व्यावसायिक क्षेत्र में लोगों के साथ कैसे बातचीत करें, साथ ही अपने व्यावहारिक कौशल का कैसे विकास करें, यह सब सीखने के लिए हम अक्सर वर्कशॉप और सेमिनार में भाग लेते हैं। हालाँकि, हम ऐसी कुशलता का उपयोग अपने जीवनसाथी के साथ नहीं करते।
परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, ‘वास्तव में दुनिया को नहीं जीतना है, घर को जीतना है।’

नीचे दर्शाए गए अनुभवों द्वारा हम पत्नी या पति के साथ कैसा व्यवहार करें, इस बारे में सीखेंगे। परम पूज्य दादाश्री के साथ हुए सत्संग में से लिए गए आंशिक अवतरण नीचे दर्शाए गए हैं।
हमें जिनके साथ रहते हैं, उनकी प्रकृति की पहचान तो हमें करनी ही चाहिए न? पत्नी या पति के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, यह सीखने से पहले, आपको उनकी प्रकृति के हर पहलू को समझना ज़रूरी है। आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद, अगर आप उनकी प्रकृति को समझने की कोशिश करेंगे, तो आप उनकी प्रकृति को आसानी से पहचान सकेंगे। अगर आप ऐसा करेंगे, तो उनके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार रखना आपके लिए आसान हो जाएगा।
जब हम जीवनससाथी की प्रकृति का अभ्यास करेंगे, तब उनकी पसंद-नापसंद को जान पाएँगे, जिससे हम टकराव टाल सकें वैसा व्यवहार कर पाएँगे। यदि पार्टनर को सुबह जल्दी उठने की आदत हो और हमें देर तक उठना पसंद हो, तब अगर हम उनके साथ एडजस्ट होना सीख जाएँगे, तो उनके साथ टकराव टाला जा सकेगा।
यदि पति और पत्नी दोनों निश्चय करें कि मुझे एडजस्ट होना है तो ही हल निकलेगा। यदि सामने वाला ज़्यादा खींचे, तो हम एडजस्ट हो जाएँ तो हल निकलेगा। अगर हम समायोजित नहीं होंगे, तो स्थिति बिगड़ ही जाएगी! एडजस्ट नहीं होंगे तो पागल हो जाएँगे। दूसरों को परेशान किया है इसलिए हमें इतना सहन करना पद रहा है। कुत्ते को एक बार छेड़ें, दूसरी बार, तीसरी बार छेड़ें तब तक वह हमारी आबरू रखता है, लेकिन फिर बहुत छेड़छाड़ करें तो वह भी काट लेता है। वह भी समझ जाता है कि यह रोज़ छेड़ता है, यह बेशर्म है। यह बात समझने जैसी है। कुछ भी झंझट करना नहीं है, एडजस्ट एवरीव्हेर।
पति-पत्नी के बीच दोनों की पसंद अलग होना स्वाभाविक है। तो फिर अपनी पसंद और जीवनसाथी की पसंद का एक साथ कैसे ध्यान रखा जा सकता है? एक-दूसरे की पसंद बदले बिना, बस एक छोटी सी चाबी की आवश्यकता है, जो है समाधान। यदि हमें बाहर जाना पसंद है और हमारे पार्टनर को घर पर समय बिताना पसंद है, तो कुछ ऐसा किया जा सकता है, जिससे दोनों अपनी-अपनी तरह से आनंद ले सकें। जैसे कि कुछ शामों को घर पर रहना और बाकी शामों में बाहर जाना। इस तरह, रिश्ते पर असर डाले बिना, एक-दूसरे का साथ और पसंद का आनंद ले सकते हैं। हर सयोग में एक-दूसरे के प्रति प्रेम को टूटने न दें और एक-दूसरे को जैसे हैं वैसे स्वीकार करे लें, यही सफल वैवाहिक जीवन की चाबी है।
