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उधार चुकाने की शुद्ध भावना रखें।

प्रश्नकर्ता : व्यापार में बहुत घाटा हुआ है तो क्या करूँ? व्यापार बंद करूँ या दूसरा करूँ? क़र्ज़ बहुत हो गया है।

दादाश्री : रूई बाज़ार का नुकसान कोई किराने की दुकान लगाने से पूरा नहीं होता। व्यापार में से हुआ नुकसान व्यापार में से ही पूरा होता है, नौकरी में से नहीं होता। कॉन्ट्रेक्ट का नुकसान कभी पान की दुकान से पूरा होता है? जिस बाज़ार में घाव लगा हो, उस बाज़ार में ही घाव भरता है, वहाँ पर ही उसकी दवाई होती है।

हमें भाव ऐसा रखना चाहिए कि अपने से किसी जीव को किंचित् मात्र दुःख न हो। हमें एक शुद्ध भाव रखना चाहिए कि सभी उधार चुका देना है, ऐसी यदि चोखी नीयत हो तो उधार सारा कभी न कभी चुकता हो जाएगा। लक्ष्मी तो ग्यारहवाँ प्राण है। इसलिए किसी की लक्ष्मी अपने पास नहीं रहनी चाहिए। अपनी लक्ष्मी किसी के पास रहे उसकी परेशानी नहीं है। परन्तु ध्येय निरंतर वही रहना चाहिए कि मुझे पाई-पाई चुका देनी है, ध्येय लक्ष्य में रखकर फिर आप खेल खेलो। खेल खेलो पर खिलाड़ी मत बन जाना, खिलाड़ी बन गए कि आप खतम हो जाओगे।

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