“जीवनसाथी कैसे चुने” इस पर निर्णय करना कई लोगों के लिए यह बहुत कठिन प्रश्न है। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हमारे मन में कल्पनाएँ शुरू हो जाती है कि हम कैसे जीवनसाथी के साथ विवाह करें? उनमें कौन से गुण और विशेषताएँ होनी चाहिए? उसकी रूपरेखा हम अपने मन में बना ही लेते हैं। इस कसौटी पर खरा उतरे ऐसा व्यक्ति मिलने के बाद ही हम घर बसाने के बारे में सोचते हैं। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हम जीवनसाथी कैसे पसंद करें ताकि भविष्य में विवाहित जीवन में अपेक्षाएँ, दुःख या क्लेश न हो। इस बाबत में परम पूज्य दादाश्री के विचार और मार्गदर्शन इस तरह हैं...
दादाश्री : चरित्र खराब हो, व्यसनी हो, तो बहुत परेशानी होती है। व्यसनी पसंद है या नहीं है?
प्रश्नकर्ता : बिल्कुल नहीं।
दादाश्री : और चरित्र अच्छा हो पर व्यसनी हो तो?
प्रश्नकर्ता : सिगरेट तक चला सकते हैं।
दादाश्री : सच कहती हो, सिगरेट तक निभा सकते हैं। फिर आगे वह ब्रांडी के पेग लगाए वह कैसे पुसाएगा? उसकी हद होती है और चरित्र तो बहुत बड़ी चीज़ है। बहन, तू चरित्र में मानती है? तू चरित्र पसंद करती है?
प्रश्नकर्ता : उसके बगैर जिया ही कैसे जाए?
दादाश्री : हाँ, देखो! अगर इतना हिंदुस्तानी स्त्रियाँ, लड़कियाँ समझें न तो काम हो जाए। अगर चरित्र को समझें तो काम हो जाए।
प्रश्नकर्ता : हमारे इतने ऊँचे विचार अच्छे वांचन से हुए हैं।
दादाश्री : चाहे किसी भी वांचन से, इतने अच्छे विचारों के संस्कार मिले न!वास्तव में तो यह दग़ा है। आप सभी को नज़र नहीं आता, मुझे तो सबकुछ दिखता है, सिर्फ छल-कपट है। और दग़ा हो, वहाँ सुख कभी भी नहीं होता! इसलिए एक-दूसरे के प्रति सिन्सियर रहना चाहिए। दोनों की शादी से पहले गलतियाँ हुई हों, उन्हें हम एक्सेप्ट करवा दें और फिर एग्रीमेन्ट (करार) कर दें, कि सिन्सियर रहो। दूसरी जगह मत देखना। जीवनसाथी पसंद हो या नहीं हो, फिर भी सिन्सियर रहना। यदि अपनी माँ अच्छी नहीं लगती हो, उसका स्वभाव खराब हो फिर भी उसे सिन्सियर रहते हैं न!
जब जीवनसाथी चुनने की बात आती है तब हम ऐसा आग्रह रखते हैं कि वह दिखने में सुंदर हो हालाँकि हमें किसी व्यक्ति के चारित्र को उनके रूप से नहीं आंकना चाहिए। यदि हमें जीवनभर उनके साथ ही रहना है तो क्या यह देखना ज़रूरी नहीं है कि आंतरिक सुंदरता और चारित्र, बाह्य सुंदरता जितना ही या उससे ज्यादा होना चाहिए?
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, हमारे एक महात्मा की बेटी ने क्या किया? अपने पिता से कहा कि, ‘मुझे यह लड़का पसंद नहीं।’ अब लड़का पढ़ा-लिखा था। अब वह लड़का, लड़की के माँ-बाप सब को पसंद आया था। इसलिए उसके पिता जी को व्याकुलता हो गई कि बड़ी मुश्किल से ऐसा अच्छा लड़का मिला है और यह लड़की तो मना कर रही है।
फिर उसने मुझसे पूछा तब मैंने कहा, ‘उस लड़की को मेरे पास बुलाओ’। मैंने कहा, ‘बहन, मुझे बता न! क्या हर्ज है? लंबा लगता है? मोटा लगता है? पतला लगता है?’ तब कहे, ‘नहीं, थोड़ा ब्लैकिश (काला) है’। मैंने कहा, ‘वह तो मैं उजला कर दूँगा, तुझे और कोई दिक्कत है?’ तब बोली, ‘नहीं, और कुछ नहीं’। इस पर तो मैंने कहा, ‘तू हाँ कर दे, फिर मैं उसे उजला कर दूँगा’। फिर वह लड़की उसके पापा से कहने लगी कि, ‘आप दादाजी तक शिकायत ले गए?’ तब क्या करें फिर?
शादी के बाद मैंने पूछा, ‘बहन, उजला करने के लिए साबुन मँगा दूँ क्या?’ तब उसने कहा, ‘नहीं दादाजी, उजला ही है’। बिना वजह ब्लैकिश, ब्लैकिश कर रही थी! वह तो, कुछ काला लगाए तो काला नज़र आए और पीला लगाए तो पीला दिखेगा। वास्तव में लड़का अच्छा था। मुझे भी अच्छा लगा। उसे कैसे जाने दें? लड़की क्या समझी, ज़रा सा ढीला है। ठीक कर लेना फिर, लेकिन ऐसा दूसरा नहीं मिलेगा!
मेरे माता-पिता, यदि मेरे लिए ऐसा व्यक्ति पसंद करें जो मेरे योग्य न हो तो?
आपके लिए जीवनसाथी पसंद करते समय आपके माता-पिता को आपका हित ही, सबसे अधिक ध्यान में रहता है। वे जानबूझकर कभी भी ऐसा काम नहीं करते जिससे उनके बच्चे दुःखी हो। इसलिए कभी भी उन पर शंका न करें। इसके बावजूद यदि आपके विवाहित जीवन में कोई समस्या होती हैं, तो वह आपके कर्म हैं, जो आप पिछले जन्म से साथ लेकर आए हो। कर्म से संबधित विज्ञान जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
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