अपने पति या पत्नी के साथ बाते करते वक्त शब्दों का जितना महत्त्व है, उतना ही महत्त्व हमारे बात करने के तरीके का भी है। हमें उनसे इस तरह बात करनी चाहिए कि वे चिढ़ न जाएँ। यहाँ एक बहन ने परम पूज्य दादाश्री को बताया हुआ अपने अनुभव का एक अंश है।
एक बहन हैं, वे मुझसे कहती हैं, ‘आप मेरे फादर हों, ऐसा लगता है, पिछले जन्म के।’ बहन बहुत अच्छी, बहुत संस्कारी थीं। फिर बहन से पूछा कि, ‘इस पति के साथ कैसे मेल बैठता है?’ तब कहा, ‘वे कभी कुछ नहीं बोलते, कुछ भी नहीं कहते।’ तब मैंने कहा, ‘किसी दिन कुछ तो होता होगा न?’ तब कहे, ‘नहीं, कभी-कभार ताना देते हैं।’ ‘हाँ’, इस बात पर से मैं समझ गया। तब मैंने पूछा कि, 'वह ताना दें तब आप क्या करती हो? आप उस वक्त डंडा लाती हो या नहीं?' तब वह कहती है, 'नहीं, मैं उन्हें ऐसा कहती हूँ कि कर्म के उदय से मैं और आप मिले हैं। मैं अलग, आप अलग। अब ऐसा क्यों करते हो? किसलिए ताने देते हो और यह सब क्या है? इसमें किसी का भी दोष नहीं है। यह सब कर्म के उदय का दोष है। इसलिए ताने देने के बजाय कर्म चुकता कर डालो न!' वह तकरार अच्छी कहलाएगी न! आज तक तो बहुत सारी स्त्रियाँ देखीं, पर ऐसी ऊँची समझ वाली तो यही एक स्त्री देखी।
पति और पत्नी के बीच कलह के कारण उठने वाली आग को कैसे शांत किया जा सकता है, इस बारे में परम पूज्य दादा भगवान इस प्रकार समझ देते हैं।
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, “पहले तो घर में क्लेश नहीं होना चाहिए और अगर हो जाए तो उसे पलट लेना चाहिए। थोड़ा होने लगे ऐसा हो, हमें लगे कि अभी ज्वाला भभकेगी, उससे पहले ही पानी छिड़क कर ठंडा कर देना। पहले की तरह क्लेशयुक्त जीवन जीओ तो उसका क्या फायदा? उसका अर्थ ही क्या? क्लेशयुक्त जीवन नहीं होना चाहिए न? क्या बाँटकर ले जाना है? घर में साथ में खाना-पीना है, फिर कलह किस बात की? अगर कोई, आपके पति के लिए कुछ कहे तो बुरा लगता है कि मेरे पति के बारे में ऐसा कहते हैं और खुद पति से कहती हैं कि 'तुम ऐसे हो, वैसे हो', ऐसा सब नहीं होना चाहिए। पति को भी ऐसा नहीं करना चाहिए। आप में क्लेश होगा न, तो बच्चों के जीवन पर असर पड़ेगा। कोमल बच्चों पर सब असर होता है। इसलिए क्लेश जाना चाहिए। क्लेश मिटे तभी घर के बच्चे भी सुधरते हैं। ये तो बच्चे सब बिगड़ गए हैं।”
पति-पत्नी के रिश्ते में सत्ता के दुरुपयोग से प्रभावित न होने के लिए परम पूज्य दादा भगवान कुछ चाबियाँ देते हैं, जो इस प्रकार हैं:
प्रश्नकर्ता: यहाँ अमरीका में औरतें भी नौकरी करती हैं न, इसलिए ज़रा ज़्यादा पावर आ जाता है औरतों को, इसलिए हज़बेन्ड-वाइफ में ज़्यादा किट किट होती है।
दादाश्री: पावर आए तो अच्छा है न बल्कि, आपको तो यह समझना है कि 'अहोहो! बिना पावर के थे, अब पावर आया तो अच्छा हुआ हमारे लिए!' बैलगाड़ी ठीक से चलेगी न? बैलगाड़ी के बैल ढीले हों तो अच्छा या पावर वाले हों तो?
