क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि , कुदरत में ऐसी चीज़े है जो अपने आस-पास के वातावरण के साथ एडजस्ट हो जाती है ?
ये तो मात्र कुछ उदाहरण है, जब कुदरत अपने आसपास के वातावरण के साथ एडजस्ट करती है।
परन्तु...
परम पूज्य दादाश्री ने ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’ के रूप में अद्भुत चाबी हमे प्रदान की है। तो चलिए पढ़ते है, जीवन में एडजस्ट होने के पीछे क्या उद्देश्य है, उन्ही के शब्दों में:
प्रश्नकर्ता : ‘एडजस्टमेन्ट’ की जो बात है, उसके पीछे क्या भाव है? कहाँ तक ‘एडजस्टमेन्ट’ लेना चाहिए?
दादाश्री : भाव शांति का है, हेतु शांति का है। अशांति पैदा नहीं होने देने की तरकीब है। ‘दादा जी’ का विज्ञान ‘एडजस्टमेन्ट’ का है। ग़ज़ब का ‘एडजस्टमेन्ट’ है यह। और जहाँ ‘एडजस्ट’ नहीं होते, वहाँ आपको उसका स्वाद तो आता ही होगा न?! ‘डिसएडजस्टमेन्ट’ ही मूर्खता है। ‘एडजस्टमेन्ट’ को हम न्याय कहते हैं। आग्रह-दुराग्रह न्याय नहीं कहलाता। किसी भी प्रकार का आग्रह, न्याय नहीं है। हम किसी भी बात पर अड़े नहीं रहते।
अभी तक एक भी व्यक्ति हमसे डिसएडजस्ट नहीं हुआ है। जबकि इन लोगों के साथ तो घर के चार सदस्य भी एडजस्ट नहीं हो पाते। अब एडजस्ट होना आएगा या नहीं? ऐसा हो सकेगा या नहीं? हम जैसा देखें ऐसा तो हमें आ जाता है न? इस संसार का नियम क्या है कि जैसा आप देखोगे उतना तो आपको आ ही जाएगा। उसमें कुछ सीखने जैसा नहीं रहता। क्या नहीं आएगा? अगर मैं आपको केवल उपदेश देता रहूँ, तो वह नहीं आएगा। लेकिन आप मेरा आचरण देखोगे तो आसानी से आ जाएगा।
संसार में और कुछ भले ही न आए, तो कोई हर्ज नही है। व्यवसाय करना कम आए तो हर्ज नहीं है लेकिन एडजस्ट होना आना चाहिए। अर्थात्, वस्तुस्थिति में एडजस्ट होना सीख जाना चाहिए। इस काल में एडजस्ट होना नहीं आया तो मारा जाएगा। इसलिए ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’ होकर काम निकाल लेने जैसा है।
परम पूज्ये दादाश्री कहते है, “संयोगो में निरंतर परिवर्तन आता ही रहेगा। संयोग आपके साथ एडजस्ट नहीं होंगे, आपको संयोगो के साथ एडजस्ट होना है। संयोगो के पास भाव नहीं है किन्तु आपके पास भाव है। संयोगो को अपने अनुकूल बनाना ही हमारा काम है। प्रतिकूल परिस्थितया (संयोग) ही अनुकूल संयोग है। सीढ़ियां चढ़ते हुए हांफता है , फिर भी वह क्यों चढ़ता है? अंदर में भाव है वो ऊपर जायेगा तो इससे उसको लाभ मिलेगा।"
यदि आप जीवन में प्रगति चाहते है और मन की शांति और सुख का अनुभव करना चाहते है तो ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’, ये हमारे वांछित लक्ष्य तक पहुँचने के लिए सबसे आवश्यक और पहला कदम है।
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