प्रश्नकर्ता : व्यापार में सामनेवाला व्यापारी जो होता है, वह नहीं समझे और अपने से क्रोधावेश हो जाए, तो क्या करना चाहिए?
दादाश्री : व्यापारी के साथ तो मानो कि व्यापार के लिए है, वहाँ तो बोलना पड़ता है। वहाँ भी 'नहीं बोलने' की कला है। वहाँ नहीं बोलें तो सारा काम हो जाए वैसा है। पर वह कला जल्दी आ जाए वैसी नहीं है, वह कला बहुत ऊँची है। इसलिए वहाँ पर लड़ना नहीं, अब वहाँ जो फायदा हो वह देख लेना, उसे फिर जमा कर लेना। लड़ने के बाद जो फायदा होता है न, वह हिसाब में जमा कर लेना चाहिए। बा़की घर में बिलकुल झगड़ना नहीं। घरवाले तो अपने लोग कहलाते हैं।
'नहीं बोलने' की कला, वह तो दूसरों को आए ऐसी नहीं है। बहुत कठिन है वह कला।
उस कला में तो क्या करना पड़ता है? 'वह तो सामनेवाला आए न, उससे पहले उसके शुद्धात्मा के साथ बातचीत कर लेनी चाहिए और उसे शांत कर देना चाहिए, और उसके बाद हमें बोले बिना रहना चाहिए। इससे अपना सारा काम पूरा हो जाएगा।' मैं आपको संक्षेप में कह देता हूँ। बा़की सूक्ष्म कला है यह।
यह कठोर शब्द कहा, तो उसका फल कितने समय तक आपको उसके स्पंदन देते रहेंगे। एक भी अपशब्द अपने मुँह से नहीं निकलना चाहिए। सुशब्द होना चाहिए। पर अपशब्द नहीं होना चाहिए। और उल्टा शब्द निकला मतलब खुद के भीतर भावहिंसा हो गई, वह आत्महिंसा मानी जाती है। अब यह सारा लोक चूक जाते हैं और पूरे दिन क्लेश ही करते हैं।
ये शब्द जो निकलते हैं न, वे शब्द दो प्रकार के हैं, इस दुनिया में शब्द जो हैं उनकी दो क्वॉलिटी हैं। अच्छे शब्द शरीर को निरोगी बनाते हैं और खराब शब्द शरीर को रोगी बनाते हैं। इसलिए शब्द भी उल्टा नहीं निकलना चाहिए। 'एय... नालायक।' अब 'एय...' शब्द हानिकारक नहीं है। पर 'नालायक' शब्द बहुत हानिकारक है।
Book Name: वाणी, व्यवहार में...(Page #3 Paragragh #3, #4, #5, #6 & Page #4 Paragragh #1, #2, #3)
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