प्रश्नकर्ता: लेकिन गलत पावर करे, तब खराब चलेगा न? अच्छा पावर करती हो तो ठीक है।
दादाश्री: ऐसा है न, पावर को मानने वाला नहीं हो, तो उसका पावर दीवार से टकराएगा। वह ऐसे रौब मारेगी और वैसे रौब मारेगी परंतु यदि आप पर कुछ असर नहीं होगा तो उसका सारा पावर दीवार से टकराकर फिर उसीको वापस लगेगा।
प्रश्नकर्ता: आपके कहने का मतलब ऐसा है कि हमें औरतों की सुननी ही नहीं चाहिए?
दादाश्री: सुनो, अच्छी तरह से सुनो, आपके हित की बात हो तो सब सुनो और पावर जब टकराए, उस घड़ी मौन रहना। आप यह देख लेना कि कितना पीया है। पीया होगा, उसी अनुसार पावर इस्तेमाल करेगी न?
प्रश्नकर्ता: ठीक है। उसी प्रकार जब पुरुष भी व्यर्थ पावर दिखाएँ तब?
दादाश्री: तब आप ज़रा ध्यान रखना। आज थोड़े उल्टे चल रहे हैं ऐसा मन में कहना, मुँह पर कुछ मत कहना।
प्रश्नकर्ता: हाँ... नहीं तो ज़्यादा उल्टा करेंगे।
दादाश्री: 'आज उल्टे चले हैं, कहती हैं... ऐसा नहीं होना चाहिए। कितना सुंदर... दो मित्र आपस में ऐसा करते हैं क्या? ऐसा करें तब मैत्री टिकेगी क्या? उसी प्रकार ये स्त्री-पुरुष दोनों मित्र ही कहलाते हैं। अर्थात् मैत्री भाव से घर चलाना है, उसके बदले यह दशा कर डाली! क्या इसलिए लोग ग्रीन कार्ड वालों के साथ अपनी लड़कियों की शादी करवाते होंगे? ऐसा करने के लिए? क्या यह हमें शोभा देता है? आपको क्या लगता है? यह हमें शोभा नहीं देता। संस्कारी किसे कहते हैं? घर में क्लेश हो, वे संस्कारी कहलाते हैं या क्लेश नहीं हो, वे?
क्लेश न हो इसलिए परम पूज्य दादा भगवन क्या कहते हैं, आइए पढ़ते हैं।
प्रश्नकर्ता: क्लेश नहीं हो इसके लिए क्या करना? उसका रास्ता क्या है?
दादाश्री: किस-किस बाबत को लेकर क्लेश होता है? यह मुझे बताइए तो मैं आपको तुरंत उसकी दवाई बता दूँगा।
प्रश्नकर्ता: पैसों के लिए होता है, बच्चों को लेकर होता है, सबके लिए होता है। छोटी-छोटी बातों को लेकर होता रहता है।
दादाश्री: पैसों की बाबत में क्या होता है?
प्रश्नकर्ता: बचते नहीं है, सब खर्च हो जाते हैं।
दादाश्री: तो उसमें पति का क्या कसूर है?
