दादाश्री : तो फिर मनुष्य झगड़ें तो कैसे अच्छा लगेगा? कुत्ते झगड़ते हों तो भी अच्छा नहीं लगता हमें।
यह तो कर्म के उदय से झगड़े चलते रहते हैं, पर जीभ से उल्टा बोलना बंद करो। बात को पेट में ही रखो, घर में या बाहर बोलना बंद करो। कई स्त्रियाँ कहती हैं, 'दो धौल लगाओ तो अच्छा, पर ये आप जो बोलते हो न तो मेरी छाती में घाव लगते हैं!' अब लो, छूता नहीं और कैसे घाव लगते हैं!
खुद टेढ़ा है मुआ। अब रास्ते में ज़रा छप्पर पर से एक इतना पत्थर का टुकड़ा गिरे, खून निकले, वहाँ क्यों नहीं बोलता? यह तो जान-बूझकर उसके ऊपर रौब मारना है। इस तरह पतिपना बताना है। फिर बुढ़ापे में आपको बहुत अच्छा देगी। पति कुछ माँगे तो, 'ऐसे क्या कच-कच करते रहते हो, सोए पड़े रहो न', कहेगी। इसलिए जान-बूझकर पड़े रहना पड़ता है। यानी आबरू ही जाती है न। इससे अच्छा तो मर्यादा में रहो। घर पर झगड़ा-वगड़ा क्यों करते हो? लोगों से कहो, समझाओ कि घर में झगड़े मत करना। बाहर जाकर करना और बहनों, तुम भी मत करना हाँ!
प्रश्नकर्ता : वाणी से कुछ भी क्लेश नहीं होता। पर मन में क्लेश उत्पन्न हुआ हो, वाणी से नहीं कहा हो, पर मन में बहुत होता है, तो उसे क्लेश रहित घर कहना चाहिए?
दादाश्री : वह और अधिक क्लेश कहलाता है। मन बेचैनी का अनुभव करे उस समय क्लेश होता ही है और बाद में हमें कहेगा, 'मुझे चैन नहीं पड़ता।' वह क्लेश की निशानी। हल्के प्रकार का हो या भारी प्रकार का। भारी प्रकार के क्लेश तो ऐसे होते हैं कि हार्ट भी फेल हो जाता है। कितने तो ऐसा बोल बोलते हैं कि हार्ट तुरन्त खाली हो जाता है। सामनेवाले को घर खाली ही करना पड़ता है, घर का मालिक आ जाए, फिर!!
Book Name: वाणी, व्यवहार में...(Page #49 Paragragh #5, #6, #7 & Page #50 Paragragh #1, #2, #3)
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Q. जब कोई झूठ बोल रहा हो, तब क्या हमें कुछ नहीं बोलना चाहिए?
A. प्रश्नकर्ता : पर वे गलत बोलते हों या गलत करते हों तो भी हमें नहीं बोलना चाहिए? दादाश्री : बोलना... Read More
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