प्रश्नकर्ता : कई लोगों की ऐसी बिलीफ होती है कि 'बच्चों को मारें तो ही वे सीधे होते हैं, वर्ना बिगड जाते हैं। हमें मारकर धाक में रखने ही चाहिए। तो ही बच्चे सीधे चलते हैं', क्या ये ठीक है?
दादाश्री : जब तक मारने जितनी उसकी उम्र हो तब तक मारना चाहिए। यदि तीस साल कि उम्र हुई और मारने जाएँ तो?
प्रश्नकर्ता : वे प्रतिकार करेंगे।
दादाश्री : इसलिए हमें ऐसा कहते है कि मारना और ऐसा भी कहते है कि मत मारना। जब तक वे बर्दाश्त करते हैं,मतलब ऐसा उनका अहंकार जागृत नही है, तब तक अंत में मारकर भी उन्हें सीधा रखना चाहिए। वर्ना उलटे रास्ते पर चले जाएँगे।
वास्तव में, सीधा करना लोगों को आता नहीं है। ऐसा ज्ञान नहीं होने के कारण आता नहीं है। वर्ना बच्चों को सीधा करने के लिए प्रेम के जैसी कोई औषधि ही नहीं है। लेकिन ऐसा प्रेम रहता नहीं है न, व्यक्ति को गुस्सा आ ही जाता है न! फिर भी गुस्सा करके, मारकर भी उसे सीधे रस्ते पर लाते है, ये अच्छा है। वर्ना वो उलटे रस्ते पर चला जाए। क्योंकि उसे ज्ञान ही नहीं है। और ३० साल की उम्रवाले को मारें तो वो सामना करता है। इसलिए जब तक अपना चलता है तब तक कर लेना। नहीं चले तब छोड़ देना।
प्रश्नकर्ता : लेकिन कहना मानते नहीं, इसलिए कभी मारना पड़ता है बच्चों को!
दादाश्री : नहीं मानते, तो मारने से क्या मान जाते हैं? वो तो मन में गांठ रखता है कि बड़ा हो जाऊंगा तब मेरी मम्मी को देख लूँगा, कहेगा। मन में रिस रखता ही है, हर एक जीव रिस रखता ही है! खुद हमेशा समाधानपूर्वक कार्य करो, हर एक कार्य! मारना हो तो कहना, 'भाई तू यदि कहता तो तुझे मारुँ, वर्ना नहीं मारू।' वो कहेगा कि, 'नहीं, मुझे मारो।' तो समाधान पूर्वक मार सकते हैं। क्या इसे ही मारना चाहिए ? फिर तो वो बैर बाँधता है! उसे पसंद नहीं और आप मारो तो बैर बांधता है। छोटा हो तब वह नहीं बाँधता, लेकिन मन में तय करता है कि, ' मैं बड़ा हो जाऊँगा तब मम्मी को मारूंगा!'
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादाजी, मेरी बेटी को तो हम डाँटे तो भी कुछ नहीं, एक ही सेकंड में सब भूल जाती है।
दादाश्री : भूल जाती है। मतलब उतनी चालाकी कम है। मतलब उतनी चालाकी कम है। चंचलता जरा कम है, इसलिए भूल जाती है। लेकिन चंचल व्यक्ति बहुत उग्र होते हैं। इसलिए डाँटने का क्या काम है अब? डाँटना हो तो बेटे से कहना कि 'बोल, तुझे मैं डाँटू?' ऐसा काम किया, खराब काम किया। मैं तुझे डाँटू?' तो वो कहे, 'हाँ डाँटो।' तो हमें डाँटना चाहिए। वो खुश होकर डाँटने को कहे, तो हमें डाँटना चाहिए।
दादावाणी ओक्टुबर 2011 (Page # 12 & # 13)
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