जीवन में टकराव के प्रसंगों का हल कैसे निकाला जाए उसके लिए बहुत से समाधान है हालांकि प्रतिक्रमण रूपी चाबी टकराव हो जाने के बाद शांति प्राप्त करने का एक सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
एक बच्चा चलने के लिए दिन प्रतिदिन प्रयत्न करता है परंतु उसके मन में पहले से ऐसा विचार नहीं आता कि मैंने पहले ही 100 बार प्रयास कर लिया है पर मैं सफल नहीं हो पाया। वह बस खुद ही प्रयास करता रहता है। धीरे धीरे वह अपने आप चलना सीख जाता है। इसी तरह, जब भी आप टकराव में आते हो तब आपको प्रतिक्रमण करना ही है। आपको निराश नहीं होना है कि मैं पहले ही बहुत बार माफ़ी मांग चुका हूँ फिर भी मैं टकराव में क्यों पड़ जाता हूँ? इस निरंतर प्रयास से एक दिन आपका जीवन टकराव रहित हो जायेगा।
हर सुबह आपको एक निश्चय करना चाहिए ," “मुझे दिन भर में किसी के साथ भी टकराव में नहीं आना है”।" आपका निश्चय हमेशा ऐसा ही होना चाहिए ," मुझे किसी के साथ टकराव में नहीं आना है फिर चाहे परिस्थिति कैसी भी क्यों ना हो।”
यदि कभी कभी आप टकराव (अतिक्रमण) में आ जाते हैं, तब आप प्रतिक्रमण (हृदयपूर्वक क्षमा मांगना) करके टकराव के परिणामों को मिटा सकते हैं। प्रतिक्रमण करने से आपके दोष धुल जाएंगे और अतिक्रमण ख़त्म हो जाएगा। अन्यथा इसके गंभीर परिणाम हैं। यदि आप टकराव मे आते हो हो तब तो आपको अवश्य ही प्रतिक्रमण करना चाहिए।
जिस व्यक्ति के साथ आपका टकराव हुआ है, उसके अंदर बैठे अंदर बैठे शुद्धात्मा भगवान् को याद करो और उनसे क्षमा माँगो।
(व्यक्ति का नाम) के अंदर बैठे हे शुद्धात्मा भगवान ! मैंने आपके विरूद्ध अपनी आवाज़ उठायी है, इस भूल के लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ। मुझे क्षमा करें। और आज मै ऐसा दृढ़ निश्चय करता हूँ कि मैं यह गलती फिर कभी नहीं करूँगा, इसके लिए आप मुझे परम शक्ति दीजिये ।
आपके प्रतिक्रमण के द्वारा न केवल आप अपना भाव सुधारेंगे बल्कि सामने वाले व्यक्ति के भाव और आपके प्रति उसके व्यवहार मे भी सकरात्मक प्रभाव पड़ेगा।
सामने वाले व्यक्ति को आपके स्पंदन तुरंत ही पहुँचते है और वे उसे शांति का अनुभव कराते हैं। वास्तव में प्रतिक्रमण आश्चर्यजनक परिणाम लाता है। आख़िरकार यह एक वैज्ञानिक तरीका है।
यदि सामनेवाला व्यक्ति कर्मो के हिसाब को गुणा करता है, तब आपको उसे विभाजित करना चाहिए। ताकि कुछ बाकी न रहे। दूसरे के लिए नकरात्मक सोचना सबसे बड़ी गलती है।
शब्दों झगड़े का परिणाम यहीं और अभी आ जाएगा और उसी समय समाप्त भी हो जाएगा, जबकि मन के द्वारा किये गए टकराव का प्रभाव जारी ही रहेगा। जब आप शब्दों द्वारा कुछ कहते हो, तो सामने वाला व्यक्ति भी आपको उसी समय उत्तर देता है और आप उसी समय परिणाम को भोग लेते हैं। लेकिन मन के द्वारा किए गए टकराव पहले बीज बोते हैं, फिर वह कर्म जब पूरा हो जाता है तब वह फल देते हैं। तो अभी आप बीज बो रहे हैं अर्थात कारण उत्पन्न कर रहे हैं। आपका यह कारण न बंधे इसलिए आपको प्रतिक्रमण करना है।
दीवार के बारे में नकरात्मक सोचकर आपको कोई हानि नहीं होगी क्योंकि उसका नुकसान एक तरफ़ा ही होगा, जबकि किसी जीव के लिए एक भी नकरात्मक विचार बहुत खतरनाक है। हानी दोनों तरफ़ से ही होगी। हालाँकि यदि आप उसके बाद प्रतिक्रमण करते हो, तो आपके दोष मिट जायेंगे। इसलिए जहाँ कहीं भी टकराव / घर्षण हो , वहाँ प्रतिक्रमण करें ताकि वह वहीं खत्म हो जाए।
जब भी आप टकराव में आते हो, तब हमेशा प्रतिक्रमण करो ताकि गलती से जो बीज बोए हैं वे बीज जल जाये। प्रतिक्रमण करने से हम अपनी भूत (अतीत) और वर्तमान की गलतियों पर पछतावा करते हैं और सामने वाले ब्यक्ति जिन्हें हमने दुःख पहुँचाया है उनसे क्षमा मांगते हैं, ताकि हमारा वर्तमान और भविष्य का जीवन सुधर जाये और हम गलत कर्मों के प्रभाव से मुक्त हो सकें।
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