहीं आएगी। और तब तो सेठजी मैं कहाँ जाऊँ? इसलिए इस बीवी को तो कभी दुःख नहीं देता। बीवी मुझे पीटे, फिर भी दुःख नहीं देता। इसलिए मैं बाहर सब के साथ झगड़ा करके आता हूँ, पर बीवी के साथ 'क्लियर' रखता हूँ। वाइफ को कुछ भी नहीं करना चाहिए।" खुजली आए, तब बाहर झगड़ा कर आते हैं, पर घर में नहीं।
अगर हम भी ऊपर बताए गए अनुसार की विचारधारा को समझदारी से अपने जीवन में अपनाकर, वैवाहिक जीवन में कोई भी क्लेश होने न दें, तो हम सुखी वैवाहिक जीवन जी सकते हैं।
शांतिमय और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए हमें अपने पति या पत्नी को जैसे हैं वैसे स्वीकार करके, उनके साथ एडजस्ट हो जाना चाहिए। इस बारे में परम पूज्य दादा भगवान क्या कहते हैं, आइए जानते हैं।
“पत्नी चिढ़े और कहे, 'मैं आपकी थाली लेकर नहीं आने वाली, आप खुद आओ। अब आपकी तबियत अच्छी हो गई है और चलने लगे हो। ऐसे तो लोगों के साथ बातें करते हो, घूमते-फिरते हो, बीड़ियाँ पीते हो और ऊपर से टाइम हो तब थाली माँगते हो। मैं नहीं आने वाली!' तब आप धीरे से कहना, 'आप नीचे थाली में निकालो, मैं आ रहा हूँ।' वह कहती है, 'नहीं आने वाली।' उससे पहले ही आप कह दो कि मैं आ रहा हूँ, मेरी भूल हो गई, लो। ऐसा करो तो रात कुछ अच्छी बीतेगी। नहीं तो रात बिगड़ेगी। पति टिटकारी मारते यहाँ सो गए हों और पत्नी यहाँ टिटकारी मारती है। दोनों को नींद नहीं आती। सुबह वापस जब चाय-पानी होता है, तब चाय का प्याला पटककर रखते हुए, टिटकारी करती है या नहीं करती? वह तो यह पति भी तुरंत समझ जाता है कि टिटकारी की। यह कलह का जीवन है।“
परम पूज्य दादाश्री इसका सार देते हुए कहते हैं:
“पत्नी ने खाना बनाया हो और अगर उसमें गलती निकाले तो वह ब्लन्डर है। ऐसी गलती नहीं निकालनी चाहिए। ऐसे बात करता है मानो खुद कभी गलती ही नहीं करता है। हाउ टू एडजस्ट? एडजस्टमेन्ट लेना चाहिए। जिसके साथ हमेशा रहना है, क्या उसके साथ एडजस्टमेन्ट नहीं लेना चाहिए? अगर खुद से किसी को दुःख पहुँचे, तो वह भगवान महावीर का धर्म कैसे कहलाएगा? और घर के लोगों को तो कभी भी दुःख होना ही नहीं चाहिए।“
१) ‘एक मिनट’ के लिए भी झंझट न हो, उसे कहते हैं पति। जिस तरह मित्र के साथ बात बिगड़ने नहीं देते, उस तरह संभालना चाहिए। यदि मित्र के साथ बनाए नहीं रखेंगे तो मित्रता टूट जाएगी।
२) पत्नी का पति बनना आ गया, ऐसा कब कहा जाएगा? जब पत्नी निरंतर पूज्यता का अनुभव करे!
“क्रोध” पर भी एक पुस्तक है—क्रोध से किस तरह बाहर निकलें? यह समझने के लिए आप उसका अध्ययन कर सकते हैं।
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