प्रश्नकर्ता: कोई कसूर नहीं है। लेकिन उस बात को लेकर झगड़ा हो जाता है कभी-कभी।
दादाश्री: मतलब, क्लेश तो करना ही नहीं। दो सौ डॉलर गँवाकर आए तब भी क्लेश नहीं करना। क्योंकि क्लेश की क़ीमत चार सौ की होती है। दो सौ डॉलर खो जाएँ उससे डबल क़ीमत का क्लेश होता है। यानी, चार सौ डॉलर का क्लेश करना उसके बजाय दो सौ डॉलर गए सो गए। फिर क्लेश मत करना। घटना-बढ़ना वह तो प्रारब्ध के अधीन है।
क्लेश करने से पैसों में वृद्धि नहीं होती है। वह तो पुण्य जागे, तो पैसों की वृद्धि होने में देर नहीं लगती। यानी पैसे ज्यादा खर्च हो जाते हों तो किच-किच नहीं करना। क्योंकि जो खर्च हो गए वे तो आखिर गए, लेकिन यदि क्लेश करें तब तो पचास रुपये खर्च हुए हों उसके सामने सौ रुपयों का क्लेश हो जाए। मतलब क्लेश तो करना ही नहीं चाहिए।
‘प्रोमिस टु पे’
हीरा बा की एक आँख 1943 में चली गई। उनको ग्लुकोमा की (आँख की) बीमारी थी। डॉक्टर उनका इलाज कर रहे थे लेकिन आँख को असर हो गया और नुकसान हो गया।
तब लोगों के मन में हुआ कि यह एक 'नया दुल्हा' पैदा हुआ। फिर से ब्याह रचाएँ। कन्याओं की भरमार थी न! और कन्याओं के माता-पिता की इच्छा ऐसी कि कैसे भी करके, कुएँ में धकेलकर भी निपटारा लाना है। इसलिए भादरण के एक पटेल आए, उनके साले की बेटी होगी, इसलिए आए। मैंने पूछा, 'क्या चाहिए आपको?' तो उन्होंने कहा, 'आप पर कैसी गुज़री?' अब उन दिनों, 1944 में मेरी उम्र छत्तीस साल की थी। तब मैंने उनसे कहा, 'क्यों? आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?' तो उन्होंने कहा, 'एक तो हीरा बा की आँख चलो गई। दूसरा, उनसे कोई सतान भी नहीं है। मैने कहा, 'सतान नहीं है तो क्या? मेरे पास कोई स्टेट भी तो नहीं है। बड़ौदा जैसी रियासत नहीं है कि मुझे उसका उत्तराधिकारी चाहिए। यदि स्टेट होता तो संतान को देता। यह एकाध छपरिया है, थोड़ी-बहुत ज़मीन है और वह भी फिर हमें किसान ही बनाएगी न! अगर कोई स्टेट होता तो ठीक है!' और फिर मैंने उनसे पूछा कि, 'आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? हमने हीरा बा से जब शादी हुई थी तब प्रोमिस किया था। इसलिए एक आँख चली गई तो क्या हुआ! दोनों आँखें चली जाएँगी तब भी मैं उनका हाथ पकड़कर चलूँगा'। उन्होंने कहा, 'आपको दहेज दें तो कैसा रहेगा?' मैंने कहा, 'आप अपनी बेटी को कुएँ में धकेलना चाहते हैं? इससे तो हीरा बा को दुःख होगा। हीरा बा को दुःख होगा कि नहीं होगा? उनको लगेगा कि मेरी आँख चली गई इसलिए यह नौबत आई न!' हमने तो प्रोमिस टु पे किया है (वचन दिया है)। मैंने उनसे कहा, 'मैं किसी भी हालत में मुकरने वाला नहीं, चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए तब भी प्रोमिस यानी प्रोमिस!' क्योंकि मैंने प्रोमिस किया है, प्रोमिस करने के बाद मुकरते नहीं। हमारा एक जन्म उसके लिए! क्या तबाही हो जाएगी उससे! शादी के मंडप में हाथ थामा था, हाथ थामा यानी प्रोमिस किया हमने और सभी की हाज़िरी में प्रोमिस किया था। क्षत्रिय के तौर पर हमने जो प्रोमिस किया है, उसके लिए एक अवतार न्योच्छावर कर ही देना चाहिए।

परम पूज्य दादाश्री ने अपने हीराबा के साथ के संबंधों से यह निष्कर्ष निकाला था, वे कहते थे, “मतभेद तो प्राकृतिक रूप से हो जाए, क्योंकि मैं उसके भले के खातिर कहता होऊँ फिर भी उसे उलटा लगे तो फिर उसका क्या उपाय है? सही-गलत करने जैसा ही नहीं है इस संसार में। जो रुपया चला वह खरा और नहीं चला वह खोटा। हमारे तो सारे रुपये चलते हैं। आपका तो कहीं-कहीं नहीं चलता होगा न?”
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