क्रोध खुद ही अहंकार है। अब इसका पता लगाना चाहिए कि, किस तरह से वह अहंकार है। वह पता लगाएँ तब उसे पकड़ पाएँगे कि क्रोध वह अहंकार है। यह क्रोध उत्पन्न क्यों हुआ? तब कहे कि, ''इस बहन ने कप-प्लेट फोड़ डाले, इसलिए क्रोध उत्पन्न हुआ।'' अब कप-प्लेट फोड़ डाले, उसमें हमें क्या हर्ज है? तब कहे कि, ''हमारे घर का नुकसान हुआ'' और नुकसान हुआ तो फिर उसे डाँटना चाहिए फिर? यह अहंकार करना, डाँटना, इन सब पर बारीकी से यदि सोचा जाए, तो सोचने से वह सारा अहंकार धुल जाए, ऐसा है। अब यह कप टूट गया वह निवार्य है या अनिवार्य है? अनिवार्य संयोग होते हैं या नहीं होते? सेठ नौकर को डाँटे कि, ''अरे, कप-प्लेट क्यों फोड़ डाले? तेरे हाथ टूटे हुए थे? और तू ऐसा है, वैसा है।'' यदि अनिवार्य होता तो उसे डाँटा जा सकता था? जमाई के हाथों कप-प्लेट फूट जाएँ तो वहाँ कुछ भी नहीं कहते! क्योंकि जहाँ सुपीरियर है, वहाँ चुप! और इन्फिरियर आए तो वहाँ अपमान कर देते हैं!!! ये सारे इगोइज़म (अहंकार) हैं। सुपीरियर के आगे सभी चुप नहीं हो जाते? 'दादाजी' के हाथों यदि कुछ टूट जाए तो मन में कुछ भी नहीं होगा और नौकर के हाथों टूट जाए तो?
इस जगत् ने कभी न्याय देखा ही नहीं है। नासमझी की वजह से यह सब है। यदि बुद्धिपूर्वक की समझ होती तो भी बहुत हो जाता ! बुद्धि यदि विकसित होती, समझदारीवाली होती, तो कहीं कोई झगड़ा होता, ऐसा है ही नहीं। अब झगड़ा करने से क्या कुछ कप-प्लेट साबुत हो जानेवाले हैं? सिर्फ संतोष लेता है, उतना ही न ! और मन में क्लेश होता है सो अलग। यानी इस व्यापार में, एक तो प्याले गए, वह नुकसान, दूसरे यह क्लेश हुआ, वह नुकसान और नौकर के साथ बैर बँधा, वह नुकसान!!! नौकर बैर बाँधेगा कि ''मैं गरीब हूँ'' इसलिए मुझे ऐसा कह रहे हैं न! लेकिन वह बैर छोड़ेगा नहीं और भगवान ने भी कहा है कि किसी के साथ बैर मत बाँधना। हो सके तो प्रेम बाँध सको तो, बाँधना लेकिन बैर मत बाँधना। क्योंकि प्रेम बँधेगा, तो वह प्रेम अपने आप ही बैर को उखाड़ फैंकेगा। प्रेम तो बैर की कबर खोद डाले ऐसा है, बैर से तो बैर बढ़ता ही रहता है। ऐसे निरंतर बढ़ता ही रहता है। बैर की वजह से तो यह भटकन है सारी! ये मनुष्य क्यों भटक रहे हैं? क्या तीर्थंकर नहीं मिले थे? तब कहे, ''तीर्थंकर तो मिले, उनकी देशना भी सुनी लेकिन कुछ काम नहीं आई।''
किस-किस चीज़ से अड़चनें आती है, कहाँ-कहाँ विरोध होता है, तो उन विरोधों को मिटा दे न ! विरोध होता है, वह संकुचित दृष्टि है। इसलिए ज्ञानीपुरुष लोंग साइट (दीर्घ दृष्टि) दे देते हैं। लोंग साइट के आधार पर सब 'जैसा है वैसा' दिखाई देता है।
Book Name: क्रोध (Page #17; Page # 18 Paragraph # 1,#2,#3)
Q. आपसी संबंधों में क्रोध होने के कारण क्या हैं?
A. क्रोध कब आता है? तब कहें, 'दर्शन अटक जाता है, तब ज्ञान अटकता है। तब क्रोध उत्पन्न होता है।' मान भी... Read More
Q. पति-पत्नी के रिश्ते में होनेवाले क्रोध से कैसे निबटें?
A. प्रश्नकर्ता : घर में या बाहर मित्रों में सब जगह हर एक के मत भिन्न भिन्न होते हैं और उसमें हमारी... Read More
Q. मुझे ऑफिस में गुस्सा क्यों आता हैं?
A. क्रोध और माया, वे तो रक्षक हैं। वे तो लोभ और मान के रक्षक हैं। लोभ की यथार्थ रक्षक माया और मान का... Read More
Q. क्रोधी लोगों के साथ कैसे व्यवहार करें?
A. प्रश्नकर्ता : लेकिन दादाजी, यदि कोई व्यक्ति कभी अपने सामने गरम हो जाए, तब क्या करना... Read More
Q. बच्चे अपने पिता की बजाय माता की तरफदारी क्यों करते हैं?
A. प्रश्नकर्ता : सात्विक चिढ़ या सात्विक क्रोध अच्छा है या नहीं? दादाश्री : लोग उसे क्या कहेंगे? ये... Read More
Q. बच्चे को कैसे अनुशासन में रखें?
A. प्रश्नकर्ता : कई लोगों की ऐसी बिलीफ होती है कि 'बच्चों को मारें तो ही वे सीधे होते हैं, वर्ना बिगड... Read More
Q. ज़रूरत पड़ने पर क्रोध करें, लेकिन ड्रामेटिक।
A. एक बैंक का मेनेजर कहने लगा, 'दादाजी मैंने तो कभी भी वाइफ को या बेटे को या बेटी को एक शब्द भी नहीं... Read More
Q. गुस्सा क्या है? खीज क्या है?
A. प्रश्नकर्ता : दादाजी, गुस्से और क्रोध में क्या फर्क है? दादाश्री : क्रोध उसे कहेंगे, जो अहंकार... Read More
Q. क्रोध से कैसे छुटकारा पाएँ?
A. पहले तो दया रखो, शांति रखो, समता रखो, क्षमा रखो, ऐसा उपदेश सिखाते हैं। तब ये लोग क्या कहते हैं... Read